योगेन्द्र मौदगिल कहने को तो हास्य कवि हैं मगर जब भी मैंने उन्हें पढ़ा , हर बार
एक एक प्रभाव एक छाप रह गयी दिल पर ! गज़ब की धार है उनकी रचनाओं में ! आज उनकी एक सूक्ष्म रचना पढी तो यह दो लाइनें ही हिला गयीं !
" चौराहे की मिटटी को भई जम कर लज्जा आती है
दर्जन भर बेटों की अम्मा , भीख मांगने आती है !"
जिस माँ ने अभावों में जिन्दगी काटते हुए हमारा भविष्य बनाने के लिए अपने बचाई हुई सारी पूँजी लुटा दी और हमारी पढाई और भविष्य की चिंता में अपने बुढापे के लिए, कुछ न बचाया , उस अम्मा को हमने क्या दिया ?
इस मार्मिक रचना में , शायद ही कुछ बचा होगा जो कवि ने कह न दिया हो , लज्जा इंसानों को या बेटों को तो आने से रही , तो कवि किससे उम्मीद करे सिवाय चौराहे की मिटटी के अलावा , लज्जा तो धरती की मिटटी को ही आयेगी !
क्या उस के प्यार का एक अंश भी हम दे पा रहे हैं ! और हमें अपने ऊपर लज्जा भी नहीं आती ?
एक एक प्रभाव एक छाप रह गयी दिल पर ! गज़ब की धार है उनकी रचनाओं में ! आज उनकी एक सूक्ष्म रचना पढी तो यह दो लाइनें ही हिला गयीं !
" चौराहे की मिटटी को भई जम कर लज्जा आती है
दर्जन भर बेटों की अम्मा , भीख मांगने आती है !"
जिस माँ ने अभावों में जिन्दगी काटते हुए हमारा भविष्य बनाने के लिए अपने बचाई हुई सारी पूँजी लुटा दी और हमारी पढाई और भविष्य की चिंता में अपने बुढापे के लिए, कुछ न बचाया , उस अम्मा को हमने क्या दिया ?
इस मार्मिक रचना में , शायद ही कुछ बचा होगा जो कवि ने कह न दिया हो , लज्जा इंसानों को या बेटों को तो आने से रही , तो कवि किससे उम्मीद करे सिवाय चौराहे की मिटटी के अलावा , लज्जा तो धरती की मिटटी को ही आयेगी !
क्या उस के प्यार का एक अंश भी हम दे पा रहे हैं ! और हमें अपने ऊपर लज्जा भी नहीं आती ?
अच्छी पंक्तियों की अच्छी चर्चा सतीश भाई
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
अच्छी चर्चा
ReplyDeleteयोगेंद्र जी की रचनाएँ ऐसे ही धारदार और समाज पर प्रहार करती हुई होती है....अपनी बात रखने में तो वो मास्टर है..
ReplyDeleteसतीश जी इस लाइन के बहाने जो कुछ आप कहना चाह रहे है वो आज के कुछ घर की सच्चाई वास्तव में है खुल कर भीख ना माँग पाए पर भारत में ऐसी बहुत सी माँ है जो बेटें होने के बावजूद भी दो जून की रोटी के लिए तरस रही है....फिर भी इस समाज का कोई ध्यान नही जाता....फिर कवि को आयेज आना पड़ता है....बहुत बढ़िया चर्चा....बधाई
सतीश जी नमस्कार,
ReplyDeleteयोगेन्द्र जी तो कमाल के कवि है,
उनके छंद की धार देखकर तो
हम आनंदित हो उठते हैं।
आपको शुभकामनाएं
संडे स्पेशल
बहुत सुन्दर लिखा है योगेन्द्र जी ने ।
ReplyDeleteहमने भी पढ़ा और सराहा था।
बहुत सच्ची पंक्तियां हैं योगेन्द्र जी की ,
ReplyDeleteऐसी हरकतों से इन्सानियत शर्मिंदा होती है ,अब इन औलादों को कौन समझाए जब वो समझना ही ना चाहें
माता -पिता के बारे में इतना ही कह पाऊंगी कि
"अपनी ख़ुशियों की क़ुर्बानी दे कर हम को ख़ुशियां दीं
अपनी हर ख़्वाहिश को कुचला हम को सारी नेमत दी"
अगर हम उन की क़द्र न कर पाएं तो ये हमारी बद क़िस्मती है
योगेन्द्र भाई के हम यूं ही नहीं मुरीद हैं...
ReplyDeleteरही लज्जा की बात तो सतीश भाई, कभी चिकने घड़ों पर भी कोई असर होता है क्या...
जय हिंद...
योगेन्द्र मौद्गिलजी की सूक्ष्म दृष्टि का जबाब नहीं .. आपने अच्छी चर्चा की !!
ReplyDeleteसुन्दर शब्द सुनवाने के लिये आभार ।
ReplyDeleteआखिर भतिजा किसका सै? कती लठ्ठ से गाड देवे सै.
ReplyDeleteरामराम.
योगेन्द्र मौदगिल जी की कविताओं के हम भी मुरीद हैं। आभार।
ReplyDeleteparichay ke liye aabhar........yanha to lagata hai khazane anginat hai.........blog kee duniya me .Sateesh jee aabharee rahungee kuch aisee hee sites fwd karde.........
ReplyDeleteसच मुच ... बौट कमाल की पंक्तिया हैं ... योगेंद्र साहब कमाल का लिखते हैं ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी पंक्तियां, झकझोरने वाली रचना.
ReplyDeletesaxena ji 2 panktiyo ne hi dil ko jhakjhor kar rakh diya...
ReplyDeleteaur ek aisa hi ek sach yaad aa gaya..
hamare yaha...ek red light par ek budhiya baithi hoti thi...aur uske baare me bhi yahi suna tha ki uske 3-4 bete hai jo aachhi naukriyo me hai..lekin un BICHARO k paas itna dhan nahi hai ki vo apni maa ko 2 ROTI de sake...aaj apki ye post padh kar ye purana kissa ye sacchayi yaad aa gayi..vo b aise hi ek chaourahe par baithi hoti thi...mano u laga ye 2 lines usi k liye likh di gayi ho.
सतीश जी, आँखें नम हो आयीं.. कुछ लोग आज भी मानते हैं कि मान के चरणों में स्वर्ग होता है..
ReplyDelete"जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ बनके मेरे ख्वाब में आ जाती है."
या फिर
"मैं जब तक घर ने लौटूं माँ मेरी सजदे में रहती है."
Bahut gambhir panktiyan....
ReplyDeleteSaamajik bidambana ko darshati.. poot kapoot..... akhir ped ke liye kya-kya nahi karna padta hai majboori mein.....
आप का ओर योगेंदर जी का धन्यवाद, मेने भी पढी थी यह रचना
ReplyDeleteअच्छी लगी ये पोस्ट अब तो ये ज़माना है की जब तक मतलब है माँ के चरणों में स्वर्ग है और मतलब लिकल गया तो माँ के लिए अपने घर में नरक है
ReplyDeleteआभार
सतीश जी, पंक्तियां जो हो गयीं सो हो गयी... आप सभी की सराहना ही कलम से कुछ न कुछ लिखवा लेती हैं. आभार व्यक्त कर आपके प्रेम को हल्काऊंगा नहीं.
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