
रोज आकर,थपथपाता है,कोई !
करवटें , रोज़ बदलता पाकर ,
हाथ बालों में, फिराता है कोई !
जब कभी दर्द में झपकी न लगे
नींद को, लोरी सुनाता है कोई !
नींद को, लोरी सुनाता है कोई !
जब कभी आँख भर आयी, तभी
हिम्मतें मुझको दिलाता है कोई
जब भी मैंने रूठ कर खाया नहीं
एक कौरा,मुंह में दे जाता कोई !
हिम्मतें मुझको दिलाता है कोई
जब भी मैंने रूठ कर खाया नहीं
एक कौरा,मुंह में दे जाता कोई !
एक बच्चे से, न जाने क्या हुआ
पूरे जीवन , रूठ जाता है कोई !
भावपूर्ण
ReplyDelete" मा निषाद ! प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समा: ।
ReplyDeleteयत् क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥"
वाल्मीकि ,[ आदि- काव्य ]
मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ .....
ReplyDeleteरो लेना बहुत अच्छा होता है
ReplyDeleteखुशनसीब होता है
आज के समय में
अगर कोई रो भी पाता है ।
Some times you are marvellous.Nice poem :)
ReplyDeleteवेदना से ही तो जनमती है कविता। आपकी कविता दिल को छू गई।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण !
ReplyDeleteबेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति........
माँ की याद.... बहुत मार्मिक।
ReplyDeleteकितनी रातें रूठ कर खाया नहीं
ReplyDeleteएक कौरा, मुंह में दे जाता कोई !
… माँ जैसा कोई नहीं
मर्मस्पर्शी रचना
बेहतरीन कविता , सतीश भाई धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 26 . 7 . 2014 दिन शनिवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteमन को छू गया !
ReplyDeleteअच्छे दिन आयेंगे !
कर्मफल |
भावपूर्ण !
ReplyDeleteशुभकामनाये !
Besides fears and frustrations of day to day life, there is a self which struggles against all odds and tries to uplift spirit. You have good friend with you. Congrats.
ReplyDeleteबहुत मार्मिक रचना है !
ReplyDeleteलाजवाब ! हर एक पंक्ति कितना खूबसूरत !
ReplyDeleteकितनी रातें रूठ कर खाया नहीं
ReplyDeleteएक कौरा, मुंह में दे जाता कोई !
… माँ जैसा कोई नहीं
मर्मस्पर्शी रचना सतीश जी :))
koi aata,aapko bharma jata....sahara de jata....dil chhu li..aapki rachna..
ReplyDeletebadiya
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