काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
पैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !
रजवाड़ों से,आत्मकथाओं के बदले
डॉक्ट्रेट , मालिश पुराण में पाये हैं !
पूंछ हिलायी लेट लेट के,तब जाकर
कितने जोकर, पद्म श्री कहलाये हैं !
अदब, मान मर्यादा जाने कहाँ गयी,
ग़ज़ल मंच पर,लहरा लहरा गाये हैं !
हर छेत्र में यही तो हो रहा है,सभी तरह-तरह के जुगाड़ में लगे हैं,कौन कितना सफल हो सके--सच्चाई है आपके हर एक शब्दों में --आईना दिखाती अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ब्लॉग बुलेटिन - जन्मदिवस : कवि गोपालदास 'नीरज' , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसच्चाई को प्रस्तुत करती रचना । बहुत खूब सर ।
ReplyDeleteऐसों का ही जमाना है
ReplyDeleteएक कटु सत्य .....
आज के कटु सत्य की बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteवाह जी आप भी एकदम्मे गजबे फरमाए हैं ..
ReplyDeleteबहुत सही अभिव्यक्ति है आज सब जगह यही हो रहा है .बधाई.
ReplyDeleteकैसे अपनी भावभंगिमा के बल पर
ReplyDeleteकितने जोकर पद्म श्री कहलाये हैं ! Very Nice..!