Monday, January 4, 2016

शायर बनकर यहाँ गवैये आये हैं - सतीश सक्सेना

काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
शायर बनकर यहाँ , गवैये आये हैं !

पैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !

रजवाड़ों से,आत्मकथाओं के बदले 
डॉक्ट्रेट , मालिश पुराण में पाये हैं !

पूंछ हिलायी लेट लेट के,तब जाकर 
कितने जोकर, पद्म श्री कहलाये हैं !

अदब, मान मर्यादा जाने कहाँ गयी,
ग़ज़ल मंच पर,लहरा लहरा गाये हैं !

8 comments:

  1. हर छेत्र में यही तो हो रहा है,सभी तरह-तरह के जुगाड़ में लगे हैं,कौन कितना सफल हो सके--सच्चाई है आपके हर एक शब्दों में --आईना दिखाती अभिव्यक्ति।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ब्लॉग बुलेटिन - जन्मदिवस : कवि गोपालदास 'नीरज' , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. सच्चाई को प्रस्तुत करती रचना । बहुत खूब सर ।

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  4. ऐसों का ही जमाना है
    एक कटु सत्य .....

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  5. आज के कटु सत्य की बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..

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  6. वाह जी आप भी एकदम्मे गजबे फरमाए हैं ..

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  7. बहुत सही अभिव्यक्ति है आज सब जगह यही हो रहा है .बधाई.

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  8. कैसे अपनी भावभंगिमा के बल पर
    कितने जोकर पद्म श्री कहलाये हैं ! Very Nice..!

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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