Saturday, January 16, 2016

यह आवाज,अजान नहीं है -सतीश सक्सेना

 चंदा तो  मेहमान नहीं है,
लोगों पर अहसान नहीं है !

अपने बच्चों को वर देना
वैसे भी, अनुदान नहीं है !

मंदिर ,मस्जिद, स्पीकर की ,
यह आवाज,अजान नहीं है !

बेबस निर्बल पशु हत्या है
ये कोई बलिदान नहीं है !

सब के मन की पूरा करना ,
इतना भी आसान नहीं है !

तुम्हें मुक्त कर हम सो जाएँ
और कोई अरमान नहीं है !

जितना संग दिया सपनों में
भुला सकें आसान नहीं है !


11 comments:

  1. बढ़िया । मुक्त करना और मुक्त हो जाना इससे ज्यादा क्या चाहिये?

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  2. बहुत सुन्दर रचना

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  3. भाई कुलदीप जी ने कल लिं लेकर सूचना दी थी सभी को पर प्रस्तुति यहा नहीं थी सो यह आकस्मिक प्रस्तुति,, "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  4. बहुत गहरी काव्योक्तियाँ हैं ये, आभार और साधुवाद।

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  5. तुम्हें मुक्त कर हम सो जाएँ
    और कोई अरमान नहीं है --मुक्त करना,भूल जाना इतना आसान भी नहीं है। हर पंक्तियाँ सार्थक है---सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  6. भाई कुलदीप जी ने कल लिंक लेकर सूचना दी थी सभी को, पर प्रस्तुति यहां नहीं थी सो यह आकस्मिक प्रस्तुति,, "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  7. परोक्ष रूप से कटाक्ष..
    अपने लोगों को वर देना
    वैसे भी, अनुदान नहीं है !
    उत्तम पंक्तियाँ....
    सुबह हड़बड़ी मे पूरा नहीं पढ़ पाई
    कुलदीप भाई का नेट डाउन था
    और प्रस्तुति भी आनी थी..

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  8. सुंदर और सार्थक रचना । बहुत खूब सर जी ।

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  9. बहुत भावपूर्ण और सटीक अभिव्यक्ति...

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  10. समाज से जुड़ी बातों को शेर बना के ढाल दिया ... गज़ब शिल्प और ख्याल ...

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- सतीश सक्सेना

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