Wednesday, December 28, 2022

आंतरिक शारीरिक रक्षा शक्ति -सतीश सक्सेना

 अगर मैं स्टोन एज की बात करूँ तो वह लगभग २५ लाख साल चला लगभग ६००० साल पहले समाप्त हुआ था , उस समय भी समय अनुसार मानवीय ज़रूरत का हर साधन उपलब्ध था , बस इलाज और बीमारियों के बारे में उन्हें यही पता था कि कुछ दिन कमजोरी रहती है तब आराम करना चाहिए और उन दिनों खाने का मन नही करता सो वो कम खाते और गुफा के एक कोने में आराम करते, कुछ दिनों में स्वतः ठीक हो जाते और फिर शिकार, भागना दौड़ना और परिवार संग खुश रहना , मस्त जीवन ...

आज से लगभग ५० वर्ष पहले भी दूर दूर तक हॉस्पिटल और डॉक्टर नहीं थे, गाँव क़स्बों के लोगों ने इनका नाम तक नहीं सुना था , लोग तब बिना मृत्यु भय और बीमारियों के जीते थे, वाइरस बैक्टिरिया तो बहुत दूर की चीज़ थे , बस भय और स्ट्रेस देने वाले टेलिविज़न और डर फैलाकर धन कमाने वाले मीडिया संसाधन नहीं थे !

मानवीय शरीर में लाखों कोशिकाएँ व्यस्त रहती हैं शरीर को सुचारु रूप से चलाने के लिए, इस प्रक्रिया के फल स्वरूप शरीर में हर समय उथलपुथल रहती है, तरह तरह के दर्द, और समस्याएँ होती हैं जो कुछ समय में अपने आप समाप्त भी हो जाती हैं ,भयभीत और समर्थ मन जो इन्हें सहन नहीं कर पाता , फ़ौरन डॉक्टर की शरण में जाकर दवा खाता है , बिना यह जाने कि इनका शरीर पर बुरा असर क्या होगा वहीं निडर या असमर्थ व्यक्ति चुपचाप घर में लेटकर स्वस्थ होने का इंतज़ार करता है और खुद को स्वस्थ बनाए रखने में सफल रहता है !

६१ वर्ष की उम्र में मैंने जाड़े आते ही कपड़े कम पहन कर दौड़ने का अभ्यास शुरू किया था , पहले तीन लेयर , फिर दो और अंत में स्लीव लेस वेस्ट पहन कर, दौड़ने का अभ्यास किया लगभग दो सीज़न बाद ही ६२ वर्षीय शरीर ने इसे ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया और अब ६९ वर्ष की आयु में, ७ डिग्री कड़ाके की ठंड में , सिंगल स्लीव लेस वेस्ट और शॉर्ट में आराम से दौड़ता हूँ ! मानवीय शरीर की ताक़त बेमिसाल है सिर्फ़ बिना डरे उसकी आदत डालने की आवश्यकता है  !

पिछले सप्ताह खाना खाते हुए, एक मटर का दाना साँस की नली में फँस गया था लगभग दो घंटे तक लगातार खाँसता रहा, साँस आने में रुकावट थी, लग रहा था कि जान चली जाएगी, डॉक्टर T S Daral जैसे पुराने मित्र, और रनर डॉक्टर दोस्त Vishesh Malhotra न होते तो ओपरेशन के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ता ! पूरे सप्ताह साँस लेने में तकलीफ़ रही, अचानक एक दिन सुबह बहुत तेज गति से खांसी शुरू हुई लगा कि फेफड़े बाहर आ जाएँगे, और एक बड़ा सा गोल दाना मुँह से निकल कर बेसिन में गिरा, साथ ही लगातार हो रही खांसी व साँस में रुकावट ग़ायब हो गयी !

कम से कम एक डॉक्टर मित्र आपके परिवार में अवश्य होना चाहिए जो आपातकाल में सही सलाह देकर आपको अनावश्यक दवाओं से बचाने में आपकी मदद करे, उसके अलावा शारीरिक रक्षा शक्ति को कम न आंकिये, यह आपकी रक्षा करने में पूर्ण समर्थ है !

Tuesday, December 20, 2022

हमारी जय हो -सतीश सक्सेना

कल एक बर्थ डे पार्टी में दो घंटा रुकना पड़ा, डीजे की तेज आवाज़ में हम वहाँ जबतक रहे , मेज़बान और मेहमान , बोली हुई आवाज़ सुनना नामुमकिन रहा, एक दूसरे का हालचाल तक न पूँछ सके, मेरी हेल्थ वाच लगातार शोर का लेवल १०३ db दिखाते हुए मेसेज फ़्लेश कर रही थी कि, इस समय noise लेवल 102 DB है, अधिक देर तक बैठने से आपके कानों में स्थायी नुक़सान हो सकता है !

यूरोप में अवकाश के दिन आप अपने घर में, ज़ोर ज़ोर से बोलना, तेज आवाज़ में टीवी चलाना, किसी तरह ड्रिलिंग, घरेलू मरम्मत का शोर नहीं कर सकते, यहाँ तक कि रात में वॉटर फ़्लश करने का शोर भी नहीं होना चाहिए, शोर को वे हेल्थ के लिए नुक़सान देह व क्राइम मानते हैं और भारी पेनल्टी है मगर हमारे यहाँ किसी को पता ही नहीं कि तेज आवाज़ से बच्चों और बुजुर्गों के कान पर बेहद बुरा असर पड़ता है !

हमारे यहाँ घरेलू एरिया में ५५ DB तक का शोर की इजाज़त है , १० बजे के बाद लाउडस्पीकर बजाने की इजाज़त नहीं, मगर यहाँ यह अपराध धड़ल्ले से होता है, दूसरों की असुविधा से हमारा कोई मतलब ही नहीं और अपने स्वास्थ्य की समझ नहीं !

मानसिक विकास के बिना ही विकास हो रहा है !

Saturday, December 10, 2022

रोबो चेयर, एक वरदान -सतीश सक्सेना

घर में कुर्सी पर बैठ कर लैपटॉप पर या कम्बल में टीवी , बाहर निकलो गाड़ी से ऑफिस में , लिफ्ट से ऑफिस में अपनी कुर्सी तक ,शाम को गाड़ी से घर वापसी , घर के अंदर सोफा तैयार , डाइनिंग कुर्सी पर बैठकर डिनर , और बाद में गर्म बिस्तर 

सोचता हूँ कि पैरों का काम ही क्या है , घर में खड़े होकर कार तक  पैदल जाना पड़ता है , हाई क्वालिटी रोबो व्हील चेयर बनवा लेता हूँ उसमें सामने लैपटॉप स्क्रीन लगी हो , सेंसर सड़क पर किसी से टकराने भी नहीं देंगे ! घुटनों की जरूरत भी सिर्फ उठते समय पड़ेगी जब सोने जाना होगा , यह कुर्सी लगभग एक लाख की आएगी , खरीदने की सोच रहा हूँ , आराम के लिए पैसा उपयोग न किया तो फिर किस काम आएगा  !

 घर में पूरे दिन बैठे रहकर टीवी देखते समय मेरी स्पोर्ट्स वाच रिमाइंडर देती रहती है कि अब कम से कम खड़े ही हो जाओ भैया ? इसे फेंक ही दूँगा किसी दिन गुस्से में  !

Friday, December 9, 2022

हम पाखंडी -सतीश सक्सेना

यह सच है कि हम भारतीय पाखंड अधिक करते हैं, प्रौढ़ावस्था के कपड़े अलग, जवानों के अलग और बुढ़ापे में रंगहीन कपड़े और मोटा चश्मा, दाढ़ी के साथ ! विधवा है तब रंगीन कपड़े , चूड़ी पायल कंगन आदि सब त्याज्य अन्यथा सब लोग क्या कहेंगे !

अगर लेखक हैं और आम लोगों में मशहूर होना है तो सबसे पहले नाम बदलिए , बेहतरीन सांस्कृतिक नाम रखिए, दाढ़ी बढ़ा लीजिए बड़े बाल कंधे तक बनाइए, खादी कुर्ता पजामा, चेहरे पर गंभीरता , और कुछ चेले लेकर चलना शुरू करें फिर देखिए जलवा !

सबसे बढ़िया धंधा करना हो तो बाबा बन जाइए, सतीश सक्सेना जैसे बकवास नाम की जगह सत्यानंद सरस्वती अधिक प्रभावशाली रहेगा, दाढ़ी और सर के बाल बढ़ाकर नारंगी रंग की धोती पहनिए, पैरों में खड़ाऊँ हों तो क्या कहने, राह चलते लोगों में पैर छूने की होड़ लग जाएगी , आशीर्वाद दो और धन बरसने लगेगा !

और अगर 69-70 की उम्र में आकर, टी शर्ट, शॉर्ट पहन लिया तब लोगों से यह सुनने को तैयार रहिए, चढ़ी जवानी बुड्ढे नू ! मन को मारना सीख ले, इस उम्र में यह रंग, सब लोग क्या कहेंगे !

अभी हमें मानसिक तौर पर विकसित होने में, कम से कम 100 साल लगेंगे !
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