1991 में, यू एस एस आर का विघटन एक ऐतिहासिक घटना थी जिसने इस विशाल विश्व शक्ति को 15 देशों में विभाजित कर दिया , अर्मेनिया , अजरबैजान , बेलारूस , ऐस्टोनिआ , जॉर्जिया , कज़ाख़िस्तान करिगिस्तान ,लैटविआ , लिथुआनिया ,माल्दोवा, रूस ,तज़ाकिस्तान , तुर्कमिनिस्तान , उक्रैन और उज़्बेकिस्तान और इस घटना की जिम्मेवारी तत्कालीन राष्ट्रपति गोर्वाचेव की बनायी
नीतियां रहीं जिनके द्वारा उन्होंने इस महान कम्युनिस्ट शासन के हर राज्य को लोकतान्त्रिक तरीके से अपना निर्णय खुद लेने की आज़ादी दी गयी थी और जिसके फलस्वरूप यह विशाल संयुक्त देश 15 देशो में बंट गया जिसमें सबसे बड़ा राज्य रूस भी शामिल था , लिबरल गोर्बाचेव ने इस्तीफा दिया और समस्त न्यूक्लियर हथियारों के साथ रूस की कमान रूढ़िवादियों के हाथ आ गयी !
और तब से लेकर अब तक इन नव विभाजित देशों में अपनी रक्षा के प्रति संशय भावना जुडी रही , वे रूस और उसकी विचारधारा से बचने के लिए शक्तिशाली नाटो देशो के समूह में शामिल होना चाहते थे और इन देशों में उक्रैन सबसे आगे था और रूस के लिए ऐसा होने का अर्थ, अपनी सीमाओं को नाटो देशों से मिलाना था जिसे वह अपने लिए सीधा ख़तरा मानता आया है , वह नहीं चाहता कि उसके दरवाजे पर नाटो देश दस्तक दें अपनी नाराजी और रुख उसने उक्रेन को सीधी वार्निंग देते हुए साफ़ कर दिया कि अगर वह नाटो में शामिल होता है तब मुकाबले के लिए तैयार रहे स्वाभाविक है उक्रैन ने इसे नकार दिया और नाटो देशों ने उक्रैन का साथ भी दिया !
इन दिनों रूस ने उक्रैन पर सैनिक आक्रमण कर दिया है और शायद किसी भी समय उक्रैन आत्मसमर्पण करने को मजबूर होगा वह अपने से सैकड़ों गुना शक्तिशाली रूस के आगे कुछ दिन भी टिक पायेगा इसमें शक है !
मगर इसी परिप्रेक्ष्य में रूस और नाटो की तरफ से जो वक्तव्य दिए जा रहे हैं वे विश्व के समझदार हिस्से के लिए चिंतित करने के लिए काफी है ! नाटो का कहना है कि किसी देश की सम्प्रभुता की रक्षा होनी चाहिए जिसमें उसे अपनी रक्षा हेतु समझौते अपनी इच्छानुसार करने की स्वतंत्रता है इसका आदर होना चाहिए ! मगर रूस ने उक्रैन की तरह ही फ़िनलैंड और स्वीडन को भी राजनैतिक एवं सैनिक परिणाम भुगतने को तैयार रहने के लिए वार्निंग दी है कि वे नाटो में शामिल होने की न सोचें और रूस अपने विचारों में इतना दृढप्रतिज्ञ है कि उसने अमेरिका और नाटो जॉइंट कमांड की सभी चेतावनियों पर कोई ध्यान भी नहीं दिया ! दूसरी तरफ स्वीडन और फ़िनलैंड के इरादे नाटो में बिना शामिल हुए उसकी सुरक्षापंक्ति में शामिल होने के विकल्प तलाशना है जिसे रूस स्वीकार नहीं करता !
यूनाइटेड नेशंस एक ऐसा बौना दफ्तर है जिसे पता है कि हमारे हाथ में कुछ नहीं है , जिसके बाबुओं ने हमारे देश से सीख लिया है कि आठ घंटे की ड्यूटी करनी है जिसमें लंच ऑवर एक घंटे पहले और एक घंटे बाद तक होना है ! दफ्तर आते समय और जाते समय की चाय और पकौड़ी आवश्यक पहले से ही हैं ! बिना किसी झंझट के मोटी तनख्वाह जेब में डालो और चलो भइया घरै !
वीटो पावर के आगे सुरक्षा परिषद मात्र अपील कर पाने की क्षमता रखती है यह सिर्फ उस देश को बचा पाती है जब समस्त वीटो पावर देश एकमत हों अन्यथा उसका कोई अर्थ नहीं !
रूस ने समुद्र में न्यूक्लियर एक्सरसाइज शुरू कर दी है जिसमें हाइपरसोनिक एवं क्रूज़ मिसाइल का उपयोग शामिल है ! इस प्रकार की हर एक मिसाइल एक या अधिक न्यूक्लियर वारहेड से युक्त हो सकती हैं तथा इनके चलने के साथ, इन्हें रोकने का कोई विकल्प विश्व में किसी के पास नहीं है , क्योंकि इन्हें रोकने के लिए दागी गयी एंटी मिसाइल भी इन्हें एक एटॉमिक बम में ही तब्दील करेगी !
इस मध्य विश्व का ध्यान नार्थ कोरिया , चीन , और पाकिस्तान की और है कि यह किसका पक्ष लेंगे ! हमारे देश पर दोनों की निगाह रहेगी कि हम अपनी स्थिति स्पष्ट करें जो बेहद संवेदनशील है ! पूरे विश्व की नज़रें इस समय चीन भारत इज़रायल ईरान नार्थ कोरिया और पाकिस्तान पर टिकी हैं , फिलहाल चीन और भारत ने सुरक्षापरिषद की वोटिंग से अनुपस्थिति रहना ही पसंद किया है और अपना निरपेक्ष रहना ही उचित माना है !