Friday, November 25, 2016

ईद को ख़तरा बताते, आज भी कुछ लोग हैं - सतीश सक्सेना

अमन को बरबाद करते,आज भी कुछ लोग है,
नफरतों का गान करते,आज भी कुछ लोग हैं !

रूप त्यागी सा, प्रबल आवाज, मन में धूर्तता !
देश का विश्वास हरते,आज भी कुछ लोग हैं !

रंग, सिवइयां जाने कब से, ही रहे हैं, साथ में,
ईद को ख़तरा बताते, आज भी कुछ लोग हैं !


धूर्त मन,मक्कार दिल,पर ओढ़ चादर केसरी,
देशभक्त स्वरुप रखते आज भी कुछ लोग हैं !

हमको लड़ना ही पड़ेगा , इन ठगों से, गांव में,

कौम को मुर्दा समझते,आज भी कुछ लोग हैं !

Wednesday, November 23, 2016

इक दिन के लिए द्वार पे , रहमान बन के आ - सतीश सक्सेना

किसने कहा कि दिल में तू मेहमान बनके आ, 
ये तेरी सल्तनत है, तू सुल्तान बन के आ !
इक दिन तो बोल खुल के, तड़पता मेरे बगैर !
दिल के गरीब एक दिन , धनवान बन के आ।
साँसे तो कुछ बाकी तेरे दीदार के लिए,
मुफलिस के पास कर्ज का भुगतान बन के आ !
कब तक यहाँ तड़पें सनम रह के भी बावफ़ा,
इक दिन के लिए द्वार पे , रहमान बन के आ !

पहली दो पंक्तियाँ सुदेश आर्या द्वारा लिखी हैं , उनके द्वरा अनुरोध किये जाने पर यह ग़ज़ल पूरी बन गयी !

Tuesday, November 15, 2016

सच कहूँ तो देश मेरा , जाहिलों का देश है - सतीश सक्सेना

सच कहूँ तो देश मेरा ,जाहिलों का देश है !
मूढ़,मूरख औ निरक्षर,काहिलों का देश है !

ढोर झुंडों की तरह आपस में लड़ते ही रहे 
जाति धर्मों में बंटे, लड़ते जिलों का देश है !

सुना करते थे बड़ों से कभी हम भी,मगर अब 
रक्षकों से ही लुटे , जर्जर किलों का देश है !

लड़कियां बाज़ार में चलतीं सहमती सी हुईं  
डूबतों को ताकते, जड़ साहिलों का देश है !

ढोंगियों के सामने, घुटनों पर बैठे हैं सभी !
संत बनकर ठग रहे, व्यापारियों का देश है !

देश मेरा भी जगेगा जल्द लेकिन इन दिनों,
स्वर्ण सपने बेंचते , कुछ धूर्तों का देश है !

Monday, November 7, 2016

हेल्थ ब्लंडर - सतीश सक्सेना

उम्र कुछ भी हो, मानव शरीर की क्षमताएं असीमित हैं , कल की इस रेस में , मैं धुंध , धुआं , थकान भुला कर दौड़ा और पहली बार अपना व्यक्तिगत रिकॉर्ड कायम करने में कामयाब रहा ! बचपन से हर जगह एक ही लिखा पढता रहा कि बुढ़ापा अभिशाप है , शरीर बीमार ही रहता है , बुढ़ापे में हम दौड़ भाग नहीं कर सकते आदि आदि और हमने जैसा सुना और जीवन में देखा, वैसा आसानी से मान भी लिया , इसी को ब्लॉक माइंडस कहते हैं न , हमने कभी खुद पर आजमाया ही नहीं और न कभी सोंचने की जहमत उठायी कि यह गलत भी हो सकता है !
मानव शरीर लंबे समय को जीवित रहने के लिए डिज़ाइंड है बशर्ते हम उसका ठीक से उपयोग समझ सकें , यह हर परिस्थितियों में अपने को ढाल सकता है बशर्ते हम उन परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए बेचैन होकर , उनका त्याग न कर दें ! पेंटर , कोयला मजदूर , खनन मजदूर , आटा चक्की , स्टोन क्रेशर , देसी चूल्हे पर फुकनी से धुआं फूंकती हमारी करोड़ों माएँ , बस डिपो की रिपेयर वर्कशॉप के मिस्त्री, कार स्कूटर रिपेयर शॉप मजदूर दिन भर में जितना धुआं एब्जॉर्व करते हैं उसकी कल्पना भी, इन पढ़े लिखे ब्लॉक माइंडस ने नहीं की होगी जो दिल्ली को प्रदूषित और न रहने लायक घोषित कर रहे हैं !
2 वर्ष पहले रिटायर होते समय मुझे, ब्रोंकाइटिस, हाई ब्लडप्रेशर, कॉन्स्टिपेशन, बढे वजन, निकली तोंद , हार्ट पल्पिटेशन, क्रोनिक खांसी, बढे कोलोस्ट्रोल, ट्रायग्लिसराइड , और बेहद आलस्य की शिकायत थी और विज्ञानं के हिसाब से यह सब दौड़ने में बाधक ही नहीं , घातक भी थे मगर मैं इन सबको जानते हुए भी नकार कर दौड़ा और इन सब बीमारियों से सिर्फ एक वर्ष में ही आसानी से बिना दवा, मुक्त हो चुका हूँ !
इस समय बहुत से बाबा लोग, योग को भुनाकर देश में करोड़ पति बन चुके हैं , उनका दावा है कि योग से सारे रोगों से मुक्ति मिल जायेगी और तो और बरसों से उपेक्षित पड़ा बिना किसी रिसर्च, आयुर्वेद भी आजकल चकाचक हो रहा है , बांछे खिली हुई हैं इन सब व्यापारियों की !
इनमें से कोई नहीं बताता कि कितने पुराने पुराने योग करने वाले , हार्ट अटैक से असमय ही मर गए , मेरे एक बेहतरीन मित्र जिन्हें योग की सारी क्रियाओं का नियमित ज्ञान था , पचास वर्ष की उम्र में , ही असमय चले गए मैं उनसे ही योग सीखता था , उनके जाने के साथ ही अपने आपको इन ब्लॉक धारणाओं से मुक्त किया कि योग हर व्याधि की एकमात्र दवा है !
जिस प्रकति से आपको पैदा किया है उसने ही रोग मुक्ति की शक्ति भी प्रदान की हुई है , किसी की भी मजबूत इच्छा शक्ति, उसे भीष्म पितामह बना सकती है , गंगापुत्र की इच्छा थी सूर्य के उत्तरायण में आने तक वे प्राण नहीं त्यागेंगे और वैसा ही हुआ भी ! शरीर में प्राणशक्ति बेहद शक्तिशाली होती है उसपर व्याधियों का कोई प्रभाव नहीं बशर्ते हम उसके काम में व्यवधान न डालें ! जुकाम होते ही दवा लेने भागते मूर्ख मनुष्य ने अपनी रोग निवारक शक्ति को ही नष्ट कर दिया है .....
शुरू से ऐसी ही ठानी
मिले, अंगारों से पानी
पिएंगे सागर तट से ही 
आंसुओं में डूबा पानी,
कौन आयेगा देने प्यार
हमारी सांस आखिरी में
हंसाएंगे इन कष्टों को 
डुबायें दर्द, दीवानी में !
बहुत कुछ समझ नहीं पाये, इश्क़ न करें किसी से यार !
मानवों से ही डर लागे 
पागलों में ही, यारी रे !!

सस्नेह मंगलकामनाएं !!
@अचंभित हूँ और चिंतित भी दिल्ली के प्रदूषण का डंका बजा है. बच्चों के स्कूल तक बंद हैं और आप उसी अंदाज में दौड़ रहे हैं.!!!
Devendra का कमेंट कल की पोस्ट पर 

#healthblunders
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