जिन प्यारों की, ठंडी छाया
में तुम पल कर बड़े हुए हो !
जिस आँचल में रहे सुरक्षित
जग के सम्मुख खड़े हुए हो !
बढ़ती उम्र, बीमारी भारी , रुग्ण शरीर, स्नेही आँखें
इनको कब से छोड़ अकेला ,
कैसे भूले , अम्मा को !
घर न भूले, खेत न भूले , केवल भूले, अम्मा को !
उस सीने पर थपकी पाकर
तुम्हें नींद आ जाती थी !
उस उंगली को पकडे कैसे
चाल बदल सी, जाती थी !
तुम्हें उठाने वे , पढ़ने को
रात रात भर जगती थींं ,
वो ताक़त कमज़ोर दिनों में,
धोखा देती , अम्मा को !
काले घने , अँधेरे घेरें , धीरे - धीरे , अम्मा को !
जिस सुंदर चेहरे को पाकर
रोते रोते चुप हो जाते !
अगर दिखे न कुछ देरी को
रो रो कर, पागल हो जाते !
जिस कंधे पर सर को रखकर
तुम अपने को , रक्षित पाते !
आज वे कंधे बीमारी से ,
दर्द दे रहे , अम्मा को !
इकला पन अब , खाए जाता, धीरे धीरे अम्मा को !
वही पुराना , आश्रय तेरा ,
आज बहुत बीमार हुआ है !
जिसने तुमको पाला पोसा
पग पग को लाचार हुआ है !
जब भी चोटिल पाया तुमको
उसकी आँखों में आंसू थे !
रातें बीतें , करवट बदले ,
नींद न आये , अम्मा को !
कौन सहारा देगा इनको , नज़र न आये अम्मा को !
कितने अरमानों से उसने
भैया तेरा व्याह रचाया !
कितनी आशाओं से उसने
अपना बेटा, बड़ा बनाया !
धुंधली आँखों रोते रोते
सन्नाटों में, घुलती रहती !
कैसा शाप मिला है भैया,
तेरे जन्म से , अम्मा को !
ब्याह रचाकर , कुछ बरसों में , भूले केवल अम्मा को !