लोकतंत्र में बेशर्मी से, धन की, लूट खसोट दिखाएँ !
धन के आगे बिकने बैठे, कितने काले कोट दिखाएँ !
जिन्हें देखकर दर्द उभरता, कैसे हंस कर गले लगाएं !
पुरवाई में तुमको कैसे, बड़ी पुरानी चोट दिखाएँ !
लम्बी दाढ़ी, भगवे कपडे, तुम कैसे पहचान सकोगे !
भव्य प्रभामंडल के पीछे ,कैसे उनके खोट दिखाएं !
हमको अखबारी लगता है,भिक्षुक धनवानों की दूरी
एकबार झोपड़ बस्ती में,थोक में रहते वोट दिखाएं !
खद्दर पहने हाथ जोड़ कर,सब की सेवा करने आये !
जब भी काम कराना चाहें,इनके आगे नोट दिखाएँ !
धन के आगे बिकने बैठे, कितने काले कोट दिखाएँ !
जिन्हें देखकर दर्द उभरता, कैसे हंस कर गले लगाएं !
पुरवाई में तुमको कैसे, बड़ी पुरानी चोट दिखाएँ !
लम्बी दाढ़ी, भगवे कपडे, तुम कैसे पहचान सकोगे !
भव्य प्रभामंडल के पीछे ,कैसे उनके खोट दिखाएं !
हमको अखबारी लगता है,भिक्षुक धनवानों की दूरी
एकबार झोपड़ बस्ती में,थोक में रहते वोट दिखाएं !
खद्दर पहने हाथ जोड़ कर,सब की सेवा करने आये !
जब भी काम कराना चाहें,इनके आगे नोट दिखाएँ !
सुन्दर प्रस्तुति । मनोहर शब्द-चयन । रोचक-रचना ।
ReplyDeleteसुन्दर कटाक्ष ........
ReplyDeleteअच्छा व्यंग्य
ReplyDeleteनोट दिखाने के नतीजे भी आने लगे हैं..!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteनोट से नोट
मिलाते चलो
जिससे नहीं
हो सकता
दो रुपये की
मूंगफली ले
सड़क पर छिलके
उड़ाते चलो :)
लोकतंत्र में बेशर्मी से धन की, लूट खसोट दिखाएँ !
ReplyDeleteधन के आगे घुटनों बैठे , कितने काले कोट दिखाएँ !
बिलकुल सहमत हूँ इस बात से लेकिन कुछ लोगों के लिए अभी भी धन ही सब कुछ नहीं है
एक बात गर्व से कहना चाहती हूँ अभी कुछ दिन पहले "भारतीय संस्कृति निर्माण परिषद्
हैदराबद ने इनको सिविल लाईन में अपनी ईमानदारी के लिए "आचार्य चाणक्य सदभावना पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, काले कोट में एखाद अच्छे व्यक्ति भी होते है :)
हमको अखबारी लगता है, जल घटने का शोर शराबा
ReplyDeleteचलो इंडियागेट में तुमको,जल में चलती बोट दिखाएँ !
हमारे गाइड ने सिर्फ दूर से ही इंडिया गेट दिखाया कहने लगा समय कम है
जल में चलती बोट नहीं देख पाये !
सभी सार्थक पंक्तियाँ अलग अलग अंदाज में है !
बहुत उम्दा भाव..बेहतरीन रचना ...
ReplyDeleteहमको अखबारी लगता है, जल घटने का शोर शराबा
ReplyDeleteचलो इंडियागेट में तुमको,जल में चलती बोट दिखाएँ !
पूरा देश जानता इनको , जग की सेवा करने आये !
जब भी काम कराना चाहें,इनको आकर नोट दिखाएँ !
behatarin bhawon ki abhiwyakti naman aapake sach ko bayan karane ko
रोचक-रचना ....सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह...बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
बढ़िया लिखा है सतीश जी |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार -
दूसरा शेर बढ़िया लगा |
ReplyDeleteबहुत सटीक और मारक.
ReplyDeleteरामराम.
समाज की सही तस्वीर
ReplyDeleteसटीक चोट,मारक शब्द ,सुथरी अभिव्यक्ति
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