घर में ख़ुशियाँ लाने वाले लोग कहाँ मिल पाते हैं
जीवन भर संग देने वाले, लोग कहाँ मिल पाते हैं !
अम्मा,दादी,चाची,ताई,किस दुनियां में चलीं गयीं ,
अम्मा,दादी,चाची,ताई,किस दुनियां में चलीं गयीं ,
बचपन याद दिलाने वाले लोग कहाँ मिल पाते हैं !
महज दिखावे के यह आंसू, आँख में भर के आये हैं,
संग , दर्द में रोने वाले , लोग कहाँ मिल पाते हैं !
अपने अपने सुख दुःख लेकर इस दुनियां में आये हैं
केवल सुख ही पाने वाले, लोग कहाँ मिल पाते हैं !
क्यों करते हो याद उन्हें, जो हमें अकेला छोड़ गए, अपने अपने सुख दुःख लेकर इस दुनियां में आये हैं
केवल सुख ही पाने वाले, लोग कहाँ मिल पाते हैं !
दूर क्षितिज में जाने वाले, लोग कहाँ मिल पाते हैं !
बढ़िया है आदरणीय-
ReplyDeleteशुभकामनायें -
कहाँ हैं अब दूसरों के दुःख में दुखी होने वाले लोग...पर नहीं, अब भी हैं.. और उनसे ही सृष्टि सुंदर है..
ReplyDeleteहमको अपने से मनचाहे ,लोग कहाँ मिल पाते हैं !
ReplyDeleteसारे जीवन साथ निभाने,लोग कहाँ मिल पाते हैं !
हर मनुष्य को जीवन का सफर अकेले ही तय करना होता है ! संगी, साथी सब मतलब के रिश्ते होते है, हाँ यदि मनचाहा साथ हो तो यह सफर थोडा आसानी से कट जाता है !
आज व्यथा और कल की कथा को उकेरते गीत
ReplyDeleteसच कहा आपने सुप्रभात संग प्रणाम
क्या किया जा सकता है , जो मिला है, उसी में संतुष्ट रहा जाए :)
ReplyDeleteलिखते रहिये।
अपने अपने सुख,दुःख लेकर इस दुनिया में आये हैं
ReplyDeleteकेवल सुख ही पाने वाले, लोग कहाँ मिल पाते हैं !
सुंदर रचना है |सुख दुख जीवन के दो पहलू ...साथ साथ चलते हैं ये बात तो सच है पर अभी भी दुनिया में अच्छे लोग ज़रूर हैं ...अनीता जी की बात से सहमत ....
बहुत सही कहा.
ReplyDeleteरामराम.
अपने अपने सुख,दुःख लेकर इस दुनिया में आये हैं
ReplyDeleteकेवल सुख ही पाने वाले, लोग कहाँ मिल पाते हैं .....बहुत सही..............
महज दिखावे के यह आंसू,आँख में भर के आये हैं ,
ReplyDeleteगैरों के संग रोने वाले , लोग कहाँ मिल पाते हैं ...
सच में आज ऐसे लोग नहीं मिलते जो दूसरों के दुख में आंसू बहाते हैं ...
अपने अपने सुख,दुःख लेकर इस दुनिया में आये हैं
ReplyDeleteकेवल सुख ही पाने वाले, लोग कहाँ मिल पाते हैं !
बहुत सुन्दर ! यही सच है !
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महज दिखावे के यह आंसू,आँख में भर के आये हैं ,
ReplyDeleteगैरों के संग रोने वाले , लोग कहाँ मिल पाते हैं !
दिल को छू जाने वाली कविता,जीवन का सच ......
आखिर दो लाइन्स तो बहुत ही बढ़िया हैं .....
मनचाहे लोगों से मिलना अगर जो संभव हो पाता
ReplyDeleteमन भाग-भाग उनके पीछे उस पार ही साथ निकल जाता ....
महज दिखावे के यह आंसू,आँख में भर के आये हैं ,
ReplyDeleteगैरों के संग रोने वाले , लोग कहाँ मिल पाते हैं !
बहुत बढ़िया आदरणीय .. बहुत ही सुन्दर भावनाओं को गूंथा है ..
आशा से आकाश थमा है।
ReplyDeleteकैसे बाटूँ प्रेम असीमित,
ReplyDeleteसब के सब घट उल्टे ही हैं।
बहुत सुन्दर रचना.... फूल तो मुश्किल से मिलते हैं..कांटो के साथ ही निबाह करके चलना होता है.
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteमिल तो जाते हैं लेकिन एक दिन साथ छूट ही जाता है !
ReplyDeleteलाजवाब-कुछ ऐसे भी हैं जो क्षितिज पर भी नहीं गए यही मुह फुलाये बैठे हैं :-( उनका क्या कीजै ?
ReplyDeleteबहुत अच्छा एक कमी सी लगी मुझे बेबाक कहूँ तो कई जगह तुक के चक्कर में भाव गड़बड़ा गए हैं |
ReplyDeletebahut sundar!!!!
ReplyDeletebahut hi achchhi lines,vry touchy
ReplyDeleteदूर क्षितिज में जाने वाले, लोग कहाँ मिल पाते हैं !
ReplyDeleteयही तो जीवन का सबसे दुखद पहलू है :(
दुनिया से जानेवाले कहाँ लौट के आते हैं ,जितना भी बुला लो ,यही सत्य को कोई न जान पाया ना ही झुठला सका।
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