जिसकी गोद में सिर रख रोया,
करुणमयी तुम कौन हो ?
बाल बिखेरे प्रेयसि जैसे,
आँख में ममता माता जैसी
नेह भरा स्पर्श लिए तुम ,
प्रकृति सुंदरी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
तपती धरती पर सावन की
बूँद गिरी हरियाली आयी
जैसे पतझड़ के मौसम में
अमराई भर आई हो !
ऐसे आईं तुम जीवन में
महक उठी दुनिया सारी
मैं निर्धन पहचान न पाऊँ ,
राजलक्ष्मी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
कितना समझाता हूँ मन को
पर असफल ही रहता हूँ
कैसा प्यार चाहता तुमसे
यह मुझको मालूम नहीं
कजरारी आँखों की भाषा
चातक के दिल की परिभाषा
निश्छल मन मैं जान न पाऊँ ,
राजनंदिनी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
करुणमयी तुम कौन हो ?
बाल बिखेरे प्रेयसि जैसे,
आँख में ममता माता जैसी
नेह भरा स्पर्श लिए तुम ,
प्रकृति सुंदरी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
तपती धरती पर सावन की
बूँद गिरी हरियाली आयी
जैसे पतझड़ के मौसम में
अमराई भर आई हो !
ऐसे आईं तुम जीवन में
महक उठी दुनिया सारी
मैं निर्धन पहचान न पाऊँ ,
राजलक्ष्मी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
कितना समझाता हूँ मन को
पर असफल ही रहता हूँ
कैसा प्यार चाहता तुमसे
यह मुझको मालूम नहीं
कजरारी आँखों की भाषा
चातक के दिल की परिभाषा
निश्छल मन मैं जान न पाऊँ ,
राजनंदिनी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
दो गुलाब की पंखुड़ियों से
प्यासे ओठों को छू जाना
तपते चेहरे को आंचल
से ढांक मधुरिमा पहुँचाना
ऐसा प्यार तुम्हारा पाकर,
इतना क़र्ज़ तुम्हारा लेकर
मैं याचक पहचान न पाऊँ ,
प्रणय सुंदरी कौन हो ??
प्रणय सुंदरी कौन हो ??
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
आँख में ममता माता जैसी
ReplyDeleteनेह भरा स्पर्श लिए तुम ,
प्रकृति सुंदरी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
" very impressive, touching and emotional thoughts.... "
Regards
बाल बिखेरे प्रेयसि जैसे
ReplyDeleteआँख में ममता माता जैसी
नेह भरा स्पर्श लिए तुम ,
प्रकृति सुंदरी कौन हो ?
atyant sudar bhav , pant ji ki jhalak dikhai de rahi hai aapki lekhni me. likhte rahiye.
बाल बिखेरे प्रेयसि जैसे
ReplyDeleteआँख में ममता माता जैसी
नेह भरा स्पर्श लिए तुम ,
प्रकृति सुंदरी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
बहुत गहन और मार्मिक अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !
Excellent sundar expressive kavitha..... Very Beautiful
ReplyDeleteRegards
अरे, बहुत सुन्दर! भावों का पूरा इन्द्रधनुष है!
ReplyDeleteसुन्दर, इसमें तो भावों का पूरा इन्द्रधनुष है!
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी!
ReplyDeletesundar bhaav..
ReplyDeleteतपती धरती पर सावन की
ReplyDeleteबूँद गिरी हरियाली आयी
जैसे पतझड़ के मौसम में
अमराई भर आई हो
ऐसे आईं तुम जीवन में
महक उठी दुनिया सारी
मैं निर्धन पहचान न पाऊँ
राजलक्ष्मी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
आप बहुत अच्छा लिखते हैं। बधाई स्वीकारें।
जो भाव इस कविता में हैं उन्हों ने इसे अद्भुत बना दिया है।
ReplyDeleteप्रिय सतीश,
ReplyDeleteइस कविता ने तो हिला कर रख दिया.
"चातक के दिल की परिभाषा"
सिर्फ जिन्होंने चातक के बारे में पढा है वे ही इस पंक्ति की गहराई को समझ सकेंगे.
"जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?"
उस करूणामई से हर कोई मिलना चाहेगा, आशीर्वाद लेना चाहेगा!!
सस्नेह -- शास्त्री
"चातक के दिल की परिभाषा"
Deleteसिर्फ जिन्होंने चातक के बारे में पढा है वे ही इस पंक्ति की गहराई को समझ सकेंगे.
please put some light on this. i am ingnorant ragarding this 'chatak thing'.
बाल बिखेरे प्रेयसि जैसे
ReplyDeleteआँख में ममता माता जैसी
नेह भरा स्पर्श लिए तुम ,
प्रकृति सुंदरी कौन हो
सतीश भाई....बहुत खूब...बहुत सुंदर शब्द और भाव से सजाया है आप ने अपनी इस रचना को...बधाई.
नीरज
सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसतीश जी आपका स्वांत सुखाय लिखना भी पाठक हिताय हो जाता है /गीत सोच विचार कर लिखे भी नहीं जाते है सोच विचार कर फिल्मी गीर लिखे जाते हैं और उसके एवज में पैसा मिलता है वह बिकाऊ गीत हो जाता है मन में जो भावः उठें उनकी अभिव्यक्ति यथावत हो जाए उसकी बात ही कुछ और होती हैं /बनावट के साथ लिखी रचना मानव के अंतकरण को छू नहीं पाती है /रचना का पहला पद भावात्मक है तो दूसरा पद प्राकृतिक सुन्दरता लिए हुए है /तीसरा पद जिज्ञासा से परिपूर्ण है /कजरारी आँखों की भाषा चटक के दिल की परिभाषा बहुत ही सुंदर बन पड़ा है
ReplyDeleteवाहवा बंधु... सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकारें..
ReplyDeleteप्रिय सक्सेना जी /यहाँ राजस्थान की तहसील पिडावा में हूँ कल आपकी कविता पढी मैं संजय जैन के घर बैठा था वहीं उनके साथ संयुक्त टिप्पणी दे दी थी -अपने सोचा होगा की ये किस बृजमोहन के साथ टिप्पणी है /अब मैं लाईट ले यार पर जारहा हूँ /
ReplyDeleteकितना समझाता हूँ मन को
ReplyDeleteअसमंजस में रहता हूँ,
कविता आप की अच्छी लगती
साथ साथ ही बहता हूँ |
सतीश भाई,
ReplyDeleteआप सचमुच बहुत सरस
और संवेदनशील रचनाकार हैं.
आपकी अभिव्यक्ति में निश्छल
भाव-बोध कराने की क्षमता है.
आपकी लेखनी आपके आत्म कथ्य की
सच्चाई का प्रत्यक्ष प्रमाण है....बधाई.
===============================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
लाईट ले यार पर अभी नया लेख लिखा नहीं
ReplyDeleteयह मुझको मालूम नहीं
ReplyDeleteकजरारी आँखों की भाषा
चातक के दिल की परिभाषा
निश्छल मन मैं जान न पाऊँ
राजनंदिनी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?
kafi achchhi kavita hai.
Bahut Sundar.
ReplyDeleteहे भगवन! कितनी सुन्दर और भाव-पूर्ण कविता है यह, इस लाजवाब रचना के लिए आपको नमन!
ReplyDeleteइस रचना को फिर से ब्लॉग पर सजायिये
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत भाव है !
to whom this poem is addressed. please enlighten.
ReplyDeleteharry
i looked up in dictionary to find the meaning of vama = wife. now i got it. nice poem. thanks
ReplyDeleteplease put some light on this- i am ingnorant ragarding this 'chatak thing'.
ReplyDeletehttp://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%95
Deletei have read this page but what is its relevance to this poem.
Deleteसातों भावों को अपने में समोये,दिल के स्तर पे उतरता सच्चा प्यार मिलता है क्या--अनूठी प्यारी अभिव्यक्ति आपकी --गहन सोच।
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