आदरणीय ध्रुव गुप्त की दो पंक्तियाँ इस रचना के लिए प्रेरणा बनी हैं , उनको प्रणाम करते हुए ……
यदि रूठोगे कहीं तुम्हें हम , रोज मनाने आएंगे,
चाहा सिर्फ तुम्हीं को हमने, ये बतलाने आएंगे !
यदि रूठोगे कहीं तुम्हें हम , रोज मनाने आएंगे,
चाहा सिर्फ तुम्हीं को हमने, ये बतलाने आएंगे !
भूल न जाना मुझको वरना, हौले हौले रातों के
अनचाहे सपनों में, अक्सर खूब सताने आएंगे !
सुना, चाँदनी रातों में तुम भूखे ही सो जाते हो
अनचाहे सपनों में, अक्सर खूब सताने आएंगे !
सुना, चाँदनी रातों में तुम भूखे ही सो जाते हो
थाली मीठी यादों की ले संग खिलाने आएंगे !
खूब सताएं दुनियाँ वाले, वादे छीन न पाएंगे
खूब सताएं दुनियाँ वाले, वादे छीन न पाएंगे
जितना काटें बांस, हरे हो, नए सामने आएंगे !
कैसे निंदिया खो बैठे हो, अवसादों के घेरों में
कैसे निंदिया खो बैठे हो, अवसादों के घेरों में
सनम सुलाने तुम्हें , हमारे गीत ढूंढते आएंगे !