आज हम मुद्दतों के बाद , वहाँ जाएंगे !
ये तो तय है ,वे मुझे देख के घबराएंगे !
एक अर्से के बाद,दर पे उनके आया हूँ !
सामने पा ,उन्हें अल्लाह याद आएंगे !
काश उस वक़्त,सहारे के लिए हो कोई !
वे मुझे देख के हर हाल, लडख़ड़ायेंगे !
वे तो शायद मुझे, पहचान ही नहीं पाएं !
जवां आँखों से छिने ख्वाब याद आएंगे !
यादें उनको तो वहीँ छोड़ के आना होगा !
वरना मिलने पे तो , वे होंठ थरथराएँगे !
ढाई आखर को उन्हें भूल के आना होगा !
ReplyDeleteवरना याद आने पे , वे होंठ थरथराएँगे !
........वाह क्या बात है..ही पुराना ज़बरदस्त अंदाज़ :))
तुझे देख कर अगर
ReplyDeleteलड़खड़ाना होगा
पता पहले से
होनी चाहिये ये बात
उस दिन कुछ भी
पी के नहीं आना होगा । :)
बहुत खूब :)
सचमुच ढाई आखर भूलने का वक्त क्या आ पहुंचा! ?
ReplyDeletesir ji wakai padhate padhate gungunane hi lage.... maza aa gaya
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर _/\_
ReplyDeleteसीधी बात...
ReplyDeleteवे तो शायद मुझे, पहचान ही नहीं पाएं !
ReplyDeleteपर इन आँखों से छिने ख्वाब याद आएंगे !
...वाह..क्या बात है...बहुत सुन्दर...
क्या बात है
ReplyDeleteजबरदस्त
पसंद आया |
ReplyDeleteएक अर्से के बाद, दर पे उनके आया हूँ !
ReplyDeleteदेख मुझको, उन्हें अल्लाह याद आएंगे ..
बहुत खूब ... जुड़ा अंदाज़ की रचना है ... हर शेर जैसे चुभती बात कहता हुआ ...
भाव - प्रवण , सुन्दर गीत ।
ReplyDeletevery well said. absolutely lovely.
ReplyDeleteकाश उस वक़्त,सहारे के लिए हो कोई !
ReplyDeleteवे मुझे देख के, हर हाल, लडख़ड़ायेंगे !
वे तो शायद मुझे, पहचान ही नहीं पाएं !
पर इन आँखों से छिने ख्वाब याद आएंगे !
सीधी और सटीक पंक्तियाँ
बहुत खूब
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