आज स्वप्न में देख तुम्हें ,
झंकार उठी वीणा फिरसे !
शायद जैसे तुमने मुझको
याद किया अन्तरमन से !
जैसे तड़प उठी हो सजनी !
करके यादें, प्यार की !
लगता पहली बार महकती, बगिया अपने प्यार की !
कैसे भूल सकी होगी तुम ?
मिलना पहली बार का !
कैसे सह पायी होगी इस
तरह बिछड़ना प्यार का ?
लगता कोई सखी सहेली ,
याद दिलाये, प्यार की !
मन में उठती आज महक ये, उसी हमारे प्यार की !
कैसे प्रिये ,छिपा पाऊं यह
प्रीति भला अपने मन में !
कैसे , किसे, बता पाऊं
जो टीस उठे मेरे दिल में !
मन में आता है बतला दूं ,
सबको बातें प्यार की !
लगता सारा गगन पढ़ रहा, पोथी अपने प्यार की !
लोग पूछते तरह तरह के
प्रश्न, लिए शंका मन में ,
किसको क्या बतलाऊं कैसा
रंग चढ़ा ?व्याकुल मन में ,
गली गली में चर्चा चलती,
सजनी अपने प्यार की !
लिख लिख बारम्बार फाड़ता, चिट्ठी अपने प्यार की !
Ist part of this poem is available on following link ....
http://satish-saxena.blogspot.in/2010/03/blog-post_12.html
झंकार उठी वीणा फिरसे !
शायद जैसे तुमने मुझको
याद किया अन्तरमन से !
जैसे तड़प उठी हो सजनी !
करके यादें, प्यार की !
लगता पहली बार महकती, बगिया अपने प्यार की !
कैसे भूल सकी होगी तुम ?
मिलना पहली बार का !
कैसे सह पायी होगी इस
तरह बिछड़ना प्यार का ?
लगता कोई सखी सहेली ,
याद दिलाये, प्यार की !
मन में उठती आज महक ये, उसी हमारे प्यार की !
कैसे प्रिये ,छिपा पाऊं यह
प्रीति भला अपने मन में !
कैसे , किसे, बता पाऊं
जो टीस उठे मेरे दिल में !
मन में आता है बतला दूं ,
सबको बातें प्यार की !
लगता सारा गगन पढ़ रहा, पोथी अपने प्यार की !
लोग पूछते तरह तरह के
प्रश्न, लिए शंका मन में ,
किसको क्या बतलाऊं कैसा
रंग चढ़ा ?व्याकुल मन में ,
गली गली में चर्चा चलती,
सजनी अपने प्यार की !
लिख लिख बारम्बार फाड़ता, चिट्ठी अपने प्यार की !
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आप इस पक्ष को भी शब्दों से इतना सशक्त निभा ले जाते हैं, प्रणाम।
ReplyDeletekyaa andaaz or kya alekhn he mere bdhe bhayi mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeletebahut hi achchhi rachna,
ReplyDeletehar koi ise pasand karega
अभी हाल ही में किसी कार्यक्रम में फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र से किसी ने पूछा कि आपको अपनी जवानी के दिन याद करके कैसा लगता है? वे बोले- मेरी जवानी के दिन अभी बीते कहाँ हैं? मैं तो अभी भी १२-१५ शादियाँ कर सकता हूँ। इसके बाद जोर का ठहाका लगाया उन्होंने।
ReplyDeleteइस ज़ज़्बे को सलाम करते हुए मैं आपके भावों को भी उसी आइने में देखता हूँ। थ्री सैल्यूट्स टु यू।
सतीश जी ,
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ,ये ख़ज़ाना कहां छिपा कर रखा था
सच पूछिये तो ये गीत मुझे पिछले गीत से भी ज़्यादा अच्छा लगा ,इस की लयबद्धता और भावों का सुंदर शब्दों में प्रकटीकरण पाठक को बिना पूरा पढ़े हटने की इजाज़त नहीं देता
बधाई स्वीकार करें
सतीश जी ... ये कहना चाहूंगी की इंसान की उम्र उतनी ही होती है जितना वी महूस करता है ... kahin padha tha "its all mental" ... और प्रेम और कला की तो मुझे बिलकुल ही नहीं लगता ही कोई उम्र होती है ... वक़्त के साथ बढ़ते बढ़ते प्रेम कई ऊँचाइयों को छूता है ... जैसा की 'सुफिज्म' में या 'सूफी' रचनाओं में देखने को मिलता है ... इसमें कुछ भी गलत नहीं ... और जहां तक खुश होने ये मुस्कुराने की बात है ... कोई क्या कहेगा ये सोच कर जीना ही छोड़ दे क्या ?? ... आप हमेशा खुश रहिये दिल खोल कर हसिये ... और जो दिल कहे वो लिखिए ... हम तक पहुंचिए ... शुक्रिया इस बेहतरीन रचना के लिए ...
ReplyDeleteक्या प्रेम करने की भी कोई उम्र होती है ????
ReplyDeleteअगर हाँ तो इस उम्र का निर्धारण किसने किया ?? प्रेम तो एक अभिव्यक्ति है जो किसी भी उम्र में कभी भी हो सकती है....ये तो एक ऐसा आचरण है जो जीवन में नित नए उल्लास रुपी रंग भरता है....
यही तो त्रासदी है हमारे समाज की, जिसको भी थोड़ा भी समान देते है उनसे आशा पाल बैठते है नैतिकता के सोपानो के उच्चतम स्तर की ................ और नैतिकता की परिभाषा भी आप ही आप घड लेतें है........................ अब किसी सजन का अपनी सजनी के लिए प्रेमोद्गार व्यक्त करना कहाँ की अनैतिकता या अशोभनीय हो गयी...............निश्चल रसभरी बड़ी प्यारी लगी आपकी दोनों रचनाएं
ReplyDelete"सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग"
ReplyDeleteपहले भी आपकी बेहतरीन रचना पढ़ी थी,
आज फिर एक भावमयी रचना सामने है.
आपकी लेखनी दिल को जीतने में पूर्णतयः सक्षम है. बहुत ही सुन्दर ..
हार्दिक बधाई
शुभ कामनाएं
भावनाओं, अनुभूतियो और संवेदनाओं की कोई उम्र नहीं होती।
ReplyDeleteपुख्तता अनुभुतियों की मोहताज नहीं होती, वह तो अनुभवो से ही होती है।
अनुभवो की याद सदा आनंद ही देती है।
kavita men vyakt sare bhaw apne hi hon yah zaroori nahin.kayee baar doosron ke bhawon ko bhi shabdon ke madyam se jeena padta hai.
ReplyDeletelikhkar bar-bar phadta,pati tere pyar ki.bahut achchhi lagi aapki kavita aur bhoomika.sahi kah rahe hain aap jeevan jeene ke liye hansna aur khush rahna bahad zaroori hai aur aap jaise shai samajhte hain vaise hi karen.mer blog par aane ke liye shukriya,aage bhi aayen aur mera utsah verdhan karen.aage se title bhi hindi me hi dekhenge,dhanyawad...
ReplyDeleteसर जी तुस्सी ग्रेट हो...
ReplyDeleteसच बताऊँ, तो ये हर उम्र का प्रोब्लम है... लिखते वक़्त सोचते थे कि लोग पढेंगें तो क्या कहेंगें??? फ़िर अन्दर से कही से एक आवाज़ आई कि "तू तो हमेशा ही experiments में यकीन रखती है, और यहाँ खुद के लिए आई थी... तो फ़िर ये लोग???"
फ़िर सोचा हटाओ... जो होगा देखा जाएगा...
इसीलिए ऐसा लग रहा है जैसे इस भंवर में मैं अकेली नहीं थी... :)
कविता बहुत प्यारी.. सही 2nd part है...
सत्य को समझना जितना मुश्किल है,साहस के साथ उसकी अभिव्यक्ति उससे भी अधिक कठिन। परतों में जीते मनुष्य की त्रासदी को आपने संक्षेप में आवाज़ दी है। शुक्रिया। गीत भी अच्छा बन पड़ा है।
ReplyDeleteये भी अच्छी कही पर अब लोगों के कहने से क्या डरना लोग हैं तो कहेंगे ही लोगों का काम है कहना
ReplyDeleteबधाई स्वीकार करें
सचमुच तुस्सी बड़े ग्रेट हो. बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteसुन्दर कविता कही आपने, पहले पहले प्यार के जैसी
ReplyDeleteभाई साहब प्रेम की कोई उम्र नही होती,
बल्कि मेरा मानना तो ये है कि परिपक्व उम्र का प्रेम ज्यादा परिपक्व होता है
“प्रेम वो दवा है जो एक्सपायरी डेट के बाद भी काम करती है“
pahli baar nazren chura gaye the hum
ReplyDeletelekin aisa har baar nahi chalega....
pranam
प्रेम की अनूभूति लिए बेहद सुंदर रचना .....
ReplyDeleteबहुत शानदार, गीत--बधाई---बस अन्तिम टेक में तुकान्त भिन्नता होगयी है( तेरे नाम की..).सुधर सकती है....
ReplyDeleteप्रेम उम्रजनित नहीं होता,उसके स्वरूप ज़रूर भिन्न प्रकार के होते हैं। कुंठा,हताशा और कृत्रिमता ने हमारे जीवन को ऐसा घेर रखा है कि हम बहुत अपनी मौलिकता को भी आवाज़ नहीं दे पा रहे।
ReplyDeletechha gaye Satish sir......:)
ReplyDeletesabne bahut kuchh kah diya....apan to yahi kahenge....kash aise pyare bhaw hamare mann me panap paye..:)
सतीश भाई, मल्लिका पुखराज आप और हम जैसों के लिए ही गा गई हैं-
ReplyDeleteहवा भी खुशगवार है, गुलों पे भी निखार है
तरन्नुमें हज़ार हैं, बहार पुरबहार है,
कहां चला है साक़िया, इधर तो लौट इधर तो आ,
अरे ये देखता है क्या, उठा सुबू, सुबू उठा
सुबू उठा प्याला भर, प्यार भर के दे इधर.
चमन की सिमट कर नज़र, समां तो देख बेखबर,
वो काली काली बदलियां, उफ्क पे हो गई अयान,
वो इक हजुम-ए-मयकशां, है सु-ए-मयकदां रवां,
ये क्या गुमां है बदगुमां, समझ ना मुझ को नातवां,
ख्याल-ए-ज़ुहाद अभी कहां,
अभी तो मैं जवां हूं,
अभी तो मैं जवां हूं...
वैसे उम्मीद की हद एक ये भी है-
एक 99 साल की बड़ी बी मोबाइल स्टोर पर जाकर बोलीं...मुझे लाइफटाइम रिचार्ज कार्ड चाहिए...
जय हिंद...
श्रंगार पक्ष को इतनी कुशलता से निभाना एक चुनौती भरा काम है जिसे बड़ी सुन्दरता से निभाया है आपने.
ReplyDeleteकमाल के गीत लिखते हैं आप तो.बेहद खूबसूरत.
ReplyDeleteप्रेम के बिना भी जीवन कोई जीवन है !
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
हम तो वकील हैं भाई, हमारी जवानी तो पचास पार शुरू होती है।
ReplyDelete@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ,
ReplyDeleteआपके आने का आभार !
@ इस्मत जैदी ,
आपके आने से निस्संदेह हिम्मत अफजाई होती है ...आभार
@ क्षितिजा ,
ठीक कह रही हो ...मैं आपसे सहमत हूँ !
@ क्रिएटिव मंच ,
आपने पसंद किया ...अच्छा लगा !
‘जीवन को जीने का प्रयास करें ...
ReplyDeleteयकीन करें, जीवन के कष्ट बहुत कम लगने लगेंगे’
सत्य वचन प्रभू :)
@ डॉ श्याम गुप्ता ,
ReplyDeleteध्यान दिलाने के लिए आपका आभार ! नव वर्ष की शुभकामनायें स्वीकार करें !
प्रणय निवेदनो की परंपरा में एक और अमूल्य कड़ी . इत्ते लोगों ने ग्रेट लिखा है . तो मै ग्रेटेस्ट लिख लेता हूँ . इसको अतिश्योक्ति mat मान लीजियेगा .
ReplyDeleteलोग पूंछते तरह तरह के
ReplyDeleteप्रश्न, लिए शंका मन में ,
किसको क्या बतलाऊं कैसा
रंग चढ़ा व्याकुल मन में ।
एक सच्चा प्रेम गीत।
सक्सेना जी, पाठक के मनोभावों से तादात्म्य स्थापित कर लेने वाली रचना चिरजीवी और सर्वकालिक
होती है। इस गीत में ये गुण हैं।
is rachna ko padh kar to dil ki ek ichha ne sir uthaya ki agar aisa ho pata ki aap ke suro me, apki awaaz me ye geet aapse gate hue suna jata to kya sama bandh jata.
ReplyDeleteme imagine karne ki koshish kar rahi hun. :)
hatts off for this poem.
अज़ी अभी आपकी हमारी उम्र ही क्या है ।
ReplyDeleteलगे रहो भैया । यही तो खेलने खाने के दिन हैं ।
वो क्या कहते हैं --हाँ नहीं तो । :)
हम आपके साथ हैं।
ReplyDeleteलोग पूंछते तरह तरह के
ReplyDeleteप्रश्न, लिए शंका मन में ,
किसको क्या बतलाऊं कैसा
रंग चढ़ा ?व्याकुल मन में ,
गली गली में चर्चा चलती, सजनी अपने प्यार की !
लिख लिख बारम्बार फाड़ता , पाती अपने प्यार की !
सतीश जी पिछली पोस्ट तो पुराणी कह सार लिया ...पर यह तो बिलकुल तरोताजा है ....
कौन है वो .....?
कैसे तुमने जानती है ...?
दिल से पहचानती है ....?
अब फाड़ने की जरुरत नहीं बस यहीं छापते रहे .....
बात उन तक पहुँच ही जाएगी .....
सकारात्मक जीवन जीने की दिशा में आपके विचार जितने उपयोगी और स्पष्ट हैं आपकी कविताएँ अन्दर के उतने ही बालपन का सजीव चित्रण भी कर रही लगती हैं ।
ReplyDeleteद्विधा रहित हो कर वही करें जो आपको ठीक लगे .
ReplyDeleteकिसी के कहने की चिन्ता छोड़िये !
सुन्दर कविता कही आपने, पहले पहले प्यार के जैसी
ReplyDelete...........बेहद खूबसूरत.
सर जी तुस्सी ग्रेट हो...
ReplyDeleteसर जी तुस्सी ग्रेट हो...
सर जी तुस्सी ग्रेट हो...
सर जी तुस्सी ग्रेट हो...
kuch to log kahenge...logon ka kam hai kehna.....:)zamane ki yahi reet hai satish ji..na jane kab badlegi...
ReplyDeletepoonam
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteप्रणय निवेदन प्रथम और द्वितीय एक साथ पढ़ा.
ReplyDeleteकविता में इस्तेमाल करने के लिए आपके पास
शब्दों का भण्डार है. आप शब्दों के संयोजन भी
अद्भुत तरीके से करते हैं.
दोनों निवेदन बहुत सुन्दर लिखा है आपने.
आज स्वप्न में देख तुम्हें
ReplyDeleteझंकार उठे वीणा के स्वर
शायद जैसे तुमने मुझको
याद किया अन्तरमन से !
बहुत सुंदर रचना...बधाई ...
bahut hi sach baat likhi hain aapne apni kavita ki shuruwati panktiyon me,
ReplyDeletemujhe bahut bahut achhi lagi aapki bahtreen soch aur badhiprastuti ke liye hardik naman.
poonam
दोनों निवेदनों में भावों की आधारभूमि पर शब्द खूब नाचे हैं ! अच्छे गीत लगे ! लय काबिले-तारीफ़ है !
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का उम्र से कोई रिश्ता नहीं होना चाहिए. मन तो बड़ा नहीं होता हमारी सोच बदल जाती है लेकिन मन तो उसके अनुरुप ही जीने दिया जाय तो अच्छा है. कोई क्या कहेगा? फिर क्या जीना छोड़ दिया जाय? सब के साथ अपने मन के अनुसार जीने से ही परम सुख मिलता है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteप्रेम गीत लेखन में उम्र का हस्तक्षेप तो नहीं है.
http://kriwija.blogspot.com/2011/01/blog-post.html
ReplyDeleteअम्मा चली गयी
बहन रेखा जी की माता जी का देहांत हो गया है .
इस दुःख भरी घड़ी में आप भी चलें और अपने साथियों को भी सुचना दे दें .
धन्यवाद
सतीश भाई ,
ReplyDeleteश्री एम वर्मा साहब ने उम्र के हस्तक्षेप के दायरे से सिर्फ प्रेम गीत 'लेखन' को ही बाहर किया है और उनके इस सिद्धांत से मैं भी सैद्धांतिक रूप से सहमत हूं :)
गीत सुन्दर है, बहुत सुन्दर है.
ReplyDeleteउम्र बाँध नही सकती प्रीत की सीमा रेखा को
ReplyDeleteप्रति पल बढती जाती है , फिर रोके भी क्यो इस मन को
बहुत सुंदर गीत लिखे आपने
आज स्वप्न में देख तुम्हें
ReplyDeleteझंकार उठे वीणा के स्वर
शायद जैसे तुमने मुझको
याद किया अन्तरमन से
क्या बात है भाई... बहुत सुन्दर गीत. अपके गीत पढ के लगता है कि आप मूलत: गीतकार ही हैं. बहुत सधे हुए और सुन्दर गीतों की रचना की है आपने.
बहुत खूब! दुआ है कि आपके सारे प्रणय निवेदन मंजूर कर लिये जायें!
ReplyDeleteआज स्वप्न में देख तुम्हें
ReplyDeleteझंकार उठे वीणा के स्वर
शायद जैसे तुमने मुझको
याद किया अन्तरमन से!
apka pranya nivedan bar-bar padhane ka dil karta hai. lagta hai jaise mere hi man ki vyatha ho.
लोग पूंछते तरह तरह के
ReplyDeleteप्रश्न, लिए शंका मन में ,
किसको क्या बतलाऊं कैसा
रंग चढ़ा ?व्याकुल मन में ,
गली गली में चर्चा चलती, सजनी अपने प्यार की !
लिख लिख बारम्बार फाड़ता , पाती अपने प्यार की !
PYAR KIYA TO DARNA KIYA--------
प्रेमी मन का इतना सहज चित्रण - आपकी कलम को नमन - बहुत सुंदर प्रणय गीत - बधाई तथा पढवाने के लिए आभार
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति.मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ....
ReplyDeletebahut sundar git ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeleteश्रृंगार रस के इतने दिललुभावने गीत--बधाई
ReplyDelete