अब अम्मा से उनकी जरूरतों के बारे में कोई नहीं पूछता, सब अपने अपने में व्यस्त है, खुशियों के मौकों और पार्टी आयोजनों से भी अम्मा को खांसी खखार के कारण दूर ही रखा जाता है !
बाहर डिनर पर न ले जाने का कारण भी हम सबको पता हैं..... कुछ खा तो पायेगी नहीं अतः होटल में एक और प्लेट का भारी भरकम बिल क्यों दिया जाये, और फिर घर पर भी तो कोई चाहिए ...
और परिवार के मॉल जाते समय, धीमे धीमे दरवाजा बंद करने आती माँ की आँखों में छलछलाये आंसू कोई नहीं देख पाता !
भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील नात कही...मेरे आँखों से आँसू छलक आये......माँ होती ही ऐसी है,पर हम .......बहुत सुंदर...
ReplyDeleteमाँ के लिए एक सार्थक लेख
ReplyDeleteसतीश जी, कहना चाहूंगा माँ के बारे मे आपने जो लिखा है वो शहरो मे होता है गाँव मे अभी भी स्थिति थोडी सी जुदा है।
आभार
त्रासदी है सतीश जी ! पर यही शायद नियती है उगते सूर्य को ही प्रणाम करते हैं सब ढलते को कोई नहीं.
ReplyDeleteपर हमें याद रखना चाहिए कि यही अवस्था एक दिन हम पर भी आएगी.
ekdam bhwuk kar diya aapne.
ReplyDeleteआपकी इस भावपूर्ण अभिव्यक्ति ने अपनी ही एक कविता की याद दिला दी। कुछ अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ...
ReplyDeleteनए जमाने के हँसों ने
चुग डाले
रिश्तों के मोती
और पड़ोसन से कहती है
दादी फिर
आँसू को पानी ...
कई बार लगता है की हम खुद ऐसी बाते कर करके माँ की स्थिति और ख़राब कर देते है | माँ बाप की ये स्थिति खुद उन पर निर्भर है यदि वो हमेसा घर के सक्रीय सदस्य बने रहे खुद को परिवार में और परिवार को खुद में शामिल करते रहे तो ये स्थिति आएगी ही नहीं कई घरो में देखा है बिना दादा दादी के कोई काम पुरा नहीं होता है | वरना कुछ माँ तो ऐसी ही होती है जो सारा जीवन घर पर बच्चो के साथ ही रही और पति देव सदा दोस्तों के साथ ही घुमते रहे और उसने कुछ नहीं कहा | अब सोचिये की बुढ़ापे में उस माँ की स्थिति क्या होगी |
ReplyDeleteबडी सम्वेदनशील है, माँ की अनुभूतियों की अनुभूति!!
ReplyDeleteहमारे परिवार में तो आज भी अम्मा की अनुमति के बिना पत्ता नहीं हिलता है और होटेल का बिल भी वही भरती हैं, जब ख़ुद हम सबों को लेकर जाती हैं!! इसलिये हमारे परिवार में "उसकी" इबादत कोई नहीं करता "इसकी" इबादत सभी करते हैं! हमारे यहाँ तो बस एक ही प्रार्थना गाई जाती हैः
ReplyDeleteजिसको नहीं देखा हमने कभी
फिर उसकी ज़रूरत क्या होगी,
ऐ माँ! तेरी सूरत से अलग,
भगवान की सूरत क्या होगी!
आज सुबह मुंबई मिरर के फ्रंट पेज पर खबर पढ़ी कि सात बच्चों की माँ...अपने ही घर के बाहर अकेली बेसहारा छोड़ दी गयी है. (घर में ताला लगा है) सातो बच्चे साधन-संपन्न हैं.
ReplyDeleteपड़ोसियों ने पुलिस की मदद से जबरदस्ती मुंबई में ही रहनेवाले एक बेटे को माँ को अपने घर पर ले जाने के लिए मजबूर किया.
और अब दिन के समापन पर यह पोस्ट....मन बहुत दुखी हो गया.
दिल छूने वाली रचना।
ReplyDeleteआदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार ! … और तत्पश्चात् क्षमायाचना ! आपकी पिछली इतनी सारी पोस्ट्स पर आ'कर भी अनुपस्थित रहा …
इधर आप बहुत सक्रिय रहे । अलग अलग विषयों-भावों वाली पिछली सारी पोस्ट्स के लिए बधाई !
और आज मां से संबंधित पोस्ट …
आप भी बिल्कुल मेरे ही जैसे लगते हैं … क्या कहूं !
राजस्थानी की मेरी एक रचना मा मैं आपके लिए यहां सादर प्रस्तुत कर रहा हूं -
मा
जग खांडो , अर ढाल है मा !
टाबर री रिछपाळ है मा !
जायोड़ां पर आयोड़ी
विपतां पर ज्यूं काळ है मा !
दुख - दरियाव उफणतो ; जग
वाळां आडी पाळ है मा !
मैण जिस्यो हिरदै कंवळो
फळ - फूलां री डाळ है मा !
जग बेसुरियो बिन थारै
तूं लय अर सुर - ताल है मा !
बिरमा लाख कमाल कियो
सैंस्यूं गजब कमाल है मा !
लिछमी सुरसत अर दुरगा
था'रा रूप विशाल है मा !
मा ई मिंदर री मूरत
अर पूजा रो थाळ है मा !
जिण काळजियां तूंनीं ; बै
लूंठा निध कंगाल है मा !
न्याल ; जका मन सूं पूछै
- था'रो कांईं हाल है मा !
धन कुणसो था'सूं बधको ?
निरधन री टकसाल है मा !
राजेन्दर था'रै कारण
आछो मालामाल है मा !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
… वैसे तो समझ में आ जानी चाहिए , अन्यथा अर्थ के लिए फिर हाज़िर हो जाऊंगा …
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हर व्यक्ति की उपयोगिता ही तो है, वर्ना कौन किस को पूछता है.... भले ही वो मां ही हो :(
ReplyDelete@ राजेंद्र स्वर्णकार,
ReplyDeleteआपकी इस बेहद प्यारी रचना ने इस रचना को सम्पूर्णता दे दी ! राजस्थानी भाषा में यह लिखा गीत संग्रहणीय है ! सपूत हो तो आप जैसा राजेंद्र भाई ! शुभकामनायें स्वीकार करें !
आदरणीय सतीश जी भाईसाहब
ReplyDeleteमां पर लिखी मेरी राजस्थानी ग़ज़ल के भावों तक आप अवश्य ही पहुंच पाए हैं , कुछ और गहराई से रचना की आत्मा का स्पर्श कर पाएं ,
इसलिए कठिन शब्दों के अर्थ प्रस्तुत हैं -
खांडो = खड़्ग/ तलवार
रिछपाळ = रक्षक
विपतां = विपदाएं
काळ = काल
वाळां आडी पाळ = बाढ़ से उफनते नालों के लिए अस्थायी बांध
मैण = मोम
हिरदै = हृदय
कंवळो = कोमल
सैंस्यूं गजब = सबसे अद्भुत
जिण काळजियां तूं नीं = जिन कलेजों में तू नहीं है
लूंठा निध = (वे)धनवान बेटे
न्याल = धन्य धन्य
था'रो कांईं हाल है मा != तुम्हारा क्या हाल है मां !
कुणसो = कौनसा
बधको = बढ़कर
निरधन री टकसाल = निर्धन बेटे की टकसाल
था'रै कारण = तुम्हारे कारण
आछो मालामाल = अच्छा मालदार
- राजेन्द्र स्वर्णकार
त्रासदी ....पर हकीकत....
ReplyDeleteआदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
हमें याद रखना चाहिए कि यही अवस्था एक दिन हम पर भी आएगी.
मां से बढ़कर कोई नहीं... मां तो बस मां है...
हकीकत बहुत मार्मिक है।
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeletedekha hai jagi hui maa ko karwat le sone ka abhaas dete ...
ReplyDeletekam ko sunaai deti hai ye saansen
मां तो है मां, मां तो है मां,
ReplyDeleteमां जैसा दुनिया में है कोई और कहां...
जय हिंद...
हमारी भी माँ थी और हमारी भी सास थी लेकिन निर्णय उनका ही होता था कि उन्हें कहाँ जाना है और कहाँ नहीं। होटल, मॉल में जाने का रिवाज तो अभी ज्यादा चला है लेकिन ऐसी किसी भी जगह वे स्वयं मना कर देती थी कि मैं वहाँ जाकर क्या करूंगी? भारत में ऐसी लाचारी है भी और नहीं भी है। इस उम्र तक आते-आते शौक स्वत: ही कम हो जाते हैं।
ReplyDelete........
ReplyDeletepranam.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletejai baba banaras
ReplyDeletekhuseyo ki khaan hai maa---------------------------------------------------------------------------------------jai baba banaras
.
ReplyDelete.
.
माँ सा कोई नहीं... यह और बात है कि यह समझ तभी आता है जब आप खुद माँ या पिता बनते हो...
हम सबकी संवेदनायें जिन्दा रहें... आमीन !
...
मन को स्पर्श करती है रचना
ReplyDelete...और परिवार के मॉल जाते समय, धीमे धीमे दरवाजा बंद करने आती माँ की आँखों में छलछलाये आंसू कोई नहीं देख पाता ..........!
ReplyDeleteयहं पर माँ की आँखों में आशुं अपनी उपेक्षा के नहीं बल्कि संतुष्टि ( ख़ुशी ) के छलक पढ़े हैं , बच्चे जब अपनी जिम्मेदारियों को वहन करने लायक हो जाते हैं तब माँ को जो सुकून मिलता है उसकी निसान देही करते ये आशुं अक्सर छलक पढ़ते हैं , बहरहाल ! हम कौन होते हैं माँ के आंशुओं को देख बिचलित होने वाले , क्या हम ममता के महत्त्व को समझ पाए हैं ?
भावुक एवं संवेदनशील रचना हेतु आभार ..............
सत्यता के बेहद करीब ...भावुक करती यह प्रस्तुति।
ReplyDeleteभावुक कर गयी आज की पोस्ट ...शायद भूल जाते हैं कि यह वक्त उनके साथ भी होगा ....माँ को भोजन नहीं बस प्यार चाहिए होता है ....जिसमें कोई पैसा खर्च नहीं होता ..पर उसमें भी कंजूसी ?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.माँ की तरफ मैं क्या करूँ कोई भी इस कार्य में सक्षम नहीं है क्योंकि कोई भी माँ की म्हणता और उसके दुःख को छू नहीं सकता.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग कौशल पर अवश्य आयें और अपनी राय दें जो ब्लॉग परिवार और मेरे ज्ञानवर्धन के लिए अति महत्वपूर्ण है..
very nice post dear friend
ReplyDeleteDear Friends Pleace Visit My Blog Thanx...
Lyrics Mantra
Music Bol
संवेदनात्मक, आँखें नम हुयीं आपकी हिम्मत के लिये और माँ के प्रति प्यार के लिये।
ReplyDeletesir!! aap sach me bahut samvedanshil ho...!! ek marmik post...ek dum sachche dil se nikli hui aawaaj
ReplyDeleteकई बार पत्नि का मन रखने की खातिर जो समर्थ बेटे मां को नजरअन्दाज कर जाते हैं वे भी अकेले में मां के महत्व को कहां भूल पाते हैं ।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक..आज का यही सत्य है..
ReplyDeleteआद.सतीश भाई ,
ReplyDeleteपोस्ट की आखिरी पंक्ति ने दिल को चीर कर रख दिया !
हम अपनी संस्कृति से जितनी दूर जायेंगे हमें उसकी उतनी ही क़ीमत चुकानी पड़ेगी !
व्यवसायिकता के वर्तमान दौर में माँ बाप बस एक चीज बन कर रह गए हैं !
मां तो आखिर मां होती है।
ReplyDelete---------
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
सतीश जी
ReplyDeleteइतना कडवा सच कैसे लिख देते हैं…………शायद यही सच है हम सभी के जीवन का …………कल यही होना है ना सबके साथ्।
बहुत सुंदर लेख, आँखें नम कर दीं. आभार
ReplyDeleteलघु यथार्थ कथा !
ReplyDeleteभगवान करे कि अभी तक जो हुआ है, अब न हो...
ReplyDeleteऔर फ़िर से आपने ऐसा ही लिख दिया न???
वन्दे मातरम !
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteआपके इस लेख में जो दर्द छुपा है, उसे महसूस करके ही रोंगटे खड़े हो गए, इस पोस्ट के द्वारा आपने एक बहुत ही मार्मिक तथ्य की तरफ इशारा किया है... इंसान की ज़िन्दगी में माँ-बाप से बढ़कर और किसका हक हो सकता है भला? आजकल लोग धार्मिक तो बनते हैं लेकिन माँ-बाप के प्यार को कोई एहमियत ही नहीं देते हैं... जबकि उनसे मुहब्बत, उनकी इज्ज़त ना केवल मानवता का तकाजा बल्कि धर्म का भी एक बहुत बड़ा हिस्सा है...
एक बार एक शख्स ने मुहम्मद (स.) से कहा कि मैं मैं हज करने के लिए जाना चाहता हूँ, लेकिन मेरे पास इतना सामर्थ्य नहीं है.... आप (स.) ने मालूम किया कि क्या तुम्हारे घर में तुम्हारे माता-पिता दोनों अथवा उनमें से कोई एक जिंदा है... उस शख्स ने कहा कि माँ बाहयात हैं. आप (स.) ने फ़रमाया कि उनकी सेवा करो... वहीँ एक बार फ़रमाया कि एक बार अपनी माता अथवा पिता को मुहब्बत की नज़र से देखना 3 बार के हज करने के पुन्य से भी अधिक है.
एक शख्स ने मालूम किया कि दुनिया में किसी के जीवन पर सबसे ज्यादा हक किसका है? मुहम्मद (स.) ने फ़रमाया कि माँ का, उसने मालूम किया कि उसके बाद, तब आप (स.) ने फिर से फ़रमाया कि उसकी माँ का... उस शख्स ने तीसरी बार मालूम किया तब भी आप (स.) ने फ़रमाया कि उसकी माँ का और बताया कि चौथा नंबर पिता का है तथा उसके बाद अन्य रिश्तेदारों (पत्नी, भाई, बहन इत्यादि का).....
एक बहुत ही मशहूर वाकिये में आप (स.) ने फ़रमाया था कि माँ के क़दमों तले जन्नत है.
लेकिन यह सभी बातें मानने वालों के लिए है ना कि दिखावे मात्र के लिए धर्म का ढींढौरा पीटने वालो के लिए...
संबंधों पर बड़ी गहरी नज़र है आपकी !
ReplyDelete@ शाहनवाज भाई ,
ReplyDeleteमुहम्मद साहब के उद्धरण पढ़कर बहुत अच्छा लगा वाकई माँ के क़दमों तले ज़न्नत है ! मगर यह सब उनके लिए ही है जो प्यार को समझ सकें ...आज तो प्यार पर शक पहले करते हैं ...
बहुत ही भावपूर्ण और विचारों को जगाती है आपकी ये रचना । माँ को उनके न होने पर ही समझ पाते हैं और अफ़सोस करते हैं ।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक .. समय के बदलाव को इंसान सनझ नहीं पाटा ... जो ऐसा करते हैं वो भूल जाते हैं की उन्होंने भी एक दिन इसी सीड़ी से गुज़ारना है ...
ReplyDeleteवे भाग्यवान हैं जिनके सर पर मां के आंचल का साया है।
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति मार्मिक है...लोग मशीन होते जा रहे हैं...संवेदनाहीन...
कोई शब्द नहीं..
ReplyDelete"Maa" !A Touchy very sentimental, emotions filled post....
ReplyDeleteमहोदय यदि ये आपका स्वयम का अनुभव है तो उसे सम्बेदन शील बनाने की बजाय माँ के लिए समर्पण की आवश्यकता है . माँ अनमोल है उसे खो देने के बाद कमी खलती रहेगी और मन सलाहता रहेगा काश माँ होती !
ReplyDeletemaa jab nahi hoti hai tab uski kami ka pata chalta hai
ReplyDeleteयह हम सबके जीवन का शाश्वत सत्य है। इसे स्वीकार करना चाहिए।
ReplyDelete*
लघुकथा में छुपी कथा है।
*
सतीश भाई आपकी लेखनी का यह अद्भुत कमाल है कि आप सबको एक संशय में डाल देते हैं कि यह आपका अनुभव है या सबका।
यही तो परिवर्तन है जो सही नही है..किसी पर कोई कंट्रोल नही है..माँ बस घर में बैठी रहती है....एक संवेदना से भरी आलेख..आभार
ReplyDelete
ReplyDelete@ राजेश भाई,
यह एक लघु कथा है जो मैंने आज की माँ की दुर्दशा की स्थिति बयान करने की कोशिश की है ! जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है मैं बदकिस्मत हूँ वे मुझे बचपन में ही छोड़ कर चली गयीं थीं !
सतीश, बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति.बहुत कुछ कह गयी आप की भावपूर्ण लघुकथा.
ReplyDeleteआप की बात को ही आगे बढ़ा रहा हूँ.........
तेरे डाईनिंग टेबल से
तेरे परिवार की हंसी
मेरे कमरे में चली आयी है,
मुझे पता है तेरे खानसामे ने
कोई नयी डिश बनाई है,
स्टोव पर चाय बनाकर
दो बिस्किट कुतर लेती हूँ मैं,
तेरे परिवार को दूधो नहायो
पूतो फलो की दुआएं देती हूँ मैं.
रुलाओगे सर आज। दुनिया के हर परिवार को यह पेज अपने कमरे में लगाना चाहिए।
ReplyDeletebahut sahi kaha aapne ,budo ka tirskaar karte waqt hum ye nahi sochte kabhi is jagah hum bhi khade honge .padhkar aankhe nam ho gayi .
ReplyDeletebhai satishji man ko chhonen vali panktiyan hai maa ko aapne badi shiddat se yaad kiya hai hame bde bujurgon ka aadar karna chahiye
ReplyDeleteसतीश जी मैंने आप के कुछ ही लेख पढ़े हैं, लेकिन यह यकीन से कह सकता हूँ कि आज तक का यह सबसे बेहतरीन लेख है.
ReplyDelete.
दुनिया की सभी मांओं की अज़मत को सलाम.
.
सामने बच्चों के खुश रहती है हर इक हाल में ।
रात को छुप छुप के अश्क बरसाती है माँ ॥
पहले बच्चों को खिलाती है सकूं-औ-चैन से ।
बाद मे जो कुछ बचा हो शौक से खाती है माँ ॥
माँ अक्सर अपने बारे में नहीं सोचती और यही उसकी त्रासदी है कि धीरे-धीरे करके उसके बारे में सोचने वाला कोई भी नहीं बचता...
ReplyDeleteअनुभूतियों का जीवंत चित्रण।
ReplyDelete-------
क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
You are just amazing man..
ReplyDeleteबस यही सोचती रही कि क्या लिखूँ .इतने संवेदनापूर्ण विषय पर कुछ लिख देना मेरे लिए आसान नहीं है!
ReplyDeleteमाँ एक अद्भुत सा शब्द है.....चाहे वो जननी हो या देश.....बहत तरह के भाव आने लगते हैं....
ReplyDeleteअच्छा लेख...
बडी सम्वेदनशील है, माँ की अनुभूतियों की अनुभूति| आभार|
ReplyDeleteसच कहा सतीश जी।
ReplyDeleteमाँ की ममता का नही कोई दाम
माँ के आदर मे मिलते चारों धाम
मगर आज माँ एक निरीह प्राणी बन कर रह गयी है। भगवान बच्चों को सद्बुद्धी दे।
आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
satish ji,
ReplyDeletekuchh blog hai jo mujhe badhane me bahut achhe lagte hai unmese aapka blog bhi yek hai......
i mean padhneme.......
ReplyDeleteईश्वर का वरदान है माँ
ReplyDeleteहम बच्चों की जान है माँ
मेरी नींदों का सपना माँ
तुम बिन कौन है अपना माँ
तुमसे सीखा पढ़ना माँ
मुश्किल कामों से लडना माँ
बुरे कामों में डाँटती माँ
अच्छे कामों में सराहती माँ
कभी मित्र बन जाती माँ
कभी शिक्षक बन जाती माँ
मेरे खाने का स्वाद है माँ
सब कुछ तेरे बाद है माँ
बीमार पडूँ तो दवा है माँ
भेदभाव ना कभी करे माँ
वर्षा में छतरी मेरी माँ
धूप में लाए छाँव मेरी माँ
कभी भाई, कभी बहन, कभी पिता बन जाती माँ
ग़र ज़रूरत पडे तो दुर्गा भी बन जाती माँ
ऐ ईश्वर धन्यवाद है तेरा दी मुझे जो ऐसी माँ
है विनती एक यही तुमसे हर बार बने ये हमारी माँ
ईश्वर का वरदान है माँ
ReplyDeleteहम बच्चों की जान है माँ
मेरी नींदों का सपना माँ
तुम बिन कौन है अपना माँ
तुमसे सीखा पढ़ना माँ
मुश्किल कामों से लडना माँ
बुरे कामों में डाँटती माँ
अच्छे कामों में सराहती माँ
कभी मित्र बन जाती माँ
कभी शिक्षक बन जाती माँ
मेरे खाने का स्वाद है माँ
सब कुछ तेरे बाद है माँ
बीमार पडूँ तो दवा है माँ
भेदभाव ना कभी करे माँ
वर्षा में छतरी मेरी माँ
धूप में लाए छाँव मेरी माँ
कभी भाई, कभी बहन, कभी पिता बन जाती माँ
ग़र ज़रूरत पडे तो दुर्गा भी बन जाती माँ
ऐ ईश्वर धन्यवाद है तेरा दी मुझे जो ऐसी माँ
है विनती एक यही तुमसे हर बार बने ये हमारी माँ
सुंदर :)
ReplyDeleteमाँ के लिये पहली बार इतनी सच्ची संवेदना देखी है । यकीनन ऐसी भावनाओं में माँ के साथ अन्याय या कठोरता हो ही नही सकती ।
ReplyDeleteसच है मां के वे अपने फालतू हो जाने के अहसास के आँसू कोई नही देख पाता।
ReplyDelete