खांसते दम ,फूलता है
जैसे लगती जान जाए
अस्थमा झकझोरता है,
रात भर हम सो न पाए
धुआँ पहले खूब था अब
यह धुआँ गन्दी हवा में
समय से पहले ही मारें,
चला दम घोटू पटाखे ,
राम के आने पे कितने
दीप आँखों में जले,अब
लिखते आँखें जल रही हैं ,जाहिलों के शहर में !
धूर्त,बाबा बन बताते
स्वयं को ही राज्यशोषित
और नेता कर रहे नेतृत्व
को अवतार घोषित !
चोर सब मिल गा रहे हैं
देशभक्ति के भजन ,
दिग्भ्रमित विस्मित खड़े
ये,भेडबकरी मूर्खजन !
राजनैतिक धर्मरक्षक
देख ठट्ठा मारते, अब
राम बंधक बन चुके हैं , कातिलों के शहर में !
सुगन्धित खुशबू बिखेरें
फूल दिखते ही नहीं हैं
जाने कब भागीरथी भी
मोक्षदायिनि सी रहीं हैं
कृष्ण की अठखेलियाँ भी
थीं, कभी कृष्णा किनारे
उस जगह रोती हैं गायें ,
अपने केशव को पुकारें
किस गली खोये स्वर्ण
अवशेष मेरे देश के ?
हाँ , एक जमुना नाम का नाला है , मेरे शहर में !
जैसे लगती जान जाए
अस्थमा झकझोरता है,
रात भर हम सो न पाए
धुआँ पहले खूब था अब
यह धुआँ गन्दी हवा में
समय से पहले ही मारें,
चला दम घोटू पटाखे ,
राम के आने पे कितने
दीप आँखों में जले,अब
लिखते आँखें जल रही हैं ,जाहिलों के शहर में !
धूर्त,बाबा बन बताते
स्वयं को ही राज्यशोषित
और नेता कर रहे नेतृत्व
को अवतार घोषित !
चोर सब मिल गा रहे हैं
देशभक्ति के भजन ,
दिग्भ्रमित विस्मित खड़े
ये,भेडबकरी मूर्खजन !
राजनैतिक धर्मरक्षक
देख ठट्ठा मारते, अब
राम बंधक बन चुके हैं , कातिलों के शहर में !
सुगन्धित खुशबू बिखेरें
फूल दिखते ही नहीं हैं
जाने कब भागीरथी भी
मोक्षदायिनि सी रहीं हैं
कृष्ण की अठखेलियाँ भी
थीं, कभी कृष्णा किनारे
उस जगह रोती हैं गायें ,
अपने केशव को पुकारें
किस गली खोये स्वर्ण
अवशेष मेरे देश के ?
हाँ , एक जमुना नाम का नाला है , मेरे शहर में !
सही कहा
ReplyDeleteगंगा साफ हो गयी अब यमुना की बारी है
ReplyDeleteअब की बार भी फिर से उसकी ही बारी है ।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/01/2019 की बुलेटिन, " टाइगर पटौदी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सटीक।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/01/103.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी, सादर नमस्कार ,यथार्थ और गंभीर विषय पर लिखी आप की ये रचना सराहनीये है। मैं भी दिल्ली से ही हूँ और वहां की दुर्दशा देख मन चिंतित हो जाता है। मैंने भी इस विषय पर दो लेख लिखे है " प्रकृति और इंसान "और दूसरा " हमारे त्यौहार और हमारी मानसिकता "कभी फुरसत हो तो आये मेरे ब्लॉग पर और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दे कर मुझे कृतार्थ करे ,आप का स्वागत है
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब और तीखा लिखा है ...
ReplyDeleteआज का सच तो यही है पर ये नेता लोग और तेज़ी से बर्बादी के द्वार खोल रहे हैं ...
सुन्दर, सार्थक और सटीक...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब....