हे प्रभु ! इस देश में इतने निरक्षर , ढोर क्यों ?
जाहिलों को मुग्ध करने को निरंतर शोर क्यों !
अनपढ़ गंवारू जान वे मजमा लगाने आ गए
ये धूर्त, मेरे देश में , इतने बड़े शहज़ोर क्यों ?
साधु संतों के मुखौटे पहन कर , व्यापार में
रख स्वदेशी नाम,सन्यासी मुनाफाखोर क्यों !
माल दिलवाएगा जो, डालेंगे अपना वोट सब
देश का झंडा लिए सौ में, अठत्तर चोर क्यों !
आखिरी दिन काटने , वृद्धाएँ आश्रम जा रहीं !
बेटी बिलख रोई यहाँ,इस द्वार टूटी डोर क्यों !
जाहिलों को मुग्ध करने को निरंतर शोर क्यों !
अनपढ़ गंवारू जान वे मजमा लगाने आ गए
ये धूर्त, मेरे देश में , इतने बड़े शहज़ोर क्यों ?
साधु संतों के मुखौटे पहन कर , व्यापार में
रख स्वदेशी नाम,सन्यासी मुनाफाखोर क्यों !
माल दिलवाएगा जो, डालेंगे अपना वोट सब
देश का झंडा लिए सौ में, अठत्तर चोर क्यों !
आखिरी दिन काटने , वृद्धाएँ आश्रम जा रहीं !
बेटी बिलख रोई यहाँ,इस द्वार टूटी डोर क्यों !
हे कविराज !
ReplyDeleteउन्होंने अर्ध-कुम्भ को महा-कुम्भ का दर्जा दे दिया, भक्तों पर आकश से पुष्प -वृष्टि भी करा दी, फिर भी इतना आक्रोश?
और मनुष्यों की माताओं-बेटियों की फ़िक्र आप कीजिए, वो तो गौ-माता के सेवक हैं और उनका काम है - गौ-माता के शत्रुओं को मॉब-लिंचिंग के अंजाम तक पहुँचाना.
प्रभू खुद परेशान होंगे क्या जवाब दे पायेंगे
ReplyDeleteउसके नाम को बेचने वालों का ही
सोचता होगा यहाँ पर चलता जोर क्यों ?
कसैला सच!
देश का झंडा लिए सौ में, अठत्तर चोर क्यों !
ReplyDeleteबिलकुल सही, बहुत खूब... सतीश जी ,सादर नमन
तीखी और सटीक रचना ...
ReplyDeleteसच का गीत है ... बेमिसाल रचना सतीश जी ...
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/01/105.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteA good sarcasm, our country must have progressive priorities. Election time - big game.
ReplyDeleteसटीक रचना
ReplyDeleteबहुत खूब ..
ReplyDeleteअद्भुत लेख!
Hindi Panda