सो न सकूंगी आसानी से
याद दिलाती रातों में !
बंद न हो पाएं दरवाजे
ले कंगन मनिहार बेंचने
आया इकदिन आँगन में,
जाने कैसे सम्मोहन में ,
छेड़छाड़ कर चला गया !
पहली बार मिला, जूड़े में फूल सजा के चला गया !
रोक न पायीं अनजाने को
मंत्रमुग्ध सा आवाहन था !
मंत्रमुग्ध सा आवाहन था !
सागर जैसी व्याकुलता में
लगता कैसा मनमोहन था !
हृदय जीत ले गया चितेरा
चित्र बनाकर, चुटकी में,
चित्र बनाकर, चुटकी में,
सदियों से थे ओठ कुंवारे,
गीले करके , चला गया !
बैरन निंदिया ऐसी आयी, मांग सज़ा के चला गया !
गीले करके , चला गया !
बैरन निंदिया ऐसी आयी, मांग सज़ा के चला गया !
उसके हाथ सुगन्धित इतने
मैं मदहोशी में खोयी थी !
उसकी आहट से जागी थी
उसके जाने पर सोयी थी !
केशव जैसा आकर्षण ले
वह निशब्द ही आया था
उसके जाने पर सोयी थी !
केशव जैसा आकर्षण ले
वह निशब्द ही आया था
जाने कब मेंहदी से दिल का,
चिन्ह बनाकर, चला गया !
कितनी परतों में सोया था दिल, सहला कर चला गया !
उसके सारे काम, हमारीचिन्ह बनाकर, चला गया !
कितनी परतों में सोया था दिल, सहला कर चला गया !
जगती आँखों मध्य हुए थे !
जाने कैसी बेसुध थी मैं ,
अस्तव्यस्त से वस्त्र हुए थे !
सखि ये सबके बीच हुआ
था, भरी दुपहरी आँगन में ,
पास बैठकर हौले हौले ,
लट सहला के चला गया !
एक अजनबी जाने कैसा, गीत सुनाकर चला गया !
सखि ये सबके बीच हुआ
था, भरी दुपहरी आँगन में ,
पास बैठकर हौले हौले ,
लट सहला के चला गया !
एक अजनबी जाने कैसा, गीत सुनाकर चला गया !
क्या बात है वाह ! बहुत अच्छी तरह से व्यक्त किया है स्त्री भावनाओं को ।
ReplyDeleteBahut Bahut sundar aur expressive, Kavita hai. Apki yon tou har Kavita ek misaal hoti hai parantu yeh padh kar mujhe pehlibaar ehsaas hua ki ek Stri ho kar main itana sundar soch bhi nahi paayi aap aapne ek stri ki bhavnon ko shabd de diye :] Kaise karlete hain aap?
ReplyDeleteवाह।कविता में गहरे उतरना होता है।
ReplyDeleteआहा प्रेयसी भाव से सराबोर ..बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteक्या बात...क्या बात...
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर गीत स्त्री के जज्बातों को सुन्दरता से उकेरा है गीत में बहुत बहुत बधाई आपको सतीश जी इस सुन्दर गीत के लिए |
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है.
ReplyDeleteरोक न पायीं अनजाने को
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध सा आवाहन था !
सागर जैसी आकुलता ले
लगता कैसा मनमोहन था !
..प्यार में डूबते उतराते पलों की सुन्दर बानगी ...
बहुत सुन्दर ..
Waaaah bht hi umda lekhan
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपके इस गीत को पढ़कर एक अनाम रचनाकार के गीत की यह
ReplyDeleteपंक्तियाँ याद आ गई है !
स्वप्न से ही भर गया अलि,
आज मेरा जीर्ण अंचल
वेदना की वहि में
तप हो उठे है प्राण उज्वल
दे गया वह सजनि मुझको
जन्म का वरदान सुंदर !
आज मेरे प्राण में स्वर
भर गया कोई मनोहर !
नारी मन की संवेदनाओं को भि खूब समझा हैआपने ...
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर एकदम बहता हुआ गीत।
ReplyDeleteरोक न पायीं अनजाने को
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध सा आवाहन था !
सागर जैसी व्याकुलता में
लगता कैसा मनमोहन था !
हृदय जीत ले गया चितेरा
चित्र बनाकर, चुटकी में,
सच कहूं तो आदरणीय कविवर -- आपकी इस रचना का मुल्यांकन मेरी क्षमता से परे है | लेखनी को लाखों सलाम जो नारी के ह्रदय में कहीं गहरे ही उतर गई | नमन |