किसी दोस्त की सहानुभूति ने फिर अनु की याद दिलवा दी ......
कुछ कष्ट ऐसे हैं कि भुलाए नहीं जाते ...
हमेशा के लिए, घर से गयी, दुःस्वप्न लगता है !
हमें उस रात से शिव पर,भरोसा बोझ लगता है !
बड़ों के कंधे पर अर्थी, उठायी जाए बच्चों की !
पिता की जिंदगी में , और जीना बोझ लगता है !
तो चरणों पर कहीं झुकना,बड़ा ही बोझ लगता है !
अभी मेंहदी भी हाथों से , न छुट पायी थी बच्चे की !
हमें इन मांगलिक कार्यों का होना , बोझ लगता है !
अरे ! मासूम सी बच्ची को मारा,जिस तरह तुमने !
हमें मंदिरों का , सम्मान करना , बोझ लगता है !
वो नित संध्या समय, दीपक जलाती थी तेरे आगे !
हमें ज़ालिम को, ईश्वर मानना, अब बोझ लगता है !
अगर पुत्री को, लथपथ खून से, कोई पिता देखे !
तो ईश्वर नाम पर, विश्वास करना, बोझ लगता है !
जब अपनी शक्ति की, असहायता पर दया सी आये
तो दर्पण सामने, आना भी, अक्सर बोझ लगता है !