Wednesday, October 8, 2014

कैसे सिसके करवाचौथ बिचारी सी - सतीश सक्सेना

प्रतिबद्धता कहें अथवा लाचारी सी !
जग जननी लगती, कैसी गांधारी सी !

धुत्त शराबी से जीवन भर, दर्द सहे !
कैसे सिसके करवा चौथ बिचारी सी ! 

किसने नहीं सिखाया, उसे विदाई में 
पूरे  जीवन रहना , एकाचारी  सी  !

छोटी उम्र से क्या बस्ती में सीखा है,  
किसे सुनाये , बातें मिथ्याचारी सी !

धीरे धीरे कवच पुरुष का , तोड़ रही ,
कमर है मालिन जैसी चोट लुहारी सी !

छप्पर डाल के सोने वाले, भूल गए 
नारी के मन सुलग रही , चिंगारी सी !

ग्लानि थकान विषाद और उत्पीड़न भी
मिल कर देख न पाये , नारी हारी सी !

32 comments:

  1. वाह... बेहतरीन, हृदयस्पर्शी गीत ...

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  2. बहुत सही और सुन्दर गीत!

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  3. अत्यंत भावपूर्ण सुन्दर कोमल और प्रेरणादायक गीत बहुत बहुत बधाई आपको

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  4. क्या बात है बहुत बढ़िया ।
    धुत्त शराबी में कुछ अटक सा गया :)

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    1. मैं भी यही चाहता था प्रोफ़ेसर :)
      आभार आपका , अटका बताने के लिए , शब्द कुछ अधिक तीखे रहे इस रचना के !
      सादर !!

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  5. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.

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  6. वाह गजब गीतिका, रेड वाईन सी। सोंधी सोंधी खुश्बू, भुनी अजवाईन सी। :)

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    1. वाह , स्वागत है प्रभु आपका !! :)

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  7. सतीश जी,
    आपका काव्य मंदिर जीवन की सारी गतिविधियों को छूता है, आज की सुबह का आनंद आ गया
    आपका

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    1. स्वागत है आपका आदरणीय,
      विद्वानों द्वारा बोले चंद शब्द भी रचना के लिए प्रोत्साहित करने को काफी हैं ! आपको अच्छा लगा , यह रचना अनुग्रहीत हुई !
      मंगलकामनाएं आपके संकल्पों के लिए !

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  8. धुत्त शराबी से जीवन भर, दर्द सहे !
    कैसे सिसके करवाचौथ बिचारी सी !
    किसने नहीं सिखाया, उसे विदाई में
    पूरे जीवन रहना , एकाचारी सी !
    ...फर्ज निभाने का दस्तूर जो है भुगतना तो उसे ही है जीवन भर ..... सटीक सामयिक रचना ..

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  9. बहुत मर्मस्पर्शी और प्रभावी प्रस्तुति...

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  10. बेहद सार्थक लेखन ....सत्य ही तो है

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  11. Bahut hi marmsparshi...prabhaawi va saarthak abhvyakti saty to yahi hai ,,,, !!

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  12. सच को व्यक्त करता बहुत प्रभावशाली चित्रण !

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  13. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति ....

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  14. mridu bhawon ko sametta katu satya ....

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  15. हम सब आज एक ऐसे बदलाव की स्थिति से गुजर रहे है जरुरी है कि इस बदलाव को सहर्ष स्वीकारा जाना चाहिए ! इतिहास साक्षी है नारी बिना कुछ कहे बहुत सी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आयी है और निभा रही है पर क्या पुरुष प्रधान समाज ने उसकी इन भूमिकाओं का उसे उचित सम्मान दिया है या दे रहा है ?? शायद नहीं, आज भी जितना बदलाव आना चाहिए उतना नहीं हो रहा है इसलिए आज उसने संघर्ष कर लड़ कर अपने वे सब अधिकार पाने का मन बनाया है जो पुरुष प्रधान समाज ने उससे छीने है ! इसके पहले कि वह पुरुष प्रधान मान्यताओं के खिलाफ लड़कर बहुत कुछ तबाह कर दे, संघर्ष में खुद को ही ख़त्म कर दे, नारी को उसका उचित स्थान देना होगा तभी घर, परिवार बचेंगे समाज स्वस्थ रहेगा ! बिना संघर्ष के बिना लड़े हुए दोनों की समझदारी से आया हुआ बदलाव और दिया हुआ सम्मान,अधिकार ही हार्दिक होता है शुभ होता है ! मै बहुत आशावादी हूँ सतीश जी, आने वाले समय को नारी के उज्वल भविष्य के रूप में देख रही हूँ :) बढ़िया रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !

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  16. वर्तमान समय को बहुत कोमलता से व्यक्त करता गजलनुमा गीत
    आपकी कलम से लिखे प्रतीक बिम्ब मन को छू जाते हैं --
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर


    शरद का चाँद -------

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  17. भूल गयें है लोग नारी की उस शक्ति को जो चूड़ियों के बंधन में प्रेम पूर्वक बंद हैं.
    लाचार समझ रहें हैं कुछ लोग तो ये बड़ी भूल है उनकी.

    मेरे ब्लॉग तक भी पधारिये, अच्छा लगे तो ज्वाइन भी करें : सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)

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  18. शब्द-शब्द में सच्चाई है।

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  19. शब्द-शब्द में सच्चाई है।

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  20. sarthak,satya....utkrisht lekhan...

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  21. Nari ke antarmn ki wyatha ko itni gahrai or imandari se aapne shabdon me dhala hai.....lekhni ko naman..

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  22. भावपूर्ण सुंदर गीत।

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  23. बहुत सुंदर

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  24. छप्पर डाल के सोने वाले , भूल गए
    नारी के मन सुलग रही चिंगारी सी ...
    वाह .. क्या खूब ... नए अंदाज़ का शेर लग रहा है ... क्या कहने इस चिंगारी के ...

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  25. फिर पढ़ा...गहन

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एक निवेदन !
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- सतीश सक्सेना

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