प्रतिबद्धता कहें अथवा लाचारी सी !
ग्लानि थकान विषाद और उत्पीड़न भी
मिल कर देख न पाये , नारी हारी सी !
जग जननी लगती, कैसी गांधारी सी !
धुत्त शराबी से जीवन भर, दर्द सहे !
कैसे सिसके करवा चौथ बिचारी सी !
किसने नहीं सिखाया, उसे विदाई में
पूरे जीवन रहना , एकाचारी सी !
छोटी उम्र से क्या बस्ती में सीखा है,
किसे सुनाये , बातें मिथ्याचारी सी !
धीरे धीरे कवच पुरुष का , तोड़ रही ,
कमर है मालिन जैसी चोट लुहारी सी !
छप्पर डाल के सोने वाले, भूल गए
नारी के मन सुलग रही , चिंगारी सी !
छप्पर डाल के सोने वाले, भूल गए
नारी के मन सुलग रही , चिंगारी सी !
ग्लानि थकान विषाद और उत्पीड़न भी
मिल कर देख न पाये , नारी हारी सी !
वाह... बेहतरीन, हृदयस्पर्शी गीत ...
ReplyDeleteबहुत सही और सुन्दर गीत!
ReplyDeleteलाज़वाब
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण सुन्दर कोमल और प्रेरणादायक गीत बहुत बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteक्या बात है बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteधुत्त शराबी में कुछ अटक सा गया :)
मैं भी यही चाहता था प्रोफ़ेसर :)
Deleteआभार आपका , अटका बताने के लिए , शब्द कुछ अधिक तीखे रहे इस रचना के !
सादर !!
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.
ReplyDeleteवाह गजब गीतिका, रेड वाईन सी। सोंधी सोंधी खुश्बू, भुनी अजवाईन सी। :)
ReplyDeleteवाह , स्वागत है प्रभु आपका !! :)
Deleteसतीश जी,
ReplyDeleteआपका काव्य मंदिर जीवन की सारी गतिविधियों को छूता है, आज की सुबह का आनंद आ गया
आपका
स्वागत है आपका आदरणीय,
Deleteविद्वानों द्वारा बोले चंद शब्द भी रचना के लिए प्रोत्साहित करने को काफी हैं ! आपको अच्छा लगा , यह रचना अनुग्रहीत हुई !
मंगलकामनाएं आपके संकल्पों के लिए !
धुत्त शराबी से जीवन भर, दर्द सहे !
ReplyDeleteकैसे सिसके करवाचौथ बिचारी सी !
किसने नहीं सिखाया, उसे विदाई में
पूरे जीवन रहना , एकाचारी सी !
...फर्ज निभाने का दस्तूर जो है भुगतना तो उसे ही है जीवन भर ..... सटीक सामयिक रचना ..
बहुत मर्मस्पर्शी और प्रभावी प्रस्तुति...
ReplyDeleteआभार भाई जी !!
Deleteबेहद सार्थक लेखन ....सत्य ही तो है
ReplyDeleteBahut hi marmsparshi...prabhaawi va saarthak abhvyakti saty to yahi hai ,,,, !!
ReplyDeleteसच को व्यक्त करता बहुत प्रभावशाली चित्रण !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति ....
ReplyDeletemridu bhawon ko sametta katu satya ....
ReplyDeleteहम सब आज एक ऐसे बदलाव की स्थिति से गुजर रहे है जरुरी है कि इस बदलाव को सहर्ष स्वीकारा जाना चाहिए ! इतिहास साक्षी है नारी बिना कुछ कहे बहुत सी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आयी है और निभा रही है पर क्या पुरुष प्रधान समाज ने उसकी इन भूमिकाओं का उसे उचित सम्मान दिया है या दे रहा है ?? शायद नहीं, आज भी जितना बदलाव आना चाहिए उतना नहीं हो रहा है इसलिए आज उसने संघर्ष कर लड़ कर अपने वे सब अधिकार पाने का मन बनाया है जो पुरुष प्रधान समाज ने उससे छीने है ! इसके पहले कि वह पुरुष प्रधान मान्यताओं के खिलाफ लड़कर बहुत कुछ तबाह कर दे, संघर्ष में खुद को ही ख़त्म कर दे, नारी को उसका उचित स्थान देना होगा तभी घर, परिवार बचेंगे समाज स्वस्थ रहेगा ! बिना संघर्ष के बिना लड़े हुए दोनों की समझदारी से आया हुआ बदलाव और दिया हुआ सम्मान,अधिकार ही हार्दिक होता है शुभ होता है ! मै बहुत आशावादी हूँ सतीश जी, आने वाले समय को नारी के उज्वल भविष्य के रूप में देख रही हूँ :) बढ़िया रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteवर्तमान समय को बहुत कोमलता से व्यक्त करता गजलनुमा गीत
ReplyDeleteआपकी कलम से लिखे प्रतीक बिम्ब मन को छू जाते हैं --
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
शरद का चाँद -------
भूल गयें है लोग नारी की उस शक्ति को जो चूड़ियों के बंधन में प्रेम पूर्वक बंद हैं.
ReplyDeleteलाचार समझ रहें हैं कुछ लोग तो ये बड़ी भूल है उनकी.
मेरे ब्लॉग तक भी पधारिये, अच्छा लगे तो ज्वाइन भी करें : सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)
शब्द-शब्द में सच्चाई है।
ReplyDeleteशब्द-शब्द में सच्चाई है।
ReplyDeletesarthak,satya....utkrisht lekhan...
ReplyDeleteNari ke antarmn ki wyatha ko itni gahrai or imandari se aapne shabdon me dhala hai.....lekhni ko naman..
ReplyDeleteबढिया है.
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर गीत।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteछप्पर डाल के सोने वाले , भूल गए
ReplyDeleteनारी के मन सुलग रही चिंगारी सी ...
वाह .. क्या खूब ... नए अंदाज़ का शेर लग रहा है ... क्या कहने इस चिंगारी के ...
bahut sunder rachna he.
ReplyDeleteफिर पढ़ा...गहन
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