Sunday, August 19, 2018

निराशाओं के दौर में जीना कर्तव्य बन जाता है : सतीश सक्सेना

बढ़ती उम्र, घटती सामर्थ्य, अपनों में ही कम होता महत्व, बुढ़ापा जल्दी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ! पूरे जीवन सम्मान से जीते हुए इंसान के लिए, निराशाओं के इस दौर में हँसते हुए जीना कर्तव्य होना चाहिए साथ ही बदलते समय से समझौता कर, अपने कार्यों का पुनरीक्षण करना, लगातार होती हुई गलतियों में सुधार भी, परिपक्व उम्र की आवश्यकता होती है ! 
निराशा बेहद खतरनाक रोल अदा करती है इससे बाहर निकलने के लिए नयी रुचियाँ और उत्साह पैदा करना होगा अन्यथा यह निराशा असमय जान लेने में समर्थ है ! 

गोपालदास नीरज की यह कालजयी रचना मुझे बेहद पसंद है 

जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना,
उन मुश्किलों में मुस्कुराना , धर्म है।

जिस वक़्त जीना गैर मुमकिन सा लगे,
उस वक़्त जीना फर्ज है इंसान का,
लाजिम लहर के साथ है तब खेलना,
जब हो समुन्द्र पे नशा तूफ़ान का
जिस वायु का दीपक बुझना ध्येय हो
उस वायु में दीपक जलाना धर्म है।


जब हाथ से टूटे न अपनी हथकड़ी
तब मांग लो ताकत स्वयं जंजीर से
जिस दम न थमती हो नयन सावन झड़ी
उस दम हंसी ले लो किसी तस्वीर से
जब गीत गाना गुनगुनाना जुर्म हो
तब गीत गाना गुनगुनाना धर्म है।

Related Posts Plugin for Blogger,