Sunday, July 17, 2016

अच्छे दिन भी आते होंगे , हर हर मोदी बोल किसानों -सतीश सक्सेना


मेहनत करते जीवन बीता,मेहनत करते रहो ,किसानों !
अच्छे दिन भी आते होंगे ,हर हर मोदी बोल किसानों !


जित्ती चादर ले के लाये, पैर मोड़ सो जाओ किसानों !
भला करेंगे, राम तुम्हारा, कोई शक न करो किसानों !

रखो भरोसा नेताओं पर , क्यों हताश होकर मरते हो,
बेटी की शादी में तुमको, लाला देगा, कर्ज किसानों !

अफ्रीका में खेत दाल के, लगते सुंदर बहुत किसानों !
दाल उगाएं वे, हम खाएं , हर हर गंगे बोल किसानों !

केजरी झक्की , खांसे इतना , नींद न आने दे, रातों में ,
कांग्रेस,मीडिया,कचहरी और भी गम हैं,बहुत किसानों !


Saturday, July 9, 2016

संवेदना बिलख कर रोये,कवि न वहां पाये जाएंगे - सतीश सक्सेना

यह कैसा माहौल ? अब यहाँ द्वेष गीत गाये जाएंगे !
संवेदना बिलख के रोये ,कवि न यहां पाये जाएंगे !

दयाहीनता के आलम में उम्मीदें तो कम हैं लेकिन   
संवेदन संतप्त ह्रदय की, हम कसमें खाये जाएंगे !

द्वेषभाव को जल देने को,ढेरों लोग उगे हैं फिर भी 
दिल से दूषित भाव हटाने, गंगा हम लाये जाएंगे !

आग लगाते इन शोलों में, ह्रदय वेदना कौन पढ़ेगा, 
जब तक सूरज आसमान में,हम छप्पर छाये जाएंगे !

राजनीति के इन धूर्तों ने,  बेशर्मी  की हदें पार कीं,
जल्द आयेगा वक्त,रेत के किले सभी ढाए जाएंगे !

Monday, July 4, 2016

तेरी इस बादशाहत में, मेरी मुस्कान खतरे में - सतीश सक्सेना

हाल में ढाका हादसे पर अातंकवादियों और उनके रहनुमाओं के लिए ....

न हैं इस्लाम  खतरे मे, न है भगवान खतरे मे !
तुम्हारे शौक़ में, इंसानियत , इंसान खतरे में !

न हिंदुस्तान खतरे में न, पाकिस्तान खतरे में !
तेरी अय्याशियां औ महले आलीशान खतरे में 

न आयत ही कभी पढ़ पाए, न श्लोक गीता के, 
चाय का कांपता कप हाथ में,हैरान,खतरे में 

भले बच्चे हों पेशावर के, कत्लेआम ढाका हो ,
कहीं रोये तड़प कर माँ, इसी अनजान खतरे में 

बुरा हो तेरी मक्कारी औ अंदाज़े बयानी का !
तेरी इस बादशाहत में, मेरी मुस्कान खतरे में !

Friday, July 1, 2016

आ जाएँ , बैठें पास मेरे , बतलायें, भारत कहां लिखूँ - सतीश सक्सेना

लो आज  कष्ट की स्याही से
संतप्त ह्रदय का गान लिखूं
धनपतियों से इफ़्तार दिला 
मैं निर्धन का रमजान लिखूं 
बतलाओ तुमको यार कहूँ ,
या केवल मित्र सुजान लिखूं !
अनुराग कहां सम्मानित हो
मनुहार  रचाये  चरणों में  !
आ जाएं कभी आनंदमयी, बतलायें  व्यथा मन कहां लिखूं ! 

नेताओं को कह देश भक्त ,
अधपके देश की शान लिखूं 
धन पर मरते, सन्यासी को  
दरवेशों का लोबान लिखूं !
या बरसों बाद मिले, जीवन 
में, भूखे का जलपान लिखूं 
धनपति बनने को राष्ट्रभक्त 
उग आये, रातों रात यहाँ !
कह जाएं किसी दिन रूपमयी , मन का वृन्दावन कहां लिखूं !

सूरज  को श्रद्धा नत होकर , 
मंत्री का स्वागत गान लिखूं !
या तिल तिल कर मरते, निर्जल 
इन वृक्षों को , उपहार लिखूं !
उम्मीदों में , बादलों  सहित, 
आती बारिश जलधार लिखूं !
कोसों तक प्यार नहीं दिखता 
नफ़रत फैलाती , दुनिया में !
पथ दिखलायें ,अनुरागमयी, बोलें  न , बुलावन कहां लिखूं !

संक्रमण काल में गीत बना
कर छंदों का अपमान लिखूं 
या धूर्त काल में गीतों की 
चोरी कर काव्य महान लिखूं
फिर महागुरु के चरण पकड़ 
कर, उनको दिव्य सुजान लिखूं 
कवितायें जन्म कहाँ लेंगी  ,
गुरु शिष्य बिकाऊ जिस घर में,
आ जाएं एक दिन दिव्यमयी, कह जाएं, स्तवन कहां लिखूं  !

बंगाल सिंध कश्मीर कटा, 
नफरत में, हिंदुस्तान लिखूं ,
जिसके रिश्ते, आधे उसमें 
उस घर को, पाकिस्तान लिखूं !
गांधार, पाणिनी आर्यक्षेत्र को 
अब अफ़ग़ानिस्तान लिखूं !
कुल, जाति, धर्म, फ़र्ज़ी गुरुर 
पाले, नफरत में  हांफ रहे !
आ जाएं किसी दिन करुणमयी , समझाएं तपोवन कहां लिखूं !


Related Posts Plugin for Blogger,