हाल में ढाका हादसे पर अातंकवादियों और उनके रहनुमाओं के लिए ....
न हैं इस्लाम खतरे मे, न है भगवान खतरे मे !
न हैं इस्लाम खतरे मे, न है भगवान खतरे मे !
तुम्हारे शौक़ में, इंसानियत , इंसान खतरे में !
तेरी अय्याशियां औ महले आलीशान खतरे में
न आयत ही कभी पढ़ पाए, न श्लोक गीता के,
चाय का कांपता कप हाथ में,हैरान,खतरे में
भले बच्चे हों पेशावर के, कत्लेआम ढाका हो ,
कहीं रोये तड़प कर माँ, इसी अनजान खतरे में
बुरा हो तेरी मक्कारी औ अंदाज़े बयानी का !
तेरी इस बादशाहत में, मेरी मुस्कान खतरे में !
बेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत सही और सामयिक।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 06 जुलाई 2016 को लिंक की गई है............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह ।
ReplyDeleteगहन विचारणीय पंकितयां ...
ReplyDeleteआभारी.
http://yaaden.in/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%88-%E0%A4%A4%E0%A5%8B-%E0%A4%B2%E0%A5%8C%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%8F/
बुरा हो तेरी मक्कारी औ अंदाज़े बयानी का !
ReplyDeleteतेरी इस बादशाहत में, मेरी मुस्कान खतरे में !
..बहुत खूब ...दो टूक ...
c
ReplyDeleteसही कहा है, धर्म को खतरे में बताने वाले धर्म का अर्थ ही नहीं जानते.
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
तेरी इस बादशाहत में मेरी मुस्कान खतरे में....क्या बात है सतीश जी, लाजवाब
ReplyDeleteमुस्कान ख़तरे में 😧
ReplyDeleteअद्भुत प्रस्तुति 👌👌👌
न आँखों में शरम कोई, न ही, इक बूँद, पानी है
ReplyDeleteहमारे हुक्मरानों की, फ़क़त इतनी कहानी है
तुझे किसने कहा था कि खुलासा उनका तू कर दे
तुझे इस साफ़गोई की बड़ी कीमत चुकानी है