Saturday, March 29, 2014

कुछ भाभी ने हंसकर बोला, कुछ कह दिया इशारों ने -सतीश सक्सेना

कैसे प्यार छिना, पापा की 
गुड़िया , का दरवाजे से ,
कैसे जुदा हुई थी लाड़ो    
भारी गाजे बाजे  से  ! 
जब से विदा हुई है घर से ,
क्या कुछ बहा, हवाओं में !
कुछ तो दुनिया ने समझाया , कुछ अम्मा की बांहों ने !

किसने सीमाएं समझायी 
किसने गुड़िया छीनी थी !
किसने उसकी उम्र बतायी 
किसने तकिया छीनी थी !
कहाँ गए अधिकार पुराने, 
क्या सुन लिया दिशाओं में ! 
कुछ तो बहिनों ने बतलाया, कुछ कह दिया बुआओं ने !

कहाँ गया भाई से लड़ना

अपने उन , सम्मानों को  !
कहाँ गया अम्मा से भिड़ना 
अपने उन अधिकारों को !
कुछ तो डर ने समझाया था 
कुछ पढ़ लिया रिवाजों में  !
कुछ भाभी ने हंसकर बोला, कुछ कह दिया इशारों ने !

पापा की जेबें, न जाने 
कब से राह , देखती हैं !
कौन तलाशी लेगा आके
किसकी चाह देखती हैं !
कुछ दूरी पर रहे लाड़ली, 
सुखद गांव की छावों में !
कुछ गुलमोहर ने समझाया, कुछ घर के सन्नाटों ने !

कैसे  बड़ी हो गयी मैना
कैसे उड़ना सीख लिया !
कैसे  ढूंढें, तिनके घर के ,
कैसे  जीना सीख लिया !
खेल, खिलौने खोये अपने, 
इन ससुराल की  राहों में !
कुछ तो आंसू ने समझाया , कुछ बाबुल की बाँहों ने !

23 comments:

  1. उसे कभी विश्राम नहीं है तीज-तिहार हो या इतवार
    हाथ बटॉता नहीं है कोई तुम मानो या न मानो ।
    इन्साफ नहीं होता है दफ्तर में भी उसके साथ कभी
    ज़्यादा काम दिया जाता है तुम मानो या न मानो ।
    कोई नहीं समझता उसको कहने को सब अपने हैं
    नारी भी नारी की दुश्मन है तुम मानो या न मानो ।
    शकुन कोई तरक़ीब बता वह भी जीवन सुख से जी ले
    जीवन यह अनमोल बहुत है तुम मानो या न मानो ।

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  2. वात्सल्य भाव से ओतप्रोत सुंदर भावपूर्ण रचना..

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  3. खेल, खिलौने खोये अपने,इन ससुराल की राहों में !
    कुछ समझाया,सबने रोकर,कुछ बाबुल की बाँहों ने !

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!

    RECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )

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  4. बिटिया समझदार हो गई...न चाहते हुए भी स्वीकार कर लेने का दर्द झलक रहा है अभिव्यक्ति में...जहाँ भी रहे बस खुश रहे !!!

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  5. Bahut achi kavita hai uncle. Papa ke dil ki awaaz hai bhavuk to hogi hi.

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  6. परिवार में जिए अनुभूत सुखद पलों की सहज भावाभिव्यक्ति।
    पाठकों के मन को आह्लादित करती हैं आपकी अधिकांश रचनाएँ।
    आपकी रचनाएँ सुप्त संवेदनाओं को जगाकर ताज़गी से भी भर देती हैं।
    मैं प्रायः आपके यहाँ आकर संबंधों में मिठास की विविधता का रसपान किया करता हूँ।

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  7. उपरोक्त अभिव्यक्ति में जहाँ एक ओर एक पिता के दिल की आवाज है. वहीँ दूसरी ओर बिटिया समझदार हो गई...न चाहते हुए भी स्वीकार कर लेने का दर्द झलक रहा है.लेकिन फिर बस एक ही इच्छा है कि उसकी बेटी जहाँ भी रहे बस खुश रहे.

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  8. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!

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  9. बहुत ही हृदय-स्पर्शी रचना है हृदय के बाँध तोडकर लिखी हुई तभी तो जो आपने महसूस किया वही पाठक कर रहा है । एक पिता के लिये बेटी कभी बडी नही होती और बेटी भी पिता के सामने बच्ची ही रहती है चाहे वह कितनी ही उम्रदराज़ होजाए । आपकी स्नेहमय पीडा व्यक्त हो रही है कविता से ।

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  10. यह समझदार होना जीवन के सच को शिरोधार्य करना है .मन भीगे, चाहे दुखे स्वीकार किये बिना गति नहीं !

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  11. बहुत सुन्दर रचना मन को छू गए भाव !

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  12. जिसकी लाठी भैंस उसी की तुम मानो या न मानो ।
    नारी नहीं बराबर नर के तुम मानो या न मानो ॥

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  13. पापा की जेबें, न जाने
    कब से राह, देखती हैं !
    कौन तलाशी लेगा आके
    किसकी चाह देखती हैं ..
    दिल को छू जाती हैं ये पोंक्तियाँ ... गुजरी हुई बातों कि तरह यादें रह जाती हैं ...

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  14. बहुत सुन्दर भावमयी रचना आदरणीय ....आँख भर आई

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  15. स्तब्ध हूँ
    एक पिता की लेखनी को सलाम

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  16. पापा की जेबें, न जाने
    कब से राह, देखती हैं !
    कौन तलाशी लेगा आके
    किसकी चाह देखती हैं !
    मन हार गये इन पंक्तियों पर।

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एक निवेदन !
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- सतीश सक्सेना

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