धर्म और राजनीति के बेतुके मेल की, यह जहरीली शाखाएं, इस देश को बरसों पीछे ले जाएंगी ! किसी भी देश में धार्मिक कट्टरता , अगर राजनीति के साथ खड़ी हो गयी तो इस शताब्दी में उस देश का रसातल में जाना तय है ! धन के लालच में उगीं यह दाढ़ियाँ, उस देश की उन्नति को बर्वाद करने में सक्षम हैं !
कैसे नफरत आग बुझाएं , जल बरसे शाखाओं से
द्वेष देखकर,जीवन रोये,विष छलके शाखाओं से !
धर्म कर्म के छंद सिखायें,ऋषियों की आवाजों में
दिखने में तो कल्पवृक्ष,पर आग झरे शाखाओं से !
कितने भ्रम फैलाते आकर,अपनी बात बताने में !
चन्दा तारों से भय लगता,सुन किस्से शाखाओं से !
काहे इतना जहर घोलते, अपने घर के आँगन में !
सोये बच्चे ही भुगतेंगे , जहर गिरे शाखाओं से !
वृक्ष हमेशा ही मानव को फल औ छाया देता था,
आज यह कैसे खून की बूँदें भी छलके शाखाओं से !
कैसे नफरत आग बुझाएं , जल बरसे शाखाओं से
द्वेष देखकर,जीवन रोये,विष छलके शाखाओं से !
धर्म कर्म के छंद सिखायें,ऋषियों की आवाजों में
दिखने में तो कल्पवृक्ष,पर आग झरे शाखाओं से !
कितने भ्रम फैलाते आकर,अपनी बात बताने में !
चन्दा तारों से भय लगता,सुन किस्से शाखाओं से !
काहे इतना जहर घोलते, अपने घर के आँगन में !
सोये बच्चे ही भुगतेंगे , जहर गिरे शाखाओं से !
वृक्ष हमेशा ही मानव को फल औ छाया देता था,
आज यह कैसे खून की बूँदें भी छलके शाखाओं से !
खून जब किसी की सोच में बहना शुरु हो जाता है
ReplyDeleteलबालब होने के बाद टपकना शुरु भी हो जाता है :)
बहुत उम्दा रचना ।
काहे इतना जहर घोलते, अपने घर के आँगन में !
ReplyDeleteसोये बच्चे ही भुगतेंगे , जहर गिरे शाखाओं से !
bahut badi bat hai ye par jab bahut der ho jaati hai tab samajh me aati hai ...katu hai par aaj ki yahi sacchai hai .......aabhar aapka ....satish jee ...
इतिहास साक्षी है युद्ध से ज्यादा खून धर्म ने बहाया है |
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
बहुत ही सशक्त रचना, जिसके माध्यम से आपने हकीकत बयां कर दी.
ReplyDeleteरामराम.
पैदा हुए तो सच्चे थे,पर धर्म सिखाया दुनियां ने,
ReplyDeleteआज यह कैसे खून की बूँदें,टपक रहीं शाखाओं से ..
कितना अजीब है ... हम इस बात को जानते हैं फिर भी धर्म सिखाते हैं ... उसे हिंदू मुस्लिम बनाते हैं ...
धर्म और राजनीति के घालमेल के घातक परिणाम होंगे। विवेक जी की मुहिम को भरपूर समर्थन।
ReplyDeleteधार्मिक कट्टरता को हर हाल में रोका जाना चाहिए..
ReplyDeleteकैसे जड़ से नफरत करके,प्यार करें शाखाओं से !
ReplyDeleteद्वेष देखकर,जीवन रोये,विष छलके शाखाओं से !.............बहुत बढ़िया
नमस्ते भैया
पूर्वाग्रह को तज-कर हमको सच्चाई तक जाना होगा ।
ReplyDeleteदेश-हेतु जो रहा समर्पित उस पर विश्वास जताना होगा ।
देश की दुखद परिस्थितियाँ।
ReplyDeleteदेश की दुखती रगों पर हाथ रखती हुई एक संवेदनशील और सशक्त रचना है यह ।
ReplyDeleteकाहे इतना जहर घोलते, अपने घर के आँगन में !
ReplyDeleteसोये बच्चे ही भुगतेंगे , जहर गिरे शाखाओं से !
...वाह...लाज़वाब प्रस्तुति...आज धर्म के नाम पर कितना ज़हर घोला जा रहा है...
बेक़ाबू हालत और ऐसे में आपकी पीड़ा जो इस रचना में उभर कर आई है!! बस नि:शब्द कर देती है!!
ReplyDeleteमेरी बात ही सत्य है, इस कट्टरता के कारण ही धार्मिक कट्टरता प्रारम्भ हुई है। हमें सभी के विचारों को समझना होगा।
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे . .. . .
Deleteपैदा हुए तो सच्चे थे,पर धर्म सिखाया दुनियां ने,
ReplyDeleteआज यह कैसे खून की बूँदें,टपक रहीं शाखाओं से !
घर परिवार समाज सब ने अपने अपने सहूलियत के हिसाब से
दिया एक नाम,धाम,जाती,धर्म और उसीसे निर्मित हुआ एक विषैला
व्यक्तित्व, दोष किसका है ? शाखाओं का क्या कसूर है ?
वाह...क्या बात है...
ReplyDeleteप्रणाम
ReplyDeleteसतीश जी आपकी ये कविता और पिछले कुछ दिनों के माहौल जो कुछ मुखौटे पहनने वाले लोगों ने तैयार किया हैं, उसकी सच्चाई है, मैंने बहुत पहले से इस तथ्य के बावत मोर्चा खोला हुआ है, आपकी कविता एक और मोर्चा है। मुझे बस कुछ कमेंट्स देखकर यह कहने का मन किया की हम सभी लोगों को यह सामूहिक तौर पर देखना होगा की जिसे हम धर्म कह रहे हैं कहीं वो पंथ तो नहीं? मैं मानता हूँ की इस धरती में अगर परिचय कराया जाता है तो पंथ से, पंथ से आगे जब हम निकल जाते हैं तब व्यक्ति धर्म को जान पाता है और धर्म को जानने के बाद ही आध्यात्मिकता जन्म लेती है। सच तो यह है की जब तक लोग जन्म से ही किसी पंथ के मार्गी होंगे तब तक धर्म का आगमन नहीं सकता।
आज यह भी कहना चाहूंगा की (जो की आपकी कविता के बाद दिए गए कमेंट्स का हिस्सा है) झगड़े धर्म के नहीं हैं, आज तक के सारे झगड़े पंथीय झगड़े रहे हैं, और जब तक मनुष्य का विस्तार पंथ से धर्म की तरफ नहीं होता झगड़े चलते रहेंगे। असल बात तो यह है की सारे झगड़े असल में पंथीय ही होते हैं, चाहे वो कहीं भी हो, घर में, परिवार में, दोस्तों के साथ, या ऑफिस में ( जरा गौर से अगर हम देखें तो)
इस परिस्थिति के जिम्मेदार सबसे ज्यादा मैं उनको मानता हूँ जो मेरी दुनिया के प्रतिनिधित्व करते दिखायी देते हैं ( साहब ये बात अलग है कि कहा जाता है जो व्यक्ति मेरे ध्यान के कार्यक्रमों और मेरे व्याख्यान में हिस्सा लेते हैं वो अधार्मिक है!!) इसलिए मैं ही अंदर से उनके खिलाफ नहीं पर एक वास्तविक स्थिति के लिए रोज चर्चा और विचार रख रहा हूँ, इतना काफी नहीं क्योंकि एक जनमानस को अपने आधार में जो बातें स्वीकार कर ली गयीं हैं उनसे भी मुक्त होना है, बहुत लम्बा कह दिया पर इस कविता के आधार से जो कमेंट्स दिखे मुझे लगा जैसा पश्चिम में हुआ है, जहाँ सत्यता नहीं देखी गयी और जीवन के कुछ अनुपम सत्यों पर विराम लग गया, कहीं अगर भारत में ऐसा भी हुआ तो पूरी दुनिया के लिए एक बहुत बड़ा झटका होगा। मैं चाहता हूँ एक दिन हमारे परिवारों से ऐसा आये जब हम पैदा होने वाले बच्चे को पंथीय प्रणाली में न डालें, उसे खोजने दें, जांचने दें, और नैसर्गिक विचार को मौका दें। अगर ऐसा हुआ तो ही कभी धर्म का उदभव हो पायेगा।
धार्मिक होना हमारी उपलब्धि है, कोई जन्म अधिकार नहीं,
आदरणीय विवेक जी ,
Deleteप्रणाम ,
मेरी रचना के फलस्वरूप आपका यह पत्र पढ़कर, रचना लेखन सफल हो गया ! हर रचना का उद्देश्य श्रेष्ठ और विद्वानों लोगों का ध्यान आकर्षित करना होता है ताकि रचना का सन्देश समाज को आसानी से चला जाय आपके अनुयायी निश्चय ही इसे महत्व देंगे, अतः मैं आपका धन्यवाद करता हूँ !
मैं एक सामान्य रचनाकार एवं कवि हूँ और जब भी जो कुछ समाज में कष्टदायक घटित होता है तब उसे लिख देता हूँ , इस रचना का दर्द एक कवि का कष्ट है कि समाज में राजनैतिक लोग धर्म का नाम लेकर सीधे साधे लोगों को बहका रहे हैं उन्हें लोगों के खिलाफ भय पैदाकर,उकसाकर अपने अपने झंडे तले, इकट्ठाकर रहे हैं ! भय का यह वातावरण २१वॆ शताब्दी में भी, उन्हें अन्य मानवों के खिलाफ एकजुट करने को काफी है !
इस भयावह वातावरण में राजनीतिज्ञों को फायदा एवं आने वाली पीढ़ियों को अपार नुकसान होगा, देश की बरसों की साख मिटटी में मिल जायेगी अतः नयी पीढ़ी को सावधान करते हुए लिख दिया है ताकि सनद रहे !
मेरा यह विश्वास है कि धर्म और राजनीति के बेतुके मेल की, यह जहरीली शाखाएं, इस देश को बरसों पीछे ले जाएंगी ! किसी भी देश में धार्मिक कट्टरता , अगर राजनीति के साथ खड़ी हो गयी तो इस शताब्दी में उस देश का रसातल में जाना तय है ! धन के लालच में उगीं दिखावटी दाढ़ियाँ, उस देश की उन्नति को बर्वाद करने में सक्षम हैं !
विभिन्न पंथों अथवा पथप्रदर्शकों के बारें आज सामान्य इंसान बेहद भ्रमित है , अफ़सोस है कि राजनैतिक लोग इन मुखौटों को पहन, पथ प्रदर्शन का दावा कर रहे हैं , यही मुखौटे पहने लोग समाज के पथभ्रष्टक हैं !
मैंने हाल के आपके वक्तव्यों को पढ़ा है , आपका संकल्प पूरा हो ,यही कामना है !
http://satish-saxena.blogspot.in/2014/03/blog-post_24.html
ओह… लाजवाब लिखा है आपने। बड़े दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ। अच्छा लगा आपको देखकर कि आप अनवरत लगे हुए हैं।
ReplyDeleteआज के यथार्थ को परिभाषित करती विचारोतेज्जक रचना ।
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित और उम्दा सामयिक रचना...इसके साथ-साथ विवेक जी और सतीश जी की संवाद ने इसे और ब्लागिंग को एक नये शिखर पर पंहुचाया है....मैं भी आपलोगों से पूरी तरह सहमत हूँ...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@चुनाव का मौसम
सच है, बालक के निर्मल मन को विकृत करने का काम तथाकथित बड़े 'समझदार' लोग ही करते हैं .शुरू से उन्हें ढालने के प्रयास होने लगते हैं .जब तक इसे रोका नहीं जाएगा दुनिया में ख़ून-ख़राबा रुकेगा नहीें .जो कड़वी सच्चाइयाँ आपने वर्णित की हैंउनमें ज़रा भी अतिशयोक्ति नहीं है -बधाई !
ReplyDeleteधर्म कर्म के छंद सिखायें,ऋषियों की आवाजों में
ReplyDeleteदिखने में तो कल्पवृक्ष,पर आग झरे शाखाओं से !
एक शाश्वत सत्य
सतीश जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं.
ReplyDeleteशुक्रिया काजल भाई …
Deleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteक्या बात है........लाजवाब लिखा है आपने।
ReplyDeleteबात आपने बिल्कुल सही, सीधी और निश्पक्ष लिखी,
ReplyDeleteकभी कभी सोचती हूँ, इस ब्लाग जगत में इतने सारे बुद्धिजीवी लोग हैं, जिनके लेखन में वो शक्ति है जो समाज की धारा को बदल सकती है,
फिर भी एक ऐसा वर्ग जो राजनीति की रोटियां निरंतर हमारे ही समाज सेंक रहा है, ये सिलसिला क्यों नही थम रहा, कमी कहाँ है,
क्या अच्छा पढने के बाद हम चिंतन, मनन करते हैं, क्या हम स्माज के सोये हुये लोगों को नही जगा सकते।
आज जरूरत है कि हम लेखनी की शक्ति को पहचाने।
जो अच्छा लिखा जा रहा है , उसका प्रयोग समाज को सही दिशा दिखाने मे लगाये।
आपकी इस रचना में बहुत ताकत है।
बस यही चाहूंगी, कि पाठकगण इसे सिर्फ एक गीत मात्र ना समझ कर ना पढे, ये एक चेतावननी भी है कि आज नही सोचा तो कल सोचने जैसे हालात भी ना रहेगें......