बेतुल में विवेक जी के आवाहन पर , पहली बार कविमंच पर गया था एवं यह जानकार अभिभूत था कि विवेक जी को यह भरोसा था कि कवि और कविता समाज को बदलने की सामर्थ्य रखती है अतः आवश्यकता है कि कवि की मर्यादा को वह सम्मान दिया जाए जिसके वह योग्य है !
इस रचना के प्रेरणा श्रोत विवेक जी हैं अतः यह रचना उनकी विचारधारा आनंद ही आनंद को समर्पित है ….
निर्मल औ निष्कपट संत ही कविता सुनने आएंगे
प्रेमी, ज्ञानवान, अनुरागी, कवि से मिलने आएंगे !
निष्ठुर मन वाले गीतों के साथ बैठ क्या पाएंगे !
केवल शुद्ध विचारों वाले, प्रीति सीखने आएंगे !
सरस्वती का ऋण कवियों पर,गीतदान दे जाएंगे
आस्था और श्रद्धा का घर से अर्थ सीखने आएंगे !
भुला व्यथा,प्रतिबंध,समय को संवेदना सिखायेंगे !
गीतों के माध्यम से मानव ,प्यार सीखने आएंगे !
बहुत शीघ्र कविमंच देश में,खोया गौरव पायेंगे !
व्याकुल मानव,राहत पाने, गीत खोजने आएंगे !
निर्मल औ निष्कपट संत ही कविता सुनने आएंगे
प्रेमी, ज्ञानवान, अनुरागी, कवि से मिलने आएंगे !
निष्ठुर मन वाले गीतों के साथ बैठ क्या पाएंगे !
केवल शुद्ध विचारों वाले, प्रीति सीखने आएंगे !
सरस्वती का ऋण कवियों पर,गीतदान दे जाएंगे
आस्था और श्रद्धा का घर से अर्थ सीखने आएंगे !
भुला व्यथा,प्रतिबंध,समय को संवेदना सिखायेंगे !
गीतों के माध्यम से मानव ,प्यार सीखने आएंगे !
बहुत शीघ्र कविमंच देश में,खोया गौरव पायेंगे !
व्याकुल मानव,राहत पाने, गीत खोजने आएंगे !
वाह ! बढ़ती व्यावसायिकता के दौर में यह नया प्रयोग है। विवेक जी साधुवाद के पात्र हैं।
ReplyDeleteऐसा ही हो !
ReplyDeleteनिर्मल मन को रखने वाले, कविता सुनने आयेगे !
ReplyDeleteआस्था,श्रद्धा,धैर्य हमेशा, कवि से मिलने आयेंगे !
वाह ! बहुत सुंदर संदेश देती पंक्तियाँ...
कवि और समाज अन्योन्याश्रित है
ReplyDeleteकविता जरुर बदलाव लाती है
सुन्दर रचना !
बढिया है..
ReplyDeleteकवि और कविता समाज को बदल पाएं या नहीं , पता नहीं. लेकिन हां, नौशाद ज़रूर याद आते हैं जिनसे किसी ने संगीत की उपयोगिता पूछी तो उनका कहना था कि मियां आपने संगीत से जुड़े कितने लोगों को अपराधी पाया है. रचनाकर्म की अपनी जगह है. निश्चय ही.
ReplyDeleteजब ऐसे कवि हों और कवि के अन्दर लगातार समाज को दर्पण दिखाने का साहस और सामर्थ्य हो तो समाज उनकी कविताओं छिपे सन्देश से कैसे अछूता रह सकता है!!
ReplyDeleteहम भी आपकी कविता की खोज में सदा ही यहाँ आते हैं, और संतुष्ट हो जाते हैं।
ReplyDeletekalam ki shakti aparampaar hai .....bahut sundar khawahish ...aamin .....
ReplyDeleteलोककल्याणकारी सृजन इसे कहते हैं ।
ReplyDeleteक्लास और मास में अंतर तो रहेगा ही...
ReplyDeleteसत्यम्-शिवम्-सुन्दरम्: यही वह संदेश है जिसे काव्य वहन करता है ,जसके लिए कवि सतत प्रयत्नशील रहता है - ऐसा ही हो !
ReplyDeleteकाश कवि सम्मेलनों में कविता का दौर वापस आए।
ReplyDeletebadhai aur shubhkamna ! is se pahle aap vishwa pustak mela nai dilli me lekhak manch se bhi kavita path kar chuke hain ! maine suna hai aapko
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteसच है लेखक की कलम में समाज बदलने की सामर्थ्य रहती हैं।।।
सरस्वती का ऋण लेकर,कवि गीतदान दे जायेंगे !
ReplyDeleteसम्मोहक,शालीन,अलंकृत,करुणा सुनने आयेंगे !
प्रणाम भाई साहब सरस्वती कि कृपा बनी रहे
हम भी पढ़ने आ गए. होली की शुभकामनायें!
ReplyDeletewah...sundar shabd sandesh dete hue...suthre bhav...
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