जाने कब से देख न पाया
बार बार जाकर बस्ती में
भी दरवाजे पहुँच न पाया
लेकिन फिर भी हार गए तुम,
ओ समाज के ठेकेदारों !
आज रात भी साथ बैठकर, मनकों की माला पोए थे !
कौन छीन पायेगा हमसे
सपने जो मन में रहते हैं !
कौन रोक पायेगा आंसू
जो हँसने, में भी बहते हैं !
तुम समझे थे हमें दूर कर,
ये अनुराग ख़त्म कर दोगे !
लेकिन कितनी बार रात में, दोनों पास पास सोये थे !
दुनिया वाले हंस कर कहते
दीवानों को अलग कर दिया
सारी शक्ति लगाकर अपनी
अरमानों को दूर कर दिया !
जलने वालों की नज़रों में,
उजड़ी आंगन की फुलवारी !
मगर उसी दिन हम दोनों ने, वादे साथ साथ बोये थे !
उस दिन मेले में देखा था ,
आँखों आँखों बात हो गयी !
विरह व्यथा का वर्णन करते
मन में ही बरसात हो गयी !
जब भी चाहें तब मिलते हैं,
क्या कर लेंगे बस्ती वाले !
दुनिया भर की, ऊँच नीच के कपडे , आंसू से धोये थे !
मन मयूर के साथ हर समय
रहने वाले को क्या जानो !
अंतर्मन मंदिर की भाषा ,
सप्त पदों को क्या पहचानो !
प्यार की भाषा सीख न पाये
कैसे हम तुमको समझाएं !
पता नहीं कितने युग बीते, प्यार की दुनिया में खोये थे !
कैसे छीनोगे तुम हमसे
जो मेरे मन में रहती है !
कैसे छीनोगे वे यादें जो
जन्मों से लिखी हुईं हैं !
मरते दम तक साथ न छोड़ें,
जो मन में आये कर लेना !
इतने गहरे कष्ट याद कर, फफक फफक कर हम रोये थे !
कैसे छीनोगे तुम हमसे
ReplyDeleteजो मेरे मन में रहती है !
कैसे छीनोगे वे यादें जो
जन्मों से लिखी हुईं हैं !
मरते दम तक साथ न छोड़ें,जो मन में आये कर लेना !
इतने गहरे कष्ट यादकर,फफक फफक कर हम रोये थे !
संवेदना के तह को छूने वाला गीत कोइ गीतों का नरेश ही लिख सकता है --
बहुत सुन्दर गीत ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया -
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
वाह ! वाह ! बहुत ही शानदार गीत |
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .....!
ReplyDeleteतभी तो आप कवि हैं ,सतीश जी !
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील...
ReplyDeleteसंवेदना से भरे मन को छूती गहरी पंक्तियाँ
ReplyDeleteअनमोल यादों कि कड़ियाँ
आपके गीतों का जवाब नहीं है, बधाई।
ReplyDeleteआपका लेखन हृदय में उतर जाता है, पर समस्या यह है हृदय में उतरने के पहले आँख नम कर जाता है।
ReplyDeleteह्रदय स्पर्शी सुंदर संवेदनशील रचना ......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया । मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE.पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं भावप्रधान रचना.
ReplyDeleteसमाज के ठेकेदारों को प्रेम कहाँ समझ में आता है
ReplyDeleteसतीश जी, बहुत सार्थक गीत है !
वाह...कितने सुन्दर भाव......बधाई....
ReplyDeleteवाह...कितने सुन्दर भाव......बधाई....
ReplyDeleteउस दिन मेले में देखा था ,
ReplyDeleteआँखों आँखों बात हो गयी !
विरहव्यथा का वर्णन करते
मन में ही बरसात हो गयी !
जब भी चाहें तब मिलते हैं,क्या कर लेंगे बस्ती वाले !
दुनिया भर की, ऊँच नीच के कपडे , आंसू से धोये थे !
वाह बहुत सुन्दर भाव
नयन गिरा की गरिमा अद्भुत शब्दों पर भारी पढती है ।
ReplyDeleteजब-जब वह चुप-चुप दिखती है अनगिन प्रेम-कथा गढती है॥
मरते दम तक साथ न छोड़ें,जो मन में आये कर लेना !
ReplyDeleteइतने गहरे कष्ट यादकर,फफक फफक कर हम रोये थे !
............. मन को छूती गहरी पंक्तियाँ