Thursday, November 20, 2008

स्वप्न में आयीं वामा सी, स्नेहमयी तुम कौन हो ? - सतीश सक्सेना

स्वप्न में आयीं वामा सी, 
स्नेहमयी तुम कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया, 
करुणमयी तुम कौन हो ?
बाल बिखेरे प्रेयसि जैसे, 
आँख में ममता माता जैसी
नेह भरा स्पर्श लिए तुम ,  
प्रकृति सुंदरी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?

तपती धरती पर सावन की
बूँद गिरी हरियाली आयी
जैसे पतझड़ के मौसम में
अमराई भर आई हो !
ऐसे आईं तुम जीवन में
महक उठी दुनिया सारी
मैं निर्धन पहचान न पाऊँ ,
राजलक्ष्मी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?

कितना समझाता हूँ मन को
पर असफल ही रहता हूँ
कैसा प्यार चाहता तुमसे
यह मुझको मालूम नहीं
कजरारी आँखों की भाषा
चातक के दिल की परिभाषा
निश्छल मन मैं जान न पाऊँ ,
राजनंदिनी कौन हो ?
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?

दो गुलाब की पंखुड़ियों से 
प्यासे ओठों  को छू जाना 
तपते चेहरे को आंचल
से ढांक मधुरिमा पहुँचाना 
ऐसा प्यार तुम्हारा पाकर, 
इतना क़र्ज़ तुम्हारा लेकर 
मैं याचक पहचान न पाऊँ , 
प्रणय सुंदरी  कौन  हो   ??
जिसकी गोद में सिर रख रोया करुणमयी तुम कौन हो ?   

Tuesday, November 11, 2008

प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ? -सतीश सक्सेना

शीतल मनभावन पवन बहे
बादल चहुँ ओर उमड़ते हैं !
जिस ओर उठाऊँ दृष्टि वहीं
हरियाली चादर फैली है !
मन में उठता है प्रश्न, 
पवन लहराने वाला कौन ?
बादलों के सीने को चीर बूँद बरसाने वाला कौन?

कलकल छलछल जलधार
बहे,ऊँचे शैलों की चोटी से 
आकाश चूमते  वृक्ष लदे   
स्वादिष्ट फलों औ फूलों से
हर बार, रंगों की चादर से , 
ढक जाने वाला कौन ?
धरा को बार बार रंगीन बना कर जाने वाला कौन ?

चिडियों का यह कलरव वृन्दन !
कोयल की मीठी , कुहू कुहू !
बादल का यह गंभीर गर्जन ,
वर्षा की ये रिमझिम रिमझिम !
हर मौसम की रागिनी अलग,
सृजनाने वाला कौन ?
मेघ को देख घने वन में मयूर नचवाने वाला कौन ?

अमावस की काली रातें 
ह्रदय में भय उपजाती हैं !
चांदनी की शीतल रातें, 
प्रेमियों को क्यों भाती हैं !
देख कर उगता पूरा चाँद , 
कल्पना शक्ति बढाता कौन ?
चाँद को देख ह्रदय में कवि के,मीठे भाव जगाता कौन ?

कामिनी की मनहर मुस्कान
झुकी नज़रों के तिरछे वार !
बिखेरे नाज़ुक कटि पर केश
प्रेम अनुभूति , जगाये वेश  !
लक्ष्य पर पड़ती मीठी मार , 
रूप आसक्ति बढाता कौन ?
देखि रूपसि का योवन भार,प्रेम अभिव्यक्ति कराता कौन ?

Thursday, November 6, 2008

अपनी माँ को धुँधली यादों में ढूँढता बच्चा !

आदरणीय जे सी फिलिप शास्त्री का अनुरोध माँ पर लिखने का पाकर, बहुत देर तक सोचता रह गया !
क्या लिखूं मैं, माँ के बारे में ! यह एक ऐसा शब्द है जो मैंने कभी किसी के लिए नही बोला, मुझे अपने बचपन में ऐसा कोई चेहरा याद ही नही जिसके लिए मैं यह प्यारा सा शब्द बोलता !

अपने बचपन की यादों में, उस चेहरे को ढूँढने का बहुत प्रयत्न करता रहा हूँ मगर हमेशा असफल रहा मैं अभागा !

मुझे कुछ धुंधली यादें हैं उनकी... वही आज पहली बार लिख रहा हूँ ....जो कभी नही लिखना चाहता था !
-लोहे की करछुली (कड़छी) पर छोटी सी एक रोटी, केवल अपने इकलौते बेटे के लिए, आग पर सेकती माँ....
-बुखार में , अपने बच्चे के चेचक भरे हाथ, को सहलाती हुई माँ ....
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँको मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे ले गए मेरी माँ को ....

बस यही यादें हैं माँ की ......

Monday, November 3, 2008

सूनी दीवाली -सतीश सक्सेना

"लंदन में मेरी दुर्घटनाग्रस्त बेटी को जीवन में पहली बार यह त्यौहार अकेले मनाना पड़ा। ऊपर से इस बार यकायक लंदन में दीपावली की रात २-२ फीट हिमपात हो गया। ऐसे में उसे याद आई तो केवल माँ और अपनी उस दिन की वे स्मृतियाँ जब उसने मुझे सुनाईं तो सिवाय फफक फफक कर रोने के कोई शब्द मेरे पास नहीं था।"

उपरोक्त शब्द डॉ कविता वाचक्नवी के हैं, जिनके जरिये उन्होंने बिना प्रमुखता, दिए अपने मन की वेदना दीपावली के बारे में बताते हुए प्रकट की थी ! और यह वेदना उस दिन की चर्चा में बहुत कम लोगों ने नोट की थी ! मुझे अहसास हुआ जब फुरसतिया ने इस पर ध्यान न जाने की क्षमायाचना करते हुए कमेंट्स में प्रमुखता दी ! एक माँ से हजारों मील दूर लन्दन में इलाज़ करा रही इस बच्ची के लिए मेरी शुभकामनायें !

आज के इस व्यस्त माहौल में हम लोगों में संवेदना का महत्व कम होता जा रहा है, बल्कि अगर यह कहा जाए कि खत्म हो गया है तो भी शायद अतिशयोक्ति नही होगी !


मुझे याद है नवम्बर २००५ की दीपावली जब मेरा बेटा पहली वार अपने घर से हजारों मील दूर कैलिफोर्निया में पार्टी फंक्शन्स में ना जाकर अकेले कमरे में बैठ कर दीवाली पूजा कर रहा था ! वह चित्र देख कर दीवाली का सारा आनंद एक उदास रात में बदल गया था जो आज तक भुलाये नही भूलता है !

इस निर्दयी विश्व में अपनों के प्रति यह संवेदना और प्यार की अनुभूति ही जीवन का आधार है
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