Monday, October 27, 2014
Thursday, October 23, 2014
Tuesday, October 21, 2014
कवि कैसे वर्णन कर पाए , इतना दर्द लिखाई में - सतीश सक्सेना
कहीं क्षितिज में देख रही है
जाने क्या क्या सोच रही है
किसको हंसी बेंच दी इसने
किस चिंतन में पड़ी हुई है
जाने क्या क्या सोच रही है
किसको हंसी बेंच दी इसने
किस चिंतन में पड़ी हुई है
नारी व्यथा किसे समझाएं,
गीत और कविताई में !
गीत और कविताई में !
कौन समझ पाया है उसको, तुलसी की चौपाई में !
उसे पता है, पुरुष बेचारा
पीड़ा नहीं समझ पायेगा
पीड़ा नहीं समझ पायेगा
दीवारों में रहा सुरक्षित
कैसे दर्द, समझ पायेगा
पौरुष कब से वर्णन करता,
आयी मोच कलाई में !
आयी मोच कलाई में !
जगजननी मुस्कान ढूंढती , पुरुषों की प्रभुताई में !
पीड़ा, व्यथा, वेदना कैसे
संग निभाएं बचपन का
कैसे माली को समझाएं
सबसे कोमल शाखा झुलसी,
अनजानी गहराई में !
अनजानी गहराई में !
कितना फूट फूट कर रोयी , इक बच्ची तनहाई में !
बेघर के दुःख कौन सुनेगा ,
कैसे उसको समझ सकेगा ?
अपने रोने से फुरसत कब
जो नारी को समझ सकेगा ?
कैसे छिपा सके तकलीफें,
इतनी साफ़ ललाई में !
कैसे छिपा सके तकलीफें,
इतनी साफ़ ललाई में !
भरा दूध आँचल में लायी, आंसू मुंह दिखलाई में !
कैसे सबने उसके घर को
सिर्फ, मायका बना दिया
और पराये घर को सबने
उसका मंदिर बना दिया
कवि कैसे वर्णन कर पाए ,
इतना दर्द लिखाई में !
कैसी व्यथा लिखा के लायी ,अपनी मांगभराई में !
इतना दर्द लिखाई में !
कैसी व्यथा लिखा के लायी ,अपनी मांगभराई में !
Wednesday, October 8, 2014
कैसे सिसके करवाचौथ बिचारी सी - सतीश सक्सेना
प्रतिबद्धता कहें अथवा लाचारी सी !
ग्लानि थकान विषाद और उत्पीड़न भी
मिल कर देख न पाये , नारी हारी सी !
जग जननी लगती, कैसी गांधारी सी !
धुत्त शराबी से जीवन भर, दर्द सहे !
कैसे सिसके करवा चौथ बिचारी सी !
किसने नहीं सिखाया, उसे विदाई में
पूरे जीवन रहना , एकाचारी सी !
छोटी उम्र से क्या बस्ती में सीखा है,
किसे सुनाये , बातें मिथ्याचारी सी !
धीरे धीरे कवच पुरुष का , तोड़ रही ,
कमर है मालिन जैसी चोट लुहारी सी !
छप्पर डाल के सोने वाले, भूल गए
नारी के मन सुलग रही , चिंगारी सी !
छप्पर डाल के सोने वाले, भूल गए
नारी के मन सुलग रही , चिंगारी सी !
ग्लानि थकान विषाद और उत्पीड़न भी
मिल कर देख न पाये , नारी हारी सी !
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