शायद यह अकेला समाज है जहाँ ऊपरी दिखावे को सम्मान देना सिखाया जाता है ! अगर सामने से कोई गेरुआ वस्त्र धारी और पैर में खड़ाऊं पहने आ रहा है तो पक्का उस महात्मा के चरणों में झुकना होगा और आशीर्वाद मांगना ही है चाहे वह बुड्ढा पूरे जीवन डाके डालकर दाढ़ी बढ़ाकर छिपने के लिए बाबा क्यों न बना हो और किसी गए गुजरे का आशीर्वाद पाने के योग्य भी न हो !
Saturday, December 26, 2020
तो फिर मेरी चाल देख ले -सतीश सक्सेना
Saturday, December 19, 2020
६७ वां वर्ष और हेल्थ केयर -सतीश सक्सेना
दौड़ते दौड़ते 67वां वर्ष कब शुरू हुआ पता ही नहीं चला , शायद मैं अधिक खुशकिस्मत हूँ जिसे अपने बड़े होते बच्चों से कभी कष्ट का अनुभव ही नहीं हुआ ! बेटा 40 वर्ष का है और देखता रहता है कि पापा को घर में किस चीज की आवश्यकता है , तलाश करने से पहले घर में वह चीज आ जाती है ! इस बार मेरे हाथ में एप्पल वाच 6, आ गयी है जिसमें फ़ोन इनबिल्ट है , बेटे का कहना है कि इसमें हेल्थ के सारे टूल्स मौजूद हैं जो आपकी केयर के लिए आवश्यक है !
अगर आप घडी पहने दौड़ रहें हैं या घर से बाहर हैं तब मोबाइल साथ ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं , यह फ़ोन काल , मेसेज रिसीव कर सकती है , नार्मल फ़ोन की तरह कॉल कर सकती है ! इसमें वॉकी टॉकी की सुविधा भी है जिसमें इन्सटैंट आप अपने मित्र से बात कर सकते हैं !Friday, November 13, 2020
दरी बिछाकर फटी तेरे , दरवाजे आके नाचेंगे -सतीश सक्सेना
Monday, November 9, 2020
मैं धीमी आवाजों को अभिव्यक्ति दिलाने लिखता हूँ -सतीश सक्सेना
Sunday, November 8, 2020
हमको अपने ताल समंदर लगते हैं -सतीश सक्सेना
मेरे दोस्तों में उम्र में मुझसे २० वर्ष छोटे (45 वर्षीय जो खुद को उम्रदराज समझते हैं) भी अक्सर उन्मुक्त होकर हंस नहीं पाते और अगर कोई मजाक या जोक शेयर कर दूँ तो इधर उधर देखने लगते हैं कि कोई क्या कहेगा ! मुझे लगता है कि प्रौढ़ावस्था के आसपास के अधिकतर व्यक्ति समाज में असहज व्यवहार करने को मजबूर हैं , उन्हें लगता है कि इस उम्र में वे जवानों जैसा व्यवहार नहीं कर सकते, उनके लिए अपने मनोभावों, इच्छाओं को बचे जीवन दबाकर जीना, समाज द्वारा लादी हुई मजबूरी बन जाती है !
कुछ दिन पहले एक महिला लेखक मित्र से बात करते हुए मुझे लगा कि वे असहज महसूस कर रही हैं जबकि मैं सिर्फ अपनी सामान्य बात हँसते हुए साझा कर रहा था , और मैं आगे उनसे बात करने में, खुद ही चौकन्ना रहा क्योंकि उनकी एक ६६ वर्ष के व्यक्ति से, अधिक सौम्यता और गंभीर वार्तालाप की आशा, मैं तोड़ना नहीं चाहता था !
मुझे लगता है कि उन्मुक्त होकर हँसने के लिए सबसे पहले, एक निर्मल और मस्तमौला मन चाहिए ! अगर आप स्वस्थ जीने के लिए, हंसना सीखना चाहते हैं तब किसी छोटे बच्चे की खिलखिलाहट सुनते हुए , उसकी आँखों में झांकिए उसमें आपके प्रति निश्छल विश्वास और प्यार छलकता दिखाई देगा यही है असली हंसी ....इस हंसी को देखते ही आपका तनाव गायब हो जाएगा और खुद हंस पड़ेंगे !
अगर ऐसी हंसी, आप नहीं हंस सकते तब आप उस आनंद तक कभी नहीं पहुँच पाएंगे जो स्वस्थ मन और शरीर के लिए आवश्यक है ,मनीषियों ने, इसी हँसी को सेहत और जवान रहने के लिए आवश्यक बताया है !
Thursday, October 22, 2020
विश्व की पहली कविता, जिसकी रचना मैराथन दौड़ते दौड़ते हुई -सतीश सक्सेना
न जाने दर्द कितना दिल में, लेकर दौड़ता होगा
कभी छूटी हुई उंगली किसी की, ढूंढता होगा !
सुना है जाने वाले भी , इसी दुनियां में रहते हैं !
कहीं दिख जाएँ वीराने में,आँखें खोजता होगा !
कोई सपने में ही आकर, उसे लोरी सुना जाए
छिपा इज़हार सीने में , बिना देखे उन्हें कैसे
अकेले धुंध में इतनी कसक, मन में लिए पगला
न जाने कौन सी तकलीफ लेकर ,दौड़ता होगा !
Thursday, October 15, 2020
कोरोना वारियर डॉ पंकज कुमार , के लिए दुआ करें -सतीश सक्सेना
ONGC हेडक्वार्टर दिल्ली में मेडिकल सर्विसेज के इंचार्ज , डॉ पंकज कुमार (MBBS MS) जून के पहले सप्ताह से अपोलो हॉस्पिटल , सरिता विहार , दिल्ली में कोरोना से जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं , आज लगभग ५ माह होने को आये , वे लगातार आई सी यू में ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं , जब भी मास्क हटाया जाता है उनका ऑक्सीजन लेवल डाउन होते हुए खतरे के लेवल से नीचे पंहुच जाता है !
डॉ पंकज कुमार बेहतरीन इंसान हैं , फेफड़ों उनके पहले से ही कमजोर हैं यह जानते हुए भी उन्होंने कोरोना कॉल में , लगातार ऑफिस जाते हुए ,अपनी जान खतरे में डालकर , रोगियों की देखभाल करते रहे , उन्हें पता था कि संक्रमण होने की स्थिति में उनके फेफड़े उनका साथ नहीं देंगे फिर भी वे घर वालों की बात न मानकर लगातार अपनी ड्यूटी पर जाते रहे और अंततः उन्हें कोरोना से लड़ने का मुआवजा भुगतना पड़ा !
पंकज उन डॉ में से एक हैं जिन्होंने बिना अपनी सेहत और परिवार की परवाह किये , हमेशा अपनी जिम्मेवारियों को अधिक तरजीह दी , रात रात भर जगकर दोस्तों की सेवा की , आज वे अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं ! मैं भगवान पर भरोसा नहीं करता मगर आज मैं भी उनके दरबार में बैठा हूँ कि अगर सच्चे हो तो अपने इस भक्त की रक्षा करो , उसने तो तुम्हारी बहुत पूजा की है !
पंकज उन डॉक्टर्स में से एक हैं जिन्होंने मानवता को बचाकर रखा और धन को कभी महत्व नहीं दिया , मुझे याद है एक मशहूर नर्सिंग होम से नौकरी रिजाइन सिर्फ इसलिए करना पड़ा था , क्योंकि उन्होंने एक वृद्धा के मामूली पेटदर्द को बिना ऑपरेट किये एक गोली देकर ठीक कर दिया था !
पंकज का मुझ से खून का कोई रिश्ता नहीं है मगर उन्होंने मुझे पिछले २५ वर्ष से बड़े भाई का दर्जा दिया है , उस नाते मैं अपने समस्त मित्रों से अपील करता हूँ कि इस ईमानदार कोरोना वॉरिअर की रक्षा के लिए कुछ उपाय करें !
कितने कष्ट सहे जीवन मेंतुमसे कभी न मिलने आया
कितनी बार जला अग्नि में
फिर भी मस्तक नही झुकाया
पहली बार किसी मंदिर में
मैं भी , श्रद्धा लेकर आया !
आज तेरी सामर्थ्य देखने ,
तेरे द्वार बिलखने आया !
आज किसी की रक्षा करने, साईं तुझे मनाने आया !
Wednesday, September 30, 2020
कुछ महत्वपूर्ण रनिंग जानकारी जो हर दौड़ना सीखने वाले को याद रहें - सतीश सक्सेना
आवश्यक है ! रनिंग से बेहतर शरीर को स्वस्थ रखने का और कोई बेहतर तरीका नहीं , इससे डायबिटीज पास नहीं आ सकती साथ ही कण्ट्रोल रनिंग से हृदय आर्टरी में रुकावट समाप्त होंगी फेफड़े खुलेंगे ऑक्सीजन बेहतर ले पाएंगे !
की हर गति विधि पर बेहद सावधानी से निगाह रखनी आनी चाहिए ! हाल में हाइकोर्ट के एक रिटायर्ड जस्टिस की असमय मृत्यु हुई है जबकि वे हलके वजन के और बेहतरीन अल्ट्रा रनर भी थे ! धावक को अपने शरीर की क्षमता का पता होना चाहिए अगर वह गलत अंदाजा रखता है तो खामियाजा जान देकर भुगतना पडेगा !
Monday, September 28, 2020
ह्यूमन हेल्थ ब्लंडर्स -सतीश सक्सेना
जिस व्यक्ति ने 60 वर्ष की उम्र से पहले अपने जीवन में 100 मीटर भी दौडना नहीं सीखा उसने 35 बार से अधिक हाफ मैराथन (21 km बिना रुके दौड़ ) और देश विदेश में कुल मिलकर अब तक 6500 km की दौड़ रिकॉर्ड करा चुका है ! इस बखान का उद्देश्य अपनी तारीफ़ नहीं है बल्कि आप सब की ऑंखें खोलने के लिए कह रहा हूँ कि इस कारण मेरे शरीर का कायाकल्प हुआ है , 65 वर्ष की उम्र में , मैं इस समय 40 वर्ष की निरोग्य युवावस्था का आनंद ले रहा हूँ ! मुझे मालुम है कि मैं इससे अमर नहीं हो जाऊंगा मगर मेरा बढ़ा हुआ बीपी , बॉर्डर डायबिटीज , हाई कोलेस्ट्रॉल , हार्ट प्रॉब्लम , घुटनों का दर्द , स्पॉन्डिलाइटिस और ब्रोंकाइटिस पता नहीं कहाँ गायब हो गए और यह सब बिना किसी दवा लिए हुए हुआ है !
मित्रों से निवेदन है कि भारत में बढ़ी उम्र होते ही हम पैसों का उपयोग अपने आराम के लिए करते हैं , जो मजबूत शरीर को भी मृत्यु शैय्या की और धीरे धीरे ले जाता है , और अंत समय में हम बिस्तर पर अपाहिजों की तरह जान गंवाते हैं आप पिछले वर्षों में कितने मित्रों को खो बैठे हैं उनकी मृत्यु पर गौर करें तो यही पाएंगे अफ़सोस कि विद्वान दोस्त भी इस तरफ ध्यान नहीं देते बल्कि व्हाट्सप्प पर भेजे गए अनपढ़ों के मेसेज जिनमें अमर होने के नुस्खे होते हैं , खाते देखे जाते हैं !
खुद को धोखे में न रखें .....भारत राजधानी बन चूका है डायबिटीज और हृदय रोगों का , और इन दोनों का मिलाप और भी घातक है ! इसका सामान्य इलाज है कि शरीर को धीरे धीरे दौड़ना सिखाइये , फलस्वरूप दौड़ते शरीर के हर कदम पर आपके रुग्ण अंग, कम्पन लेते हुए खुद को एक्टिव बनाने का कार्य खुद ही कर लेते हैं ! डायबिटीज का नामोनिशान कुछ समय में गायब हो जाएगा !
- शुरुआत में नियमित 30 मिनट वाक का आखिरी मिनट, बिना हांफे ,दौड़ कर समाप्त करें !
- वजन घटाना आवश्यक है सो किसी भी रूप में पकौड़े परांठे और चीनी खाना छोड़ना होगा यह हृदय आर्टरी की दुश्मन है और डायबिटीज साथ हो तब जहर का काम करती है , रात का भोजन सोने से तीन घंटे पहले , बिना रोटी चावल का रहे !
- बेहतर नींद के बाद , दिन में 12 गिलास पानी पीना है और गहरी साँसों के द्वारा ऑक्सीजन खींचते हुए बंद पड़े फेफड़े खोलने होंगे अन्यथा बिना ऑक्सीजन खून आपका अधिक साथ नहीं दे पायेगा !
- खुद पर बुढ़ापा हावी न होने दें , अधिक दिन जवान रहने के लिए खुलकर हंसना अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बनाइये !
- घुटने दर्द इसलिए करते हैं कि बिना उपयोग जॉइंट जकड गए हैं , इन्हें सही करने का एकमात्र इलाज मूवमेंट करना है !
Sunday, September 13, 2020
कवितायें बिकाऊ हैं , बग़ावत नहीं रही -सतीश सक्सेना
सुन भी लें तो भी ,मन में इबादत नहीं रही !
इक वक्त था जब कवि थे देश में गिने चुने
माँ से मिली ज़ुबान , कब के भूल चुके हैं !
गीतों से कोई ख़त ओ क़िताबत नहीं रही !
संस्कार माँ बहिन की गालियों में ,खो गए
Sunday, August 30, 2020
अरसे के बाद मिले जाना,इतने निशब्द,नहीं मिलते -सतीश सक्सेना
अहसासों के आवेगों में जिह्वा को शब्द नहीं मिलते !
उस दिन घंटों की बातें भी मिनटों में कैसे निपट गयीं
मिलने के क्षण जाने कैसे मनचाहे शब्द नहीं मिलते !
दुनिया के व्यस्त बाज़ारों में, इतने अशब्द नहीं मिलते !
हर बार मिले तो आँखों की भाषा में ही प्रतिवाद किये
Friday, August 7, 2020
मानवता खतरे में पाकर, चिंतित रहते मानव गीत -सतीश सक्सेना
मुट्ठी भर जीवन पाए हैं
हंसकर इसे बिताना चाहें
खंड खंड संसार बंटा है ,
सबके अपने अपने गीत ।
देश नियम, निषेध बंधन में, क्यों बांधा जाए संगीत ।
नदियाँ,झीलें,जंगल,पर्वत
हमने लड़कर बाँट लिए।
पैर जहाँ पड़ गए हमारे ,
टुकड़े, टुकड़े बाँट लिए।
मिलके साथ न रहना जाने,
गा न सकें, सामूहिक गीत ।
अगर बस चले तो हम बांटे, चांदनी रातें, मंजुल गीत ।
कितना सुंदर सपना होता
पूरा विश्व हमारा होता ।
मंदिर मस्जिद प्यारे होते
सारे धर्म , हमारे होते ।
कैसे बंटे, मनोहर झरने,
नदियाँ,पर्वत,अम्बर गीत ।
हम तो सारी धरती चाहें , स्तुति करते मेरे गीत ।
काश हमारे ही जीवन में
पूरा विश्व , एक हो जाए ।
इक दूजे के साथ बैठकर,
बिना लड़े, भोजन कर पायें ।
विश्व बंधु , भावना जगाने,
घर से निकले मेरे गीत ।
एक दिवस जग अपना होगा, सपना देखें मेरे गीत ।
जहाँ दिल करे, वहां रहेंगे
जहाँ स्वाद हो, वो खायेंगे ।
काले, पीले, गोरे मिलकर
साथ जियेंगे, साथ मरेंगे ।
तोड़ के दीवारें देशों की,
सब मिल गायें मानव गीत ।
मन से हम आवाहन करते, विश्व बंधु बन, गायें गीत ।
श्रेष्ठ योनि में, मानव जन्में
भाषा कैसे समझ न पाए ।
मूक जानवर प्रेम समझते
हम कैसे पहचान न पाए ।
अंतःकरण समझ औरों का,
सबसे करनी होगी प्रीत ।
माँ से जन्में, धरा ने पाला, विश्व निवासी बनते गीत ?
मानव में भारी असुरक्षा
संवेदन मन, क्षीण करे ।
भौतिक सुख, चिंता, कुंठाएं
मानवता का पतन करें ।
रक्षित कर, भंगुर जीवन को,
ठंडी साँसें लेते मीत ।
खाई शोषित और शोषक में, बढती देखें मेरे गीत ।
अगर प्रेम, जज़्बात हटा दें
कुछ न बचेगा मानव में ।
बिना सहानुभूति जीवन में
क्या रह जाए, मानव में ।
पशुओं जैसी मनोवृत्ति से,
क्या प्रभाव डालेंगे गीत !
मानवता खतरे में पाकर, चिंतित रहते मानव गीत ।
Friday, July 31, 2020
लॉन्ग डिस्टेंस रनिंग के फायदे और खतरे -सतीश सक्सेना
Tuesday, July 28, 2020
टी विद अरविन्द कुमार -सतीश सक्सेना
https://www.facebook.com/
Sunday, July 26, 2020
पता नहीं मां ! सावन में यह आँखें क्यों भर आती हैं - सतीश सक्सेना
जिस पिता की ऊँगली पकड़ कर वह बड़ी हुई, उन्हें छोड़ने का कष्ट, जिस भाई के साथ सुख और दुःख भरी यादें और प्यार बांटा, और वह अपना घर जिसमे बचपन की सब यादें बसी थी.....इस तकलीफ का वर्णन किसी के लिए भी असंभव जैसा ही है !और उसके बाद रह जातीं हैं सिर्फ़ बचपन की यादें, ताउम्र बेटी अपने पिता का घर नही भूल पाती ! पूरे जीवन वह अपने भाई और पिता की ओर देखती रहती है !
राखी और सावन में तीज, ये दो त्यौहार, पुत्रियों को समर्पित हैं, इन दिनों का इंतज़ार रहता है बेटियों को कि मुझे बाबुल का या भइया का बुलावा आएगा ! अपने ही घर को वह अपना नहीं कह पाती वह मायके में बदल जाता है ! !
नारी के इस दर्द का वर्णन बेहद दुखद है .........
जब चलना मैंने सीखा था !
पास लेटकर उनके मैंने
चंदा मामा जाना था !
बड़े दिनों के बाद याद
पापा की गोदी आती है
पता नहीं माँ सावन में, यह ऑंखें क्यों भर आती हैं !
पता नहीं जाने क्यों मेरा
मन , रोने को करता है !
बार बार क्यों आज मुझे
सब सूना सूना लगता है !
बड़े दिनों के बाद आज,
पापा सपने में आए थे !
आज सुबह से बार बार बचपन की यादें आतीं हैं !
क्यों लगता अम्मा मुझको
इकलापन सा इस जीवन में,
क्यों लगता जैसे कोई
गलती की माँ, लड़की बनके,
न जाने क्यों तड़प उठी ये
आँखे झर झर आती हैं !
अक्सर ही हर सावन में माँ, ऑंखें क्यों भर आती हैं !
एक बात बतलाओ माँ ,
मैं किस घर को अपना मानूँ
जिसे मायका बना दिया या
इस घर को अपना मानूं !
कितनी बार तड़प कर माँ
भाई की यादें आतीं हैं !
पायल,झुमका,बिंदी संग , माँ तेरी यादें आती हैं !
आज बाग़ में बच्चों को
जब मैंने देखा, झूले में ,
खुलके हंसना याद आया है,
जो मैं भुला चुकी कब से
नानी,मामा औ मौसी की
चंचल यादें ,आती हैं !
सोते वक्त तेरे संग, छत की याद वे रातें आती हैं !
तुम सब भले भुला दो ,
लेकिन मैं वह घर कैसे भूलूँ
तुम सब भूल गए मुझको
पर मैं वे दिन कैसे भूलूँ ?
छीना सबने, आज मुझे
उस घर की यादें आती हैं,
बाजे गाजे के संग बिसरे, घर की यादें आती है !
Friday, July 24, 2020
न जाने क्यों कभी हमसे दिखावा ही नहीं होता -सतीश सक्सेना
मैंने , जिनमें से एक भी कविता की दो पंक्तियाँ भी मुझे याद नहीं क्योंकि मैं उन्हें कही और कभी सुनाना पसंद नहीं करता , न अपने लिखे लेखों कविताओं को, सम्पादकों के पास छपने हेतु आवेदन करता ! मेरी कवितायें और लेख अक्सर अखबार खुद छाप देते हैं और मुझे पता भी नहीं चलता क्योंकि घर में हिंदी अखबार आते ही नहीं ! सरदार पाबला जी ने एक ब्लॉग बनाया था जो पिछले कई साल से बंद हो गया है , जिसमें वे ब्लॉगरों के छपती रचनाओं को बता दिया करते थे , जब से वह बंद हुआ मुझे अपनी एक भी रचना के छपने की खबर नहीं मिली और न मैं परवाह करता हूँ ! मुझे लगता है कि मैंने एक ईमानदार अभिव्यक्ति अपने मन को प्रसन्न करने के लिए लिखी है न कि साहित्य या समाज पर अहसान करने को , जिसे भी यह रचनाएं पसंद आएं वह इन्हें कहीं भी ले जाने , छापने को स्वतंत्र है , मेरी रचनाएं मुक्त हैं इनसे मुझे कोई फायदा नहीं चाहिए !
Saturday, June 27, 2020
मजबूत इच्छा शक्ति और कोरोना बचाव - सतीश सक्सेना
शाब्बाश बुड्ढे ! यू कैन रन !
तवा बोलता छन छन छन !
सारे जीवन काम न करके
तूने सबकी वाट लगाईं !
ढेरों चाय गटक ऑफिस में
जनता को लाइन लगवाई !
चला न जाना अस्पताल में
बेट्टा , वे पहचान गए तो
जितना माल कमाया तूने
घुस जाएगा डायलिसिस में
बचना है तो भाग संग संग
रिदम पकड़ कर छम छम छम ,शाब्बाश बुड्ढे यू कैन रन !
जब से उम्र दराज बने हो
सारी दुनिया के पापों को
खुलके आशीर्वाद दिए हो !
देह हिलाना भूल गए हो
पिछले दस वर्षों से दद्दू
छड़ी पकड के घूम रहे हो
आलस तुझको खा जाएगा
फेंक छड़ी को रन,रन,रन , शाब्बाश बुड्ढे यू कैन रन !
साठ बरस का मतलब सीधा
साठ फीसदी ताकत कम
ह्रदय बहाए खून के आंसू
बरसे जाएँ झम झम झम
चलना फिरना छोड़ा कब से
घुटने रोते , चलते दम !
साँसें गहरी, भूल चुका है
ऑक्सीजन पहले ही कम
अभी समय है रक्ख भरोसा
गैंग बना कर धम धम धम , शाब्बाश बुड्ढे, यू कैन रन !
डायबिटीज खा रही तुझको
ह्रदय चीखता, जाएगा मर
सीधा साधा इक इलाज है
उठ खटिया से दौड़ने चल
आधे धड़ को पैर मिले हैं
उनको खूब हिलाता चल
ताकतवर शरीर होगा फिर
मगर तभी जब, मेहनत कर
सब देखेंगे जल्द , करेंगे
दुखते घुटने, बम बम बम , शाब्बाश बुड्ढे यू कैन रन !
Friday, June 26, 2020
पंहुचेंगे कहीं तक तो प्यारे,ये कपोत दिलेर,हमारे भी -सतीश सक्सेना
सुनने वालों तक पंहुचेंगे, कुछ देसी बेर हमारे भी !
पढ़ने लिखने का काम नहीं बेईमानों की बस्ती में !
बाबा-गुंडों में स्पर्धा , घर में हों , कुबेर हमारे भी !
चोट्टे बेईमान यहाँ आकर बाबा बन घर को लूट रहे
जनता को समझाते हांफे, पुख्ता शमशेर हमारे भी !
जाने क्यों वेद लिखे हमने, हँसते हैं हम अपने ऊपर
भैंसे भी, कहाँ से समझेंगे, यह गोबर ढेर, हमारे भी !
फिर भी कुछ ढेले फेंक रहे ,शायद ये नींदें खुल जाएँ !
Monday, June 8, 2020
बस्ती के मुकद्दर को ही जान क्या करेंगे -सतीश सक्सेना
बस्ती के मुकद्दर को ही जान क्या करेंगे ?
बेशर्म जमूरे और सच को जमीं बिछाकर
हथियार मदारी के , आह्वान क्या करेंगे !
जनतंत्र की व्यथा हैं, व्यवधान क्या करेंगे !
Sunday, June 7, 2020
एनसीआर और भूकंप जोन 4 -सतीश सक्सेना
अफसोस कि मीडिया से सूचना के नाम पर कुछ भी नही मिल रहा है ...
https://seismo.gov.in/content/dos-donts
Friday, May 15, 2020
सदियों बादल थके बरसते ,सागर का जल खारा क्यों है -सतीश सक्सेना
कैसे तुमसे नजर मिलाऊं
असहज कष्ट उठाए तुमने
कैसे हंसकर उन्हें भुलाऊं
तुम सबने, चूड़ी पहनाईं !
हर दरवाजा जीतने वाला , इस दरवाजे हारा क्यों है।
बचपन तेरी गोद में बीता
कितनी जल्दी विदा हो गई !
मेरा घर क्यों बना मायका,
कैसे घर से जुदा हो गई !
ये आंसू भर के नजरें पूछें !
आज विदाई है, आँचल से
कैसे दुनियाँ को समझाए !
हिचकी ले ले रोये लाड़ली, उसको ये घर प्यारा क्यों है ?
जिस हक़ से अपने घर रहती
जिस हक़ से लड़ती थी सबसे
जिस दिन से इस घर में आयी
उस हक़ से, वंचित हूँ तब से
भाई बहिन बुआ और रिश्ते
नेह, दुलार, प्यार इस घर में
मृग मरीचिका सा बन जाये !
सदियों बादल थके बरसते ,सागर का जल खारा क्यों है !
प्रश्न चिन्ह ही पाए सबसे !
मधुर भाव,विश्वास,आसरा
रोज सवेरे, बिखरे पाए !
कबतक धैर्य सहारा देता
जलते सपनों के जंगल में
किसे मिला,अधिकार जो
अपनापन बह गया फूट, अब उनका चेहरा काला क्यों है !