Friday, November 13, 2020

दरी बिछाकर फटी तेरे , दरवाजे आके नाचेंगे -सतीश सक्सेना

नाम तुम्हारा ले बस्ती में , जोर शोर से गाएंगे !
दरी बिछाकर फटी तेरे, दरवाजे आके नाचेंगे !

जै जै कारों के नारों में , खेत किसानों को भूले
बर्तन भांडे बिके कभी के, टांग उठा के नाचेंगे !

कोर्ट कचहरी सारे तेरे, जेल मिले, गर बोले तो 
घर की जमा लुट गई, नंगे घर के आगे नाचेंगे !

अनपढ़ जाहिल रहे शुरू से न्याय कहाँ से पाएंगे 
भुला जांच आयोग हम तेरे घर के आगे नाचेंगे !

ब्रह्मर्षि अवतारी जैसे भारत रत्न ने, जन्म लिया !
जनम जनम के पाप धुल गए डर के मारे नाचेंगे !

9 comments:

  1. दीप पर्व की मंगलकामनाएं। सुन्दर सृजन।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. कोर्ट कचहरी सारे तेरे, जेल मिले गर बोले तो
    घर की जमा लुट गई, नंगे घर के आगे नाचेंगे !
    बहुत खूब सतीश जी👌👌👌
    जब व्यवस्था के नैतिक मूल्य खंडित हो जाएं तो इस तरह की साहसिक जुबान अस्तित्व में आती है। हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🙏🙏

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  4. बहुत सही कटाक्ष. बहुत बढ़िया.

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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  7. व्यवस्था पर व्यंग करती सुन्दर गजल

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- सतीश सक्सेना

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