जै जै कारों के नारों में , खेत किसानों को भूले
बर्तन भांडे बिके कभी के, टांग उठा के नाचेंगे !
कोर्ट कचहरी सारे तेरे, जेल मिले, गर बोले तो
घर की जमा लुट गई, नंगे घर के आगे नाचेंगे !
अनपढ़ जाहिल रहे शुरू से न्याय कहाँ से पाएंगे
भुला जांच आयोग हम तेरे घर के आगे नाचेंगे !
ब्रह्मर्षि अवतारी जैसे भारत रत्न ने, जन्म लिया !
जनम जनम के पाप धुल गए डर के मारे नाचेंगे !
वाह, बेहतरीन।
ReplyDeleteवाह!!! 😀😀
ReplyDeleteदीप पर्व की मंगलकामनाएं। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteकोर्ट कचहरी सारे तेरे, जेल मिले गर बोले तो
ReplyDeleteघर की जमा लुट गई, नंगे घर के आगे नाचेंगे !
बहुत खूब सतीश जी👌👌👌
जब व्यवस्था के नैतिक मूल्य खंडित हो जाएं तो इस तरह की साहसिक जुबान अस्तित्व में आती है। हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🙏🙏
बहुत सही कटाक्ष. बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteव्यवस्था पर व्यंग करती सुन्दर गजल
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