धूर्त काल के अन्धकार में ,
हम प्रकाश ले आने वाले
तुम गीतों के सौदागर हो
हम निर्भय हो गाने वाले ! हमको कब तुम उस्तादों की
जीवन में परवाह, रही है !
रचनाएं, कवियों की जग में, इकबालिया गवाह रही हैं !
सबक सिखाने की मस्ती में
शायद, सांसें भूल गये हो !
चंद दिनों की मस्ती में ही ,
शायद मरघट भूल गए हो !
स्वाभिमान को पाठ पढ़ाने
चेष्टा बड़ी , अदाह रही है !
तुम पर कलम उठाने , अपनी इच्छा बड़ी अथाह रही है !
अरे ! तुम्हारा चेला कैसे
तुम्हें भूलकर पदवी पाया
तुम गद्दी को रहे सम्हाले
औ वो पद्म विभूषण पाया !
कोई सूर बना गिरिधर का,
कोई मीरा, रंगदार रही है !
हंस, हंस खूब तमाशा देखें , जानी कब परवाह रही है !
सबके तुमने पाँव पकड़ कर
गुरु के सम्मुख बैठ, लेटकर
कवि सम्मेलन में बजवाकर
दांत निपोरे, हुक्का भरकर
तितली फूल फूल इठलाकर
करती खूब धमाल रही है !
सूर्यमुखी में महक कहाँ की ? दुनिया में अफवाह रही है !
बड़े, बड़े मार्तण्ड कलम के
जो न झुकेगा उसे मिटा दो
जीवन भर जो पाँव दबाये
उसको पद्मश्री दिलवा दो !
बड़े बड़े विद्वान उपेक्षित ,
चमचों पर रसधार बही है !
अहमतुष्टि के लिए समर्पित, चेतन मुक्त प्रवाह बही है !
गुरुवर तेज बनाये रखना
चेलों के गुण गाये रखना !
भावभंगिमाओं के बल पर
खुद को कवि बनाये रखना !
समय आ गया भांड गवैय्यों
को, हिंदी पहचान रही है !
जितनी सेवा जिसने कर ली, उतनी ही तनख्वाह रही है !