जिनको माँ घर में बोझ लगे वे नाकारा क्या समझेंगे !
पशुओं जैसा जीवन जीते वे आवारा क्या समझेंगे !
कुछ जीव हमेशा बस्ती में, कीचड़ में ही रहते आये !
गंदे जल में रहने वाले, निर्मल धारा क्या समझेंगे !
वृद्धों को भरी बीमारी में, असहाय अकेले छोड़ दिया,
सर झुका नहीं माँ के आगे ठाकुर द्वारा क्या समझेंगे
जानवर कहाँ ममता जानें हर जगह लार टपकाएंगे
माँ के धन पर नज़रें रखते वे भंडारा क्या समझेंगे !
ये क्रूर ह्रदय, ऐसे ही हैं , हंसों के संग, न रह पायें !
अपने ही बसेरे भूल गए, वे गुरुद्वारा क्या समझेंगे !
पशुओं जैसा जीवन जीते वे आवारा क्या समझेंगे !
कुछ जीव हमेशा बस्ती में, कीचड़ में ही रहते आये !
गंदे जल में रहने वाले, निर्मल धारा क्या समझेंगे !
वृद्धों को भरी बीमारी में, असहाय अकेले छोड़ दिया,
सर झुका नहीं माँ के आगे ठाकुर द्वारा क्या समझेंगे
जानवर कहाँ ममता जानें हर जगह लार टपकाएंगे
माँ के धन पर नज़रें रखते वे भंडारा क्या समझेंगे !
ये क्रूर ह्रदय, ऐसे ही हैं , हंसों के संग, न रह पायें !
अपने ही बसेरे भूल गए, वे गुरुद्वारा क्या समझेंगे !
संबंधों के गाढ़ेपन को जिसने समझा, उसने पूजा..
ReplyDeleteजिनको माँ घर में बोझ लगे, वे नाकारा क्या समझेंगे !.. वाह शुरुआत ही जबरदस्त भाव के साथ.. बहुत खूब ..
ReplyDeleteधन के पीछे भागते फिरें , वे ममता में क्या पाएंगे ?
ReplyDeleteमाँ के धन से भण्डार भरे, वे भंडारा क्या समझेंगे !
bahut sundar !
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बहुत सुन्दर। वृद्धाश्रमों के गेट पर प्रदर्शित किये जाने योज्ञ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteवृद्धों को भरी बीमारी में, असहाय अकेले छोड़ दिया,
सर झुका नहीं माँ के आगे, ठाकुरद्वारा क्या समझेंगे !
बेहद मर्मस्पर्शी ग़ज़ल....
सादर
अनु
धन के पीछे भागते फिरें , वे ममता में क्या पाएंगे ?
ReplyDeleteमाँ के धन से भण्डार भरे, वे भंडारा क्या समझेंगे !
बहुत सुंदर रचना.
समझते यही
ReplyDeleteलोग हैं बाबू
नासमझ बस
लिखते हैं वो सब
जो वो सोचते हैं
वो ही समझते हैं
क्या समझे :)
कड़वी हकीकत.......दोषी कौन?????
ReplyDeleteबिन माँ , गोदी बीता मेरा बचपन
ReplyDeleteक्या खोया मैंने .वो क्या समझेंगे .....
स्वस्थ रहें भाई जी ....
जिनमें मानवीय संवेदना ही न हो वे स्वार्थी लोग पशुओं से भी गए-बीते हैं !
ReplyDeleteवृद्धों को भरी बीमारी में, असहाय अकेले छोड़ दिया,
ReplyDeleteसर झुका नहीं माँ के आगे, ठाकुरद्वारा क्या समझेंगे !
माँ संसार में अनमोल
bahut gehre bhav..........
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति... लोग अपने माँ बाप के प्रति बहुत लापरवाह और मतलबी हो गए हैं.. कमजोर पड़ने लगी है रिश्तों की डोर...
ReplyDeleteवे तो पशुओं से भी गये बीते हैं!! आपके इन गीतों से शायद उनके अंतर्मन की मानवता जागे!!
ReplyDeleteमार्मिक
ReplyDeleteये क्रूर ह्रदय , ऐसे ही हैं , हंसों के संग , न रह पाये !
ReplyDeleteअपने ही बसेरे, भूल गए , वे गुरुद्वारा क्या समझेंगे !
सुन्दर कृति.
ReplyDeleteपूछता है जब कोई, दुनिया में मोहब्बत है कहाँ ,
मुस्करा देता हूँ मैं और याद आ जाती है "माँ" !!
मातृदेवो भव कह श्रुति समझा रही है माता ही तो देवी है हमें समझना चाहिए ।
ReplyDeleteलोक-परलोक दोनों उसी के चरण में है हमें फिर इधर-उधर नहीं भटकना चाहिए।
बहुत गहन और शानदार
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