क्या हुआ, ये सोच में डूबी खुमारी किसलिए ?
आँधियों ने ओढ़ ली इतनी उदासी किस लिए ?
आँधियों ने ओढ़ ली इतनी उदासी किस लिए ?
तुम तो कहते थे, न सोओगे , न सोने दो मुझे
आज ऐसा क्या हुआ,इतनी उबासी किस लिए ?
ऐसी क्या अवमानना की मानिनी की, प्यार ने
चमक चेहरे की हुई है,अमलतासी किस लिए ?
लगता घायल से हुए हो, जख्म गहरे दिख रहे
पागलों के पास जाकर मुंह दिखायी किसलिए ?
ये भी अच्छा है कि पछतावा रहे , सरकार को
इक दीवाने के लिए भी जग हँसायी किसलिए ?
वाह वाह - बहुत खूब
ReplyDeleteसरकार किसी सरकार को पछतावा हुआ है क्या कभी
ReplyDeleteबेकार नहीं जाता है कोई भी अफसाना उनका किसलिये ?
बहुत सुंदर :) :) :)
बहुत बढ़िया ।
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ReplyDeleteलगता घायल से हुए हो, जख्म गहरे दिख रहे
पागलों के पास जाकर मुंह दिखायी किसलिए --मन के गहन भावों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति।
पागलों के पास जाकर मुंह दिखायी किसलिए ? - गजब ढाती पंक्तियाँ..
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ .... अर्थपूर्ण
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर!
ReplyDeleteवाह..... ज़बरदस्त अभिव्यक्ति सतीश भाई, बहुत खूब!
ReplyDeleteक्या बात है बहुत सुन्दर पंक्तियाँ !
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteबड़े दिन बाद आया हूं आपके ब्लॉग पर। माफी चाहता हूं..कई कविताएं पढ़ीं...अच्छी भी लगी।
ReplyDeleteबहुत खूब सतीश जी ... मन के भाव शब्दों में पिरो दिए ....
ReplyDeleteलगता घायल हो हुए हो, जख्म गहरे दिख रहे
ReplyDeleteपागलों के पास जाकर मुंह दिखायी किसलिए ?
...वाह..लाज़वाब रचना
वाह हमेशा की तरह लाजवाब लेखन .... सादर
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