Friday, November 20, 2009

धन्य है वह देश जिसने इस परिवार को जन्म दिया !


तीसरा खम्बा पर ओकील साहब ने एक सामयिक और बहुत अच्छा लेख लिखा है जिसमें हाल में ऑस्ट्रेलिया में हुए भारतीयों पर हमले के सन्दर्भ में तीन बीस वर्षीय आस्ट्रेलियाई दोषियों को लम्बी सजाएं सुनाई गयी हैं ! निस्संदेह हर भारतीय को सुन कर बहुत अच्छा लगा होगा कि परदेश में हमारे साथ की गयी क्रूरता के लिए, उसी देश के कोर्ट ने, अपने ही लोगों के खिलाफ, उदाहरण देने योग्य न्याय दिया !  


हमारे देश में २२ जनवरी १९९९ को ग्राहम स्टेंस (५८ )और उनके दो मासूम बच्चे फिलिप( ११ ) और टिमोथी (८ वर्षीय ) जो कि अपनी वैन में सो रहे थे कुछ लोगों ने जला कर जघन्यतम हत्या कर दी थी ! यह ऑस्ट्रेलियन परिवार उडीसा के जंगलों में  पिछले ३० सालों से रहकर  आदिवासी कुष्ठ रोगियों की सेवा कर रहा था ! पूरे परिवार की इस जघन्य हत्या के बावजूद इनकी विधवा ग्लैडिस स्टेंस ने इस अपराध के लिए दोषियों को माफ़ कर दिया , और शेष जीवन में अकेले ही यह कार्य करते रहने की अपनी दृढ इच्छा प्रकट की है  !  
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"यद्यपि  अपने पति के साथ की कमी और अपने बच्चों को बड़े होते देखने की कमी उन्हें हमेशा खलेगी तब भी उन्हें हत्यारों से कोई शिकायत नहीं है  !


दोषियों के लिए उनका कहना है ..


"हमें माफ़ करना सीखना चाहिए , मुझे कोई कडवाहट नहीं है और अगर कडवाहट नहीं हो तो उम्मीद जगती है , सांत्वना  ईश्वर से मिलती ही है  ! विश्व के लोगों से मेरी प्रार्थना है कि आशा न छोड़ें  और इस देश ( भारत ) के लिए प्रार्थना करें  ! 


अशिक्षित,छुआछूत और धर्मांध  लोगों के बीच  सेवा कार्य करते हुए  ग्राहम स्टेंस की इस विधवा के लिए शुभकामनायें  और ईश्वर से प्रार्थना कि इनकी रक्षा  करें ! 


धन्य है वह देश जिसने इस परिवार को जन्म दिया  !

Friday, November 6, 2009

हमारे अपने ...

                              हमारे अपने जो उँगलियों पर गिनने लायक ही होते हैं, कहते हैं कि अगर अपना दिल दुखाना हो तो उनके प्यार और अपनापन के बारे में जरा सोच कर देखें, थोडी देर में ही नींद उड़ जायेगी उनके प्यार और ममता में जो विरोधाभास दिखाई पड़ेंगे, उसके अहसास मात्र से आप सो नहीं पायेंगे !
                               मैं अक्सर अपनों से कहता रहा हूँ कि अपनों के प्यार पर कभी शक न करें और अगर अधिक प्यार से मन भर गया हो तो केवल कुछ क्षण अपने आत्मीय जनों की कमिया याद करके देखें यह नकारात्मक सोच के कुछ क्षण ही आपको अपनों से बरसों दूर ले जायेंगे !
                             संक्रमण काल से गुज़रते हुए लगता है कि अपनों के प्रति अधिक संवेदनशील होता जा रहा हूँ, पूरे जीवन अपने कष्टों के बारे में कभी सोचने ही नहीं बैठा , केवल इन अपनों के कष्टों की चिंता रही ! अपना अकेलापन याद न आये इसलिए सारे जहान के कष्टों को दूर करने के लिए अविराम अपने आपको व्यस्त रखा ! और अब जब अपने कार्यों या अकार्यों पर अपनों की उठी उंगली देखता हूँ तो एक टीस सी महसूस होती है, लगता है कि पूरे जीवन कुछ किया ही नहीं ! अपने किये गए कार्यों और निष्छल प्यार का स्पष्टीकरण देने की ,अपनों की अपेक्षा महसूस करने से ही, दुनिया के लिए बेहद मज़बूत  इस दिल की आँखों में आंसू आ जाते हैं !
                               अक्सर हमें दो तरह के प्यारों के बीच रहना पड़ता है , एक जो वाकई अपने हैं जो आपको बहुत प्यार करते हैं , जिनके कारण ही जीवन में मधुरता और रस बना रहता है , दूसरे वे जिनके साथ जीना हमारी नियति है , प्यार का दिखावा करते ऐसे प्यारे अक्सर देखे जाते हैं !
                               जब अपनी पूरी ईमानदारी से किये गए कार्यों की समीक्षा, दूषित,स्वार्थी और असम्वेदन शील "अपनों " के द्वारा करते हुए देखता हूँ तो मन एक अनचाही वित्रष्णा से भर जाता है ! मगर फिर अपने मन को समझाने लगता हूँ कि अगर  इनसे दूर होता हूँ तो इनका अपना कौन है ... क्या होगा इनका ? ईश्वर ने मुझे इनके जहर को सहने की शक्ति दी है और  साथ ही इन्हें सुरक्षा देने का दायित्व भी  ! अगर मैं  इनकी मदद नहीं करूंगा तो  इनका और कौन है  ? और अगर यह  मुझे  नहीं काटेंगे तो किसे काटेंगे ? बेहतर है कि यह जहर मैं ही सहन करुँ क्योंकि मुझे ईश्वर ने इसे सहने की शक्ति दी  है  ! ईश्वर ने इन्हें  मुझे दिया है  कि इनको हंसते हुए झेलो और इनको मैं  मिला हूँ  जिस पर  रत्ती भर विश्वास न होते हुए भी इन्हें मित्रता निभानी पड़ रही है !   
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