Friday, November 6, 2009

हमारे अपने ...

                              हमारे अपने जो उँगलियों पर गिनने लायक ही होते हैं, कहते हैं कि अगर अपना दिल दुखाना हो तो उनके प्यार और अपनापन के बारे में जरा सोच कर देखें, थोडी देर में ही नींद उड़ जायेगी उनके प्यार और ममता में जो विरोधाभास दिखाई पड़ेंगे, उसके अहसास मात्र से आप सो नहीं पायेंगे !
                               मैं अक्सर अपनों से कहता रहा हूँ कि अपनों के प्यार पर कभी शक न करें और अगर अधिक प्यार से मन भर गया हो तो केवल कुछ क्षण अपने आत्मीय जनों की कमिया याद करके देखें यह नकारात्मक सोच के कुछ क्षण ही आपको अपनों से बरसों दूर ले जायेंगे !
                             संक्रमण काल से गुज़रते हुए लगता है कि अपनों के प्रति अधिक संवेदनशील होता जा रहा हूँ, पूरे जीवन अपने कष्टों के बारे में कभी सोचने ही नहीं बैठा , केवल इन अपनों के कष्टों की चिंता रही ! अपना अकेलापन याद न आये इसलिए सारे जहान के कष्टों को दूर करने के लिए अविराम अपने आपको व्यस्त रखा ! और अब जब अपने कार्यों या अकार्यों पर अपनों की उठी उंगली देखता हूँ तो एक टीस सी महसूस होती है, लगता है कि पूरे जीवन कुछ किया ही नहीं ! अपने किये गए कार्यों और निष्छल प्यार का स्पष्टीकरण देने की ,अपनों की अपेक्षा महसूस करने से ही, दुनिया के लिए बेहद मज़बूत  इस दिल की आँखों में आंसू आ जाते हैं !
                               अक्सर हमें दो तरह के प्यारों के बीच रहना पड़ता है , एक जो वाकई अपने हैं जो आपको बहुत प्यार करते हैं , जिनके कारण ही जीवन में मधुरता और रस बना रहता है , दूसरे वे जिनके साथ जीना हमारी नियति है , प्यार का दिखावा करते ऐसे प्यारे अक्सर देखे जाते हैं !
                               जब अपनी पूरी ईमानदारी से किये गए कार्यों की समीक्षा, दूषित,स्वार्थी और असम्वेदन शील "अपनों " के द्वारा करते हुए देखता हूँ तो मन एक अनचाही वित्रष्णा से भर जाता है ! मगर फिर अपने मन को समझाने लगता हूँ कि अगर  इनसे दूर होता हूँ तो इनका अपना कौन है ... क्या होगा इनका ? ईश्वर ने मुझे इनके जहर को सहने की शक्ति दी है और  साथ ही इन्हें सुरक्षा देने का दायित्व भी  ! अगर मैं  इनकी मदद नहीं करूंगा तो  इनका और कौन है  ? और अगर यह  मुझे  नहीं काटेंगे तो किसे काटेंगे ? बेहतर है कि यह जहर मैं ही सहन करुँ क्योंकि मुझे ईश्वर ने इसे सहने की शक्ति दी  है  ! ईश्वर ने इन्हें  मुझे दिया है  कि इनको हंसते हुए झेलो और इनको मैं  मिला हूँ  जिस पर  रत्ती भर विश्वास न होते हुए भी इन्हें मित्रता निभानी पड़ रही है !   

10 comments:

  1. behad khubsurat andaz me aapne apna mat rakha hain
    jyotishkishore.blogspot.com

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  2. मन को उंडॆल दिया है आपने!

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  3. आज आप अपनों से बेहद नाराज लगते हैं । हम अपने मित्र तो स्वयं चुन सकते हैं पर नाते रिश्ते में वह स्वतंत्रता नही होती फिर भी इन्हें या किसी भी इन्सान को उसके गुण दोषों समेत ही अपनाना पडता है एक पैकेज की तरह । हम भी इन्सान हैं हमारे त्याग समर्पण को कोई कम आंके तो अवश्य वितृष्णा होती है । गंभीर आलेख ।

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  4. बेहतर है कि यह जहर मैं ही सहन करुँ क्योंकि मुझे ईश्वर ने इसे सहने की शक्ति दी है ! ईश्वर ने इन्हें मुझे दिया है कि इनको हंसते हुए झेलो और इनको मैं मिला हूँ जिस पर रत्ती भर विश्वास न होते हुए भी इन्हें मित्रता निभानी पड़ रही है !

    सतीश जी या तोआप किसी ओर दुनिया मै रहते थे, या फ़िर सच मैआप को आज तक सधू लोग मिले है... बस आज आप को पहली बार धोखा मिला है..... यह दुनिया धोखे बाजो सेभरी पडी है,आज के जमाने मै भाई भाई का दुशमन है, बहुत दुख है आज आप के लेख मै....

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  5. सतीश जी
    यह उठा पटक समाज में रहनेवाले हर भावुक के दिल में कभी न कभी चलती है .

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  6. काल्पनिक लेख हो या हकीकत जो भी हो लेख अच्छा है ।पहली बात "सुर नर मुनि सब की यह रीती, स्वारथ लाग करें सब प्रीती "दूसरी बात "उतना ही उपकार समझ कोई जितना साथ निभादे "उंगलियां किस पर नही उठी, ।स्पष्टीकरण ,अपनी सफ़ाई वे देते है जो अहसान जताना चाह्ते है कि हमने तुम्हारे लिये क्या क्या किया और आज हम उपेक्षित है ।मुनव्वर राणा साहिब ने एक शेर मे कहा है -करके अहसा्न किसी मुफ़लिस पे जता मत देना -यह संसार कष्टों से भरा हुआ है यहा राम के पिता को भी रोना पडा था और उनकी मां ने वैधव्य दुख झेला है ।जहर मान कर सहेंगे तो कष्ट होगा ,चुनौती और कर्तव्य मानेंगे तो अच्छा लगेगा कि ईश्वर ने हमे इस योग्य समझ कर यह जिम्मेदारी सौपी है ।वही जहर आपको अम्रत लगेगा ।ओशो ने कहा था ""कष्ट अपनो से ही मिलता है दूसरे क्यों आयेंगे तुम्हे कष्ट देने ’उनके अपने नही है क्या ’।

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  7. ईश्वर ने मुझे इनके जहर को सहने की शक्ति दी है और साथ ही इन्हें सुरक्षा देने का दायित्व भी ! अगर मैं इनकी मदद नहीं करूंगा तो इनका और कौन है ? और अगर यह मुझे नहीं काटेंगे तो किसे काटेंगे ? बेहतर है कि यह जहर मैं ही सहन करुँ क्योंकि मुझे ईश्वर ने इसे सहने की शक्ति दी है

    aapne man ki baat kah di
    man chhu liya
    rishte nibhane to padhte hain
    kaash achche apne bhi hote
    man vitrishna se nahi bharta

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  8. मगर फिर अपने मन को समझाने लगता हूँ कि अगर इनसे दूर होता हूँ तो इनका अपना कौन है ... क्या होगा इनका ? ईश्वर ने मुझे इनके जहर को सहने की शक्ति दी है और साथ ही इन्हें सुरक्षा देने का दायित्व भी ! अगर मैं इनकी मदद नहीं करूंगा तो इनका और कौन है ? और अगर यह मुझे नहीं काटेंगे तो किसे काटेंगे ? बेहतर है कि यह जहर मैं ही सहन करुँ क्योंकि मुझे ईश्वर ने इसे सहने की शक्ति दी है

    aapki in panktiyon ne jeevan ka saar kaha hai
    ham sabhi apno ko nibhate hain
    sahanshaktis e unki burayi ko ignore karte hain

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  9. सतीश जी या तोआप किसी ओर दुनिया मै रहते थे, या फ़िर सच मैआप को आज तक सधू लोग मिले है... बस आज आप को पहली बार धोखा मिला है..... यह दुनिया धोखे बाजो सेभरी पडी है,आज के जमाने मै भाई भाई का दुशमन है, बहुत दुख है आज आप के लेख मै..

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  10. मैं अक्सर अपनों से कहता रहा हूँ कि अपनों के प्यार पर कभी शक न करें और अगर अधिक प्यार से मन भर गया हो तो केवल कुछ क्षण अपने आत्मीय जनों की कमिया याद करके देखें यह नकारात्मक सोच के कुछ क्षण ही आपको अपनों से बरसों दूर ले जायेंगे !
    आपने सौ-फिसदी सच बात कही है, हमारा व्यक्तित्व एक भी नकारात्मक विचार नहीं बर्दास्त कर सकता, यदि वाह आ भी जायें तो हमें उन्हें, सकारात्मक विचारों से बदलना होता है, यही प्रकृति का नियम है! जानती हूँ की लोग कहैंगे की जिसपर बीतती है वही जनता है, पर फिर भी यही कहना चाहूंगी कि, ख़ुशी एक भाव है हम किसी भी हालत में खुश रह सकते हैं और कोशिश भी करनी चाहिए! अपनी जीवन शक्ति इतनी ऊपर उठानी चाहिए कि बाक़ी सब छोटा लगे!
    आप जीवन मूल्यों में काफी ऊपर हैं सतीशजी, आशा है कि आपकी हंसी यूं ही बनी रहे...

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एक निवेदन !
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- सतीश सक्सेना

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