Monday, October 30, 2017

दर्द का तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये -सतीश सक्सेना

साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !

दर्द सारे ही भुलाकर, हिमालय से हृदय में 
नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जाति,धर्म,प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये 
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से  हृदय में 
प्रज्वलित संकल्प लेकर धीमे धीमे दौड़िये !
   
तोड़ सीमायें सड़ी ,संकीर्ण मन विस्तृत करें  
विश्व ही अपना समझकर धीमे धीमे दौड़िये !

समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे  
दूरियों को नमन कर के , धीमे धीमे दौड़िये !

9 comments:

  1. संकल्प को प्रज्वल्लित कर धीरे धीरे दौडिए ...
    बहुत ही आशा और उम्मीद का दामन थामें लाजवाब रचना सतीश जी ...

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  2. बहुत ही सुन्दर सन्देश देती हुई ,एकता के सूत्र में बंधने को प्रेरित करती रचना। सादर

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  3. मन में आशा का संचार करती रचना !!वाह !

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  4. आदरणीय सतीश जी --- जैसा की आपने आत्म कथ्य में लिखा है जब भी आपके ब्लॉग पर आती हूँ कुछ ना कुछ लेकर जाती हूँ | आज भी आपकी लाजवाब रचना पढ़कर रूहानी आनन्द से रूबरू हो जा रही हूँ |एकता की औपचारिक दौड़ को देखने का आपका अनौपचारिक नजरिया काबिले तारीफ है | बहुत -- बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें आपको |

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. तोड़ सीमायें सड़ी ,संकीर्ण मन विस्तृत करें
    विश्व ही अपना समझकर धीमे धीमे दौड़िये !

    समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे
    दूरियों को नमन कर के, धीमे धीमे दौड़िये !

    बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति

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  7. अति मनभावन ।

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  8. बहुत सुन्दर रचना, विश्व के बाद ब्रह्मांड को अपना समझ के दौड़,

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- सतीश सक्सेना

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