साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !
नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !
जाति,धर्म,प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !
जोश आएगा दुबारा , बुझ गए से हृदय में
प्रज्वलित संकल्प लेकर धीमे धीमे दौड़िये !
तोड़ सीमायें सड़ी ,संकीर्ण मन विस्तृत करें
विश्व ही अपना समझकर धीमे धीमे दौड़िये !
समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे
दूरियों को नमन कर के , धीमे धीमे दौड़िये !
दूरियों को नमन कर के , धीमे धीमे दौड़िये !
संकल्प को प्रज्वल्लित कर धीरे धीरे दौडिए ...
ReplyDeleteबहुत ही आशा और उम्मीद का दामन थामें लाजवाब रचना सतीश जी ...
वाह बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सन्देश देती हुई ,एकता के सूत्र में बंधने को प्रेरित करती रचना। सादर
ReplyDeleteमन में आशा का संचार करती रचना !!वाह !
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी --- जैसा की आपने आत्म कथ्य में लिखा है जब भी आपके ब्लॉग पर आती हूँ कुछ ना कुछ लेकर जाती हूँ | आज भी आपकी लाजवाब रचना पढ़कर रूहानी आनन्द से रूबरू हो जा रही हूँ |एकता की औपचारिक दौड़ को देखने का आपका अनौपचारिक नजरिया काबिले तारीफ है | बहुत -- बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें आपको |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteतोड़ सीमायें सड़ी ,संकीर्ण मन विस्तृत करें
ReplyDeleteविश्व ही अपना समझकर धीमे धीमे दौड़िये !
समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे
दूरियों को नमन कर के, धीमे धीमे दौड़िये !
बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति
अति मनभावन ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, विश्व के बाद ब्रह्मांड को अपना समझ के दौड़,
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