
हाल के दिनों में बढ़ते हुए हृदयघातों से शायद ही कोई परिवार अछूता बचा होगा, यह बेहद चिंताजनक है , अधिकतर लोग सम्पन्नता की निशानी, आराम और सुविधा उपलब्ध होना मानते हैं और सुविधा का मतलब मेहनत न करना है और वह हम धन के बदले दूसरों से कराएंगे !
यह मूर्खता और मूढ़ता की पराकाष्ठा है अफ़सोस कि विद्वान् और बौद्धिक सम्पदा संपन्न लोग अपने बढ़ते प्रभामंडल के नीचे नाचते नाचते, आसन्न मौत की आहट भी महसूस नहीं करते !
मानवीय शरीर लगभग 100 वर्ष के लिए इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि इसमें होने वाली टूटफूट और क्षरण की मरम्मत स्वतः होती रहे और इसमें गरीबी रईसी का कोई भेदभाव नहीं होता और न मानवीय हस्तक्षेप (दवा दारु ) की कोई जरूरत , इसकी सारी मरम्मत खुद ब खुद होती है बशर्ते शारीरिक प्रतिरक्षा शक्ति मजबूत हो !
शरीर का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा हाथ और पैरों के लिए दिया गया है जो स्वतः चलते समय हिलते हैं और शारीरिक शक्ति इनके हिलने से चार्ज होती रहती है , जो लोग रोज दौड़ने के अभ्यस्त हैं उनके पेट, सीने और मस्तिष्क में हर गिरते कदम के साथ कम्पन होते हैं और महत्वपूर्ण अवयवों का व्यायाम आसानी से हो जाता है जो मात्र टहलने से संभव नहीं सो मित्रों से निवेदन है कि आंखे खोलें और समय रहते दौड़ना सीखना शुरू करें ताकि हृदय में आये परिवर्तन रिवर्स हो सकें !
यह बेहद आसान है और आपका बचना, आपके हँसते हुए परिवार के लिए आवश्यक है !
सस्नेह मंगलकामनाएं !
साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !
समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे
दूरियों को नमन कर के, धीमे धीमे दौड़िये !
दूरियों को नमन कर के, धीमे धीमे दौड़िये !