Monday, February 5, 2018

हम रहें या न रहें पदचिन्ह रहने चाहिए -सतीश सक्सेना


अबतक लगभग 300 गीत कवितायेँ एवं इतने ही लेख लिख चुका हूँ मगर प्रकाशनों, अख़बारों, कवि सम्मेलनों और गोष्ठियों में नहीं जाता और न प्रयास करता हूँ कि मुझे लोग पढ़ें या सुने ! 300 कविताओं में मुझे अपनी एक भी कविता की कोई भी छंद पंक्ति याद नहीं क्योंकि मैं उन्हें लिखने के बाद कहीं भी सुनाता नहीं , न घर में न मित्रों में और न बाहर , मुझे लगता है अगर मैंने साफ़ स्वच्छ व आकर्षण लायक लिखा है तो लोग उसे अवश्य पढ़ेंगे चाहे समय कितना ही लगे , लेखन अमर है बशर्ते वह ईमानदार हो ! कवि नाम से चिढ है मुझे अब यह नाम सम्मानित नहीं रहा , कवि उपनाम धारी हजारों व्यक्ति अपनी दुकानें चमकाते चारो और बिखरे पड़े हैं !

मुझे पहला उल्लेखनीय सम्मान आनंद ही आनंद संस्था ने दिया जब विवेक जी ने मुझे राष्ट्रीय भाष्य गौरव पुरस्कार के लिए हिंदी साहित्य से, लोगों के चयन का जिम्मा लेने के लिए अनुरोध किया था , आश्चर्य यह था कि मैं आनंद ही आनंद संस्था और उसके संस्थापक आचार्य विवेक जी के बारे में पहले से कुछ नहीं जानता था मगर उन्हें मेरे लेखन को पढ़कर मेरी ईमानदारी पर भरोसा हुआ जिसे मैंने इस वर्ष तक सफलता पूर्वक निभाकर अब उनसे इस पदमुक्ति (अध्यक्ष भाष्य गौरव पुरस्कार ) के लिए अनुरोध किया है, लम्बे समय तक एक पद से जुड़े रहना मुझे उचित नहीं लगता !
पिछले माह भारत पेट्रोलियम स्टाफ क्लब में विशिष्ट अतिथि के रूप में आमत्रित किया गया जहाँ मैं किसी को नहीं जानता था, हिंदी साहित्य जगत में लम्बे समय से कार्यरत एवं हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष सुधाकर पाठक जी का अनुरोध था कि मैं वहां के स्टाफ को अपने स्वास्थ्य अनुभव के बारे में दो शब्द कहूं , इससे पहले सुधाकर पांडेय जी से न कभी भेंट हुई और न कोई परिचय था वे मेरी रचनाओं के मात्र मूक पाठक थे जिनसे मेरा कोई पूर्व परिचय न था !
भारत पेट्रोलियम में मुझे मंच सहभागिता का अवसर मिला जाने पहचाने ओलम्पियन गोलकीपर रोमियो जेम्स के साथ , वे लोग समझना चाहते थे कि रिटायर होने के बाद भी मैं मैराथन कैसे और क्यों दौड़ा और उससे क्या स्वास्थ्य लाभ मिले ? और इस वार्षिक उत्सव के अवसर पर उन्होंने बिना कोई मशहूर नाम के चुनाव के मुझ जैसे एक अनजान व्यक्ति को चुना , मुझे लगता है सुधाकर पाठक का व्यक्तित्व इस नाते विशिष्ट है और उनसे मिलने के बाद विश्वास है कि वे हिंदी जगत में नए आयाम कायम करेंगे !
ऐसे ईमानदार सम्मान अच्छे लगते हैं बशर्ते उसके पीछे अन्य उद्देश्य और प्रयास निहित न हों ! अफ़सोस कि हिंदी जगत में अधिकतर सम्मान प्रायोजित अथवा निहित व्यक्तिगत फायदे लिए होते हैं इस माहौल में आचार्य विवेक जी जैसे व्यक्तित्व का होना सुखद है एवं निश्चित ही शुभ संकेत है !

हिंदी जर्जर, भूखी प्यासी

निर्बल गर्दन में फंदा है !
कोई नहीं पालता इसको
कचरा खा खाकर ज़िंदा है !
कर्णधार हिंदी के,कब से
मदिरा की मस्ती में भूले !
साक़ी औ स्कॉच संग ले
शुभ्र सुभाषित माँ को भूले
इन डगमग चरणों के सम्मुख, विद्रोही नारा लाया हूँ !
भूखी प्यासी सिसक रही,अभिव्यक्ति
को चारा लाया हूँ !




7 comments:

  1. बहुत बहुत बधाई !

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  2. सच है बाहरी चकाचौंध स्थाई नहीं रहती , अच्छा लेखन एक दिन खुद बोलता है
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ आपको आदरणीय सर।
    लेखन आत्मसंतुष्टि दे तो किसी भी रचनाकार की
    सृजनशीलता सार्थक होती है। बहुत सुंदर रचना आपकी।

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  4. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/02/56.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  5. गजब की लयबद्धता है आपके मारक गीतों में। साधुवाद। लगातार लिखते रहें। शुभकामनाएं।

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  6. बहुत बहुत बधाई । आप की विशिष्ट शैली और मौलिक लेखन में आपका सरल सहज स्वभाव झलकता है। मैं आपके गीतों और लेखन की प्रशंसक हूँ। इसी तरह हमें प्रेरित करते रहें । सादर । शुभकामनाओं सहित....

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- सतीश सक्सेना

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