आग लगाई संस्कारों में
सारी शिक्षा भुला गुरु की
दाढ़ी तिलक लगाये देखो
महिमा गाते हैं कुबेर की !
डर की खेती करते,जीते
नफरत फैला,निर्मम गीत !
नफरत फैला,निर्मम गीत !
करें दंडवत महलों जाकर,बड़े महत्वाकांक्षी गीत !
खद्दर पहने नेतागण अबलेके चलते , भूखे खप्पर,
इन पर श्रद्धा कर के बैठे
जाने कब से टूटे छप्पर !
टुकुर टुकुर कर इनके मुंह
को,रहे ताकते निर्बल गीत !
को,रहे ताकते निर्बल गीत !
कौन उठाये नज़रें अपनी , इनके टुकड़े खाते गीत !
धन कुबेर और गुंडे पाले
जितना बड़ा दबंग रहा है
अपने अपने कार्यक्षेत्र में
उतना ही सिरमौर रहा है
भेंड़ बकरियों जैसी जनता,
डरकर इन्हें दिलाती जीत !
डरकर इन्हें दिलाती जीत !
पलक झपकते ही बन जाते सत्ताधारी, घटिया गीत !
जनता इनके पाँव चूमती
रोज सुबह दरवाजे जाकर
किसमें दम है आँख मिलाये
किसमें दम है आँख मिलाये
बाहुबली के सम्मुख आकर
हर बस्ती के गुंडे आकर
चारण बनकर ,गाते गीत !
चारण बनकर ,गाते गीत !
हाथ लगाके इन पैरों को, जीवन धन्य बनाते गीत !
लोकतंत्र के , दरवाजे पर
हर धनवान जीतकर आया
गुंडा राष्ट्र भक्त कहलाया
राजनीति में जब पद पाया
अनपढ़ जन से वोट मांगने,
बोतल ले कर मिलते मीत !
बिका मीडिया हर दम गाये, अपने दाताओं के गीत !
बोतल ले कर मिलते मीत !
बिका मीडिया हर दम गाये, अपने दाताओं के गीत !
खादी कुरता, गांधी टोपी,
में कितने दमदार बन गये !
श्रद्धा और आस्था के बल
मूर्खों के सरदार बन गये !
वोट बटोरे झोली भर भर,
देशभक्ति के बनें प्रतीक !
राष्ट्रप्रेम भावना बेंच कर, अरबपति बन जाएँ गीत !
आत्मा से निकलने वाले गीत तो कभी नहीं बिकते... हाँ,
ReplyDeleteये बात और है कि आत्मा ही बिकी हुई हो, गिरवी रखी हुई हो !!! ऐसे में गीतों का क्या दोष.....
"दर दर भटकने को, मजबूर हो गए हैं,
गीत भी जैसे बंधुआ मजदूर हो गए हैं ।
ढोल मे है कितनी पोल खोलिये खोलिये
ReplyDeleteसब चुप क्यों है कोई कुछ तो बोलिये।
व्यक्ति वादी स्वार्थ पर चोट करती अप्रतिम रचना।
शिकायत है
ReplyDeleteआप से
विनती भी है
क्यों नहीं लिखते
रोज एक नया गीत?
वाह ! बहुत प्र्भावशाली लेखन..जनता अपनी भूमिका निभाना जानती है उन्हें बस जगाते रहें जोश भरे गीत..
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'गुरुवार' ११ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'गुरुवार' ११ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जोश जगाते,सच दर्शाते आपके गीत
ReplyDeleteसोई जनता को जगाते
वाह!!!!
लाजवाब लेखन
किसने दम है ,आँख मिलाये बाहुबली के सम्मुख आकर
ReplyDeleteयथार्थ वाद पर कड़ा प्रहार करती ओजपूर्ण रचना
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'गुरुवार' ११ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteजी,नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार १२जनवरी २०१८ के ९१० वें अंक के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह ! लाजवाब ! बहुत खूब आदरणीय ।
ReplyDeleteहमेशा की तरह धारदार।
ReplyDeleteलोकतंत्र के , दरवाजे पर
ReplyDeleteहर धनवान जीतकर आया
हर गुंडे को पंख लग गए
जब उसने मंत्री पद पाया
अनपढ़ जन से वोट मांगने,
बोतल ले कर मिलते मीत !
बिका मीडिया हर दम गाये, अपने दाताओं के गीत !
बहुत सुंदर प्रस्तुति, सक्सेना जी।
अत्यंत प्रभावी गीत ।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteगहरा कटाक्ष ... आज की व्यवस्था और उनके ठेकेदारों पर ...
ReplyDeleteगीत का हर छंद लाजवाब ...