गुडिया की विदाई के बाद , पहली बार उसका बचपन याद आ गया , फलस्वरूप कुछ पंक्तिया उसके बचपन की याद करते हुए ...
अपने सीने पर, चिपकाकर, इन्हें सुलाया करते थे !
इनकी चमकीली आँखों में, हम खो जाया करते थे !
कोई जीव न भूखा जाये , गुडिया के दरवाजे से !
कुत्ते, बिल्ली, और कबूतर, इन्हें लुभाया करते थे !
मेरी गुड़िया अपनी गुड़िया के साथ |
अपने सीने पर, चिपकाकर, इन्हें सुलाया करते थे !
इनकी चमकीली आँखों में, हम खो जाया करते थे !
कोई जीव न भूखा जाये , गुडिया के दरवाजे से !
कुत्ते, बिल्ली, और कबूतर, इन्हें लुभाया करते थे !
गले में झूलें हाथ डालकर, मीठी पुच्ची याद रही !
इनकी मीठी मनुहारों में ,हम खो जाया करते थे !
दफ्तर से आने पर छिपतीं ,पापा आकर ढूंढेंगे !
पूरे घर में इन्हें ढूंढ कर, हम थक जाया करते थे !
पायल,चूड़ी ,लहंगा, टीका,बिंदी, मेंहदी विदा हुईं !
नन्हें पाँव, महावर, लाली, खूब हंसाया करते थे !
नन्हें पाँव, महावर, लाली, खूब हंसाया करते थे !
बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबच्चों की दुनिया बहुत ही प्यारी होती है.
ReplyDeleteख़ूबसूरत अहसास बचपने से मोहबबत की ख़ूबसूरत तस्वीर
ReplyDeleteपायल,चूड़ी ,लहंगा,टीका, बिंदी ,मेंहदी विदा हुईं !
ReplyDeleteरेगिस्तान में मीठे झरने ,सुख पंहुचाया करते थे !
***
इन मीठे झरनों ने नम कर दी आखें!
बहुत ही मीठा गीत!
प्रणाम!
मुझे अपने पापा याद आ गए ...अगर वे कवि होते तो ऐसा ही कुछ लिखते :-(
ReplyDeleteगले में झूलें हाथ डालकर,मीठी पुच्ची करतीं थी !
इनकी मीठी मनुहारों में ,हम खो जाया करते थे !
सादर
अनु
मनभावन रचना...बच्चों के बहाने हम भी टॉफियाँ खा लिया करते हैं...उनके साथ अपना बचपन जी लेते हैं|
ReplyDeleteबिटिया पर आपकी कविताएँ पढ़कर अक्सर मुझे माँ द्वारा कही गई अभिज्ञान शाकुन्तलम की वो पंक्तियाँ याद आ जाती हैं जब कण्व ऋषि कहते हैं कि बिटिया की विदाई पर जब मुझे इतना दुख हो रहा है तो गृहस्थों के लिए यह पीड़ा सहना कितना कठिन होता होगा...
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी से रचना और सशक्त हुई है ...आभार !
Deleteप्यारे निश्छल भाव..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पितृ गीत.
ReplyDeleteमेरा कमेंट स्पैम में गयाः(
ReplyDeleteआपका कमेन्ट स्पैम में जा ही नहीं सकता ..
Deleteबहुत ही भावपूर्ण रचना ! बच्ची जहाँ भी रहे, खुश रहे !
ReplyDeleteहिंदी फोरम एग्रीगेटर पर करिए अपने ब्लॉग का प्रचार !
कोई जीव न भूखा जाये , गुडिया के दरवाजे से !
ReplyDeleteकुत्ते, बिल्ली,और कबूतर, इन्हें लुभाया करते थे ...
कितना सच लिखा है ... इस हकीकत में बच्चों का बचपन याद अ जाता है ...
वाकई इनकी चमकीली आंखों में हमें खुद को तौलने का अवसर मिलता है।
ReplyDeleteवाह सतीश जी बेहतरीन दिल को छू लेने वाली एक पिता के ह्रदय से निकली शानदार पोस्ट |
ReplyDeleteउत्तम-
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें आदरणीय-
गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें-
बहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी गीत ....आँखें नम कर गया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी लेखक मंच पर आप को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपके लिए यह हिंदी लेखक मंच तैयार है। हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपका योगदान हमारे लिए "अमोल" होगा |
ReplyDeleteमैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003
बिटिया का बचपन फिर से जीवंत हो उठा ....
ReplyDeleteवाह बहुत खूब !
ReplyDeleteहृदय को छू गई आपकी यह रचना.
ReplyDeleteसच है भाई जी ....
ReplyDeleteदिखता था उसके बचपन में,हमे बचपन अपना
तब बंद होठों में ,हम भी मुस्काया करते थे ....
उस बच्ची को प्यार ..उन यादों को प्यार !
निश्छल भाव..... बहुत सुंदर गीत....
ReplyDeleteखूब हंसाती थी,हंसती थी,गुडिया प्यारी प्यारी सी
ReplyDeleteइनकी तुतली भाषा में,हम गाना गाया करते थे !-- यही है बचपन की खूबसूरती
latest post: यादें
बहुत खूबसूरत भाव ....बहुत कुछ याद दिला दिया आपकी इस कविता ने
ReplyDeleteआंसू छलक गए याद करके आपकी बिग गुरिया को याद करके
ReplyDeleteआप ग़ज़ब लिखते हो भाई
ReplyDeleteबच्चों का बचपन अनमोल धरोहर बन कर रहता है !
ReplyDeleteखूबसूरत भाव !
दफ्तर से आने पर छिपतीं ,पापा आकर ढूंढेंगे !
ReplyDeleteपूरे घर में इन्हें ढूंढ कर,हम थक जाया करते थे !
पायल,चूड़ी ,लहंगा,टीका, बिंदी ,मेंहदी विदा हुईं !
रेगिस्तान में मीठे झरने ,सुख पंहुचाया करते थे !
यादों के पट खोलती बेहतरीन गीत सुप्रभात संग प्रणाम स्वीकारें
अहा, बच्चों के छोटे छोटे पर आनन्ददायक क्रियाकलाप याद आ गये।
ReplyDeleteवाह ! उसका बचपन आज भी सजीव है आपके दिल में..शायद बिटिया को भी यह सब याद नहीं होगा..बधाई !
ReplyDeleteपीरिवार में यह क्रम चलता ही रहता है, बिटिया की यादे नातिन में सिमट जाती हैं और बेटे की पोते में। बस परिवार बना रहना चाहिए। बहुत ही सशक्त रचना है।
ReplyDeleteघर में बिटिया हो तो जिंदगी बहुत खुबसूरत और बहुत से रंगों के होते हैं.....
ReplyDeleteअति सुन्दर भाव...
ReplyDeleteगले में झूलें हाथ डालकर,मीठी पुच्ची करतीं थी !
ReplyDeleteइनकी मीठी मनुहारों में ,हम खो जाया करते थे !
बेटियों के बचपन की यादें कभी नही भूलाती, बहुत ही हृदयस्पर्शी.
रामराम.
आपकी रचनाओं को किसी भी विधा में बांधा नही जा सकता और ना ही ये किसी विधा की मोहताज हैं, बस आपके हृदय के भावों को सटीकता से पाठक तक पहुंचा देती हैं, बहुत ही लाजवाब लिखते हैं आप.
ReplyDeleteरामराम.
आदरणीय सर जी,आपने
ReplyDeleteसादर प्रणाम |
कोई बात उस दिल से निकली इस दिल तक आई , यही महत्वपूर्ण हैं |छंद ,विधा तो गौण हैं |असली बातें ,सच्ची बातें ...अंतर्मन कों आलोकित करती हुयी |.वास्तव में ,बहुत ही खूबसूरत रचना ...मुझे भी अपना बचपन और छोटी बहन{उसका घर का नाम गुड़िया हैं } के साथ खेलना याद आ गया|ब्लॉग्गिंग में बहुत नया हूँ ,जल्दी जल्दी लिख रहा हूँ क्यूंकि इस माह के बाद व्यस्तता बहुत ही ज्यादा बढने वाली हैं,किन्तु मैंने देखा हैं ,जब भी कोई रचना दिल से करता हूँ,बिना छंद ,विधा के {जिसकी मुझे समझ ही नही हैं} तो लोग हाथो हाथ लेते हैं |आपकी हरेक पोस्ट मुझे बहुत पसंद हैं | “अजेय-असीम "
Sundar .. Bahut Sundar aur Bhavpoorn ...
ReplyDeleteआपकी रचनाओं का हम हमेशा उन्मुक्त मन से ही आनंद लेते हैं भाईजी, निर्मल भावनाओं से पगी आपकी रचनायें भी वैसी ही निर्मल हैं।
ReplyDeleteकोई लौटा दे मेरे, बीते हुए दिन ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी गीत,बहुत ही लाजवाब लिखते हैं आप।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी
ReplyDeleteपोस्ट हिंदी
ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल
{बृहस्पतिवार}
12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना
परिचय ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, आपके
विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें. सादर ....राजीव कुमार झा
उफ़ !इमोशनल कर दिया!
ReplyDeleteउन्मुक्त रचना को पूरे उन्मुक्त मन से पढ़ा.....मेरी भी एक बेटी है ,ऐसा लगा कि शुरु के छंद उसी के जीवन को दर्शा रहे हो.....अंतिम छंद का प्रवेश अभी बाकी है लेकिन कल्पना मात्र से ही आँखे भीग गयी.....सुंदर प्रस्तुती
ReplyDeleteमै भी प्यारी सी बिटिया की माँ हूँ आपकी भावनाओं को समझ सकती हूँ सुन्दर रचना है कल ही पढ़ी थी पर टिप्पणी नहीं कर पाई, बिटिया के बचपन की बहुत प्यारी स्मृतियां संजोयी है मन में जिसे भुलाना शायद कभी संभव नहीं !
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