एक और बहादुर भारतीय लड़की ने, तालिबानों की जिद पर, अपनी कुर्बानी दे दी ,बंगाली बऊ सुष्मिता बनर्जी के खून के छींटों की याद में, कविता के चंद फूल समर्पित हैं ...
कुछ लोग यहाँ हैं , जो तुम्हें याद रखेंगे !
वह आग जो जला गयी,सुलगाये रखेंगे !
कातिल मनाएं जश्न,भले अपनी जीत का
अफगानों की छाती पे , ये निशान रहेंगे !
बंगाली बऊ का यह हश्र ,उनकी जमीं पर
रिश्तों की बुनावट पे, हम आघात कहेंगे !
दुनियां से काबुली का ,भरोसा चला गया !
वह मिट गयी पर सुष्मिता को याद करेंगे !
बामियान,सुष्मिता के नाम,अमिट हो गए
ये ज़ुल्म ऐ तालिबान , लोग याद रखेंगे !
जब भी निशान ऐ खून, तुम्हे याद आयेंगे
अफगानियों को चैन से , सोने नहीं देंगे !
कुछ लोग यहाँ हैं , जो तुम्हें याद रखेंगे !
वह आग जो जला गयी,सुलगाये रखेंगे !
कातिल मनाएं जश्न,भले अपनी जीत का
अफगानों की छाती पे , ये निशान रहेंगे !
बंगाली बऊ का यह हश्र ,उनकी जमीं पर
रिश्तों की बुनावट पे, हम आघात कहेंगे !
दुनियां से काबुली का ,भरोसा चला गया !
वह मिट गयी पर सुष्मिता को याद करेंगे !
बामियान,सुष्मिता के नाम,अमिट हो गए
ये ज़ुल्म ऐ तालिबान , लोग याद रखेंगे !
जब भी निशान ऐ खून, तुम्हे याद आयेंगे
अफगानियों को चैन से , सोने नहीं देंगे !
रचना के माध्यम से आपने सच्ची श्रद्धांजलि दी है, अब तो हैवानियत की हदें पार हो चुकी है.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत अच्छी रचना !
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Kabuliwalar Bangali Bou को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि!
ReplyDeleteसमर्पित चंद फूलों में हम सबका स्वर शामिल है...
वीरांगना को प्रणाम-
ReplyDeleteसच्ची श्रृद्धांजलि -
आभार आदरणीय-
सच्ची श्रद्धांजलि ...
ReplyDeleteश्रद्धांजलि :-(
ReplyDeleteसाहब , हमें तो आपका ' निवेदन' सबसे प्रभावशाली लगा, हमारे हिसाब से आपकी रचनाओं का इससे अच्छा वर्णन नहीं किया जा सकता !
ReplyDeleteरही बात रचना के पात्र की, तो इनका नाम पहेली बार ही सुना था फिर मालूम पड़ा की फिल्म ' एस्केप फ्रॉम तालिबान ' इन्ही के उपन्यास से प्रेरित थी . उपरवाली इनकी आत्मा को शांति और हिंसा फैलाने वालों को सद्बुद्धि दे ...
लिखते रहिये ...
एक बहादुर लड़की को एक सच्ची श्रद्धांजली आपकी कलम से मिली ये बहुत बड़ी बात है ,बहुत अच्छी लगी दिल छू गई ये प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी तरफ से भी उस बहादुर लड़की को सच्ची श्रद्धांजलि ...
ReplyDeleteसुष्मिता के प़ति आप के उद्गार सच्चे हैं । आप के ब्लाग का परिचय पहली बार मिला । धन्यवाद ।
ReplyDeleteकमज़ोर लोग हैं यह, जो कि डरते हैं अपने विरोध और विरोधियों से... कुचल देना चाहते हैं अपने विरुद्ध हा इक सोच को... दानव हैं यह लोग...
ReplyDeleteश्रद्धासुमन......
ReplyDeleteआपने शब्दों ने दी है सच्ची श्रद्धांजलि.
सादर
अनु
दुःख हुआ इस तालिबानी कायरता के बारे में जानकर. सीधे ह्रदय से उतरे शब्द हैं आपके.
ReplyDeleteह्रदय से उद्गार......सच्ची श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteश्रद्धांजलि।
ReplyDeleteजो हुआ वो दुखद था ...आपके शब्दों के साथ एक श्रद्धांजलि हमारी भी
ReplyDeleteभीतर से हिला देती हैं ऐसी घटनाएं..
ReplyDeleteश्रद्धांजलि!!!
ReplyDeleteआज , अफ़ग़ानिस्तान में स्त्री होना ही अपराध है :(
ReplyDeleteBahut hi nikmma pan hai talibaniyon ke ander
ReplyDeleteजब भी निशान ऐ खून, तुम्हे याद आयेंगे
ReplyDeleteअफगानियों को चैन से , सोने नहीं देंगे !
बहुत सुन्दर रचना है रचना किसी शैली ,छंद और शाश्त्र की मोहताज़ भी नहीं होती है। भाव और अर्थ की अन्विति समस्वरता अपना स्थान खुद ब खुद बना लेती है।
shandaar abhivyakti...
ReplyDeletedil se naman uss kaviyatri ko...
यह काव्य हुंकार यह ओजस्वी ललकार बनी रहे
ReplyDeleteसच्ची श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गजल के मार्फ़त श्रद्धांजलि। ,,,
RECENT POST : समझ में आया बापू .
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गजल के माध्यम से श्रद्धांजलि।
RECENT POST : समझ में आया बापू .
सुन्दर श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteआपके गीतों के माध्यम से मेरी ओर से भी श्रधांजलि !!
ReplyDeleteसोच को प्रभावित करती पंक्तियां सतीश जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा....
और आप भी पढ़ें; ... मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003 हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ....ललित चाहार
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003 में हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | सादर ....ललित चाहार
ReplyDeleteमन दुखी हो गया यह जानकर, मैंने फिल्म देखी है, द्रवित कर देने वाली। पता नहीं स्थितियाँ जानकर भी क्यों जाते हैं लोग वहाँ पर।
ReplyDeleteकातिल मनाएं जश्न,भले अपनी जीत का
ReplyDeleteअफगानों की छाती पे , ये निशान रहेंगे ..
पता नहीं ऐसे कितने की निशान हैं उनकी छाती पे ... पता नहीं कब हिसाब होगा इंसानियत के क़त्ल का ...
सुष्मिता की कुर्बानी लेने वाले पछताएँगे.
ReplyDeleteश्रद्धांजलि ….
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति
आदरणीय सतीश जी आपकी भावनाओं का आदर. सुष्मिता बनर्जी बंगाली बऊ नहीं थी वो तो बंगाल की बेटी और अफगान की बऊ थी , जिसने एक अफगान लड़के के लिए अपना देश अपना धर्म सब छोड़ दिया , सुष्मिता की हकीकत हमारी हकीकत है और अफगानों की हकीकत उनकी हकीकत है, यह कोई इकलौता वाकया नहीं है .. आप कलकत्ता की सड़कों में ऐसे अफगानों को आराम से और शान से घुमते हुए देख सकते है जो वहां सूद लगाने का धंधा करते है और वहां की सरकार ने उन्हें बाकायदा लायसेंस दे रखा है .. ऐसी कितनी ही बेटियां हैं, जिनके साथ भारत भूमि पर ही ऐसा हो रहा है , जिनकी कहानी सुर्खी नहीं बन पाती .. लेकिन कोई कुछ नहीं सीख रहा .......... उनकी छाती पे कोई निशान नहीं रहने वाला अगर निशान रहता तो बारह सौ साल के इतिहास में लाखों निशान से उनकी छातियाँ भरी पड़ी होती .. लेकिन हम सच कहेंगे तो सांप्रदायिक कहलायेंगे , वे क़त्ल कर के भी सेकुलर रहते है.. पछताना सिर्फ कायरों की नियति होती है ....
ReplyDeleteउन्होंने अपने आपको काबुली वाला की बंगाली बऊ कहा था और यह किताब लिखी
Delete" Kabuliwalar Bangali Bou " , इसे सन्दर्भ में यह कहा गया है !
ज़रूरत है इन रक्तबीजों से दुनिया को मुक्त किए जाने की .
ReplyDeleteउनको नमन
ReplyDeleteभारतीय लेखिका सुष्मिता बनर्जी के बारे में अभी हाल ही में बहुत कुछ पढ़ा था मैंने,आपकी यह सार्थक,सुन्दर रचना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है !
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