एक खतरनाक सा सपना,जो आज रात देखा , ज्यों का त्यों लिपिबद्ध कर दिया : यह रचना व्यंग्य नहीं है केवल हास्य है , अधिक समझदार लोग, अधिक अर्थ न तलाश करें...
बरसों बीते , साथ तुम्हारे ,
बरसों बीते , साथ तुम्हारे ,
मोटी तोंद , पसीना टपके ,
भाग्य कोसते, पंखा झलते
पता नहीं ,फूटी किस्मत पर,
प्रभु तेरी कुछ, दया न होती !
प्रभु तेरी कुछ, दया न होती !
कितनों के पति बहे बाढ़ में, मैं भी तो, खुशकिस्मत होती !
सासू लेकर, चारधाम की
यात्रा तुमको, याद न आई !
कितने लोग तर गए जाकर
क्यों भोले की, याद न आई !
काश उत्तराखंड की साजन,
तुमको टिकट मिल गयी होती !
नमःशिवाय उच्चारण करते, मैं भी धन्य, हो गयी होती !
जिस दिन सूनामी आई थी
तब तुम बाहर नहीं गए थे
कितने लोग मरे थे बाहर
तुम खर्राटों में, सोये थे !
काश सुनामी में ,यह बॉडी,
लहर में गोते, लेती होती !
शोक संदेशा आस लगाए, मैं भी खूब, बिलखती होती !
कब तक करवा चौथ रखूंगी
सज धज कर, गौरी पूजूँगी ,
सास के पैर, पति की पूजा
कब तक मैं, इनको झेलूंगी
कब से जलती, आग ह्रदय में ,
कभी तो छाती ठंडी होती !
सनम जल गए होते उस दिन, काश दिए में, बाती होती !
अब तो जाओ, जान छोड़कर
कब तक भार उठाये, धरती
फंड, पेंशन, एफडी, लॉकर ,
बाद में लेकर मैं क्या करती
अगर मर गए, होते अब तक,
साजन रोज आरती होती !
कसम नाथ की, मैं जीवन भर, तुम्हे याद कर रोती होती !
( कृपया इसमें गंभीरता न खोजें न अन्यथा अर्थ लगायें , यह व्यंग्य नहीं है विशुद्ध हास्य है इसे उसी स्वरुप में पढ़ें ! जिन्हें हंसना नहीं आता, वे क्षमा करें )
सासू लेकर, चारधाम की
यात्रा तुमको, याद न आई !
कितने लोग तर गए जाकर
क्यों भोले की, याद न आई !
काश उत्तराखंड की साजन,
तुमको टिकट मिल गयी होती !
नमःशिवाय उच्चारण करते, मैं भी धन्य, हो गयी होती !
जिस दिन सूनामी आई थी
तब तुम बाहर नहीं गए थे
कितने लोग मरे थे बाहर
तुम खर्राटों में, सोये थे !
काश सुनामी में ,यह बॉडी,
लहर में गोते, लेती होती !
शोक संदेशा आस लगाए, मैं भी खूब, बिलखती होती !
कब तक करवा चौथ रखूंगी
सज धज कर, गौरी पूजूँगी ,
सास के पैर, पति की पूजा
कब तक मैं, इनको झेलूंगी
कब से जलती, आग ह्रदय में ,
कभी तो छाती ठंडी होती !
सनम जल गए होते उस दिन, काश दिए में, बाती होती !
अब तो जाओ, जान छोड़कर
कब तक भार उठाये, धरती
फंड, पेंशन, एफडी, लॉकर ,
बाद में लेकर मैं क्या करती
अगर मर गए, होते अब तक,
साजन रोज आरती होती !
कसम नाथ की, मैं जीवन भर, तुम्हे याद कर रोती होती !
( कृपया इसमें गंभीरता न खोजें न अन्यथा अर्थ लगायें , यह व्यंग्य नहीं है विशुद्ध हास्य है इसे उसी स्वरुप में पढ़ें ! जिन्हें हंसना नहीं आता, वे क्षमा करें )
बहुत सुन्दर जनाब !!
ReplyDeleteकिन्तु इस रचना को भाभीजी नें पढ़ लिया तो बहुत मार पड़नें वाली है !
वाह, क्या व्यवस्थित ढंग से धोया है..आनन्दमयी।
ReplyDeleteएक दो को छोड़ दें,नही तो कोई भी पत्नी कभी अपने पति के लिए ऐसा नही सोचती..
ReplyDeleteबेहतरीन हास्य प्रस्तुति, !!
RECENT POST : बिखरे स्वर.
ब्हुत ही भावपुर्ण
ReplyDeleteहा हा हा हा हा हा हा !
ReplyDeleteसपना तो वास्तव में बड़ा भयंकर था जो सारे हादसे याद दिला गया.
क्या सोचते हुए सोये थे भाई जी ? :)
गंभीर विषयों को छोड़कर हास्य का पुट अच्छा लगा.
ReplyDeleteआखिर हँसते रहने से यही दूभर जिंदगी आसान लगने लगती है।
हा हा हा हा मजा आ गया ये सपना है :) ??
ReplyDeleteये तो बहुतों के लिए सच्चाई है !
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाकई मजा आ गया..... बहुत सुन्दर.......
ReplyDeleteहाय राम! हंसे वो जिनको कोई खतरा नहीं है। :)
ReplyDeleteबढ़िया हास्य।
ReplyDeleteमेरी श्रीमती इसे पढ़कर लहालोट हो गईं।:-)
मेरा आभार देना उन्हें ..
Deleteउफ़ ! हद कर दी आपने बखिया उधेड़ने की..वैसे यह सपना तो उन्हें आना चाहिए था जो फरियाद कर रहे हैं..
ReplyDeleteमजा आ गया पढ़ कर -बहुत बढ़िया
ReplyDeletelatest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
LATEST POSTअनुभूति : Teachers' Honour Award
भाई ब्रजमोहन श्रीवास्तव जी का कमेन्ट :
ReplyDeleteपहला छंद बाढ में बहने बाबत/दूसरे में उत्तराखण्ड न गईं,दुर्भाग्य से न सुनामी मे थीं न 9/11 मे थीं।फिर करवा चौथ का बृत रखने की परेशानी,और अन्त में हमें चैन तो मिलता । विशुध्द हास्य .पहले मै समझा कि यह निवेदन,प्रार्थना, गुजारिश सास से है तो लिख दिया था कि यदि सासू मां चली गई होती तो वे जो वर्तन मांझती थी और झाडू लगाना पडती थी उसके लिये बाई रखना पडती। अब तो और भी मजेदार नौक झौक होगई ।
....
मैने भी कभी लिखा था——
कलकल करती नदी किनारे, चट्टानें, बन, पेड़, पहाड़
शीतल छाँव घनेरी
नदी में मगरमच्छ मुंहफाड़े
तड़पते भूंखे बेचारे
द्रवित मन मेरा
कैसे उनकी भूंख मिटाऊँ
किसको अब में धक्का मारूं
काश -साथ में तुम होतीं
देवेन्द्र पाण्डेय उर्फ़ बेचैन आत्मा :
ReplyDeleteहाय राम! हंसे वो जिनको कोई खतरा नहीं है।
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteअब तो जाओ,जान छोड़कर
ReplyDeleteकब तक भार उठाये, धरती
फंड, पेंशन, एफडी, लॉकर ,
बाद में लेकर मैं क्या करती
अगर मर गए, होते अब तक,साजन रोज आरती होती !
कसम नाथ की,मैं जीवन भर,तुम्हे याद कर रोती होती !
सटीक ठोका.
रामराम.
समझदार लोग जो भी
ReplyDeleteनिकालेंगे निकालेंगे
हम तो बस
सच्चाई दिल की
निकाल रहे हैं
आप से कुछ भी
नहीं कह सकते हैं
बस पूछना चाह रहे हैं
आप कहां से
मित्रों के बारे में
अंदर की ये बातें
ढूंढ निकाल रहे हैं ?
:) :) :)
बेहतरीन!!
ReplyDeletekya baat hai satish ji......nirdosh si hasya rachna.
ReplyDeleteहा हा हा .................
ReplyDeleteहा ..हा हा हा ....
ReplyDeleteवाह!.
ReplyDeleteऐसे सपने देखने की बीमारी कब से है आपको ? :):)
ReplyDeleteवाह ...सपने इतने मज़ेदार भी होते हैं....ये नहीं पता था :))
ReplyDeleteहा..हा....हा..हा.... मस्त :D
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