Tuesday, September 3, 2013

एक चिरैया को, फंदे में पकड़ न पाए, शाम हो गयी -सतीश सक्सेना

जीवन की, अंतिम सीढ़ी पर,कैसे अपनी हार हो गयी !  
कुछ तो भूल हुई जीवन में, पूजा अस्वीकार हो गयी !

तुम तो कहते थे कि सत्य को आंच,झूठ को पाँव नहीं,
बेईमानी मठ वालों की  बापू , सरे बाजार हो गयी !

तुम तो कहते थे कि सभी की,चाल समझ में आती है !
यहाँ तो बाजी से पहले ही,इक प्यादे से ,मार हो गयी !

तुम तो कहते थे ,जीवन में ,बड़े  बड़ों को ठीक किया !
एक  चिरैया को , फंदे में पकड़ न पाए, खार हो गयी !

तुम्हीं बताते थे  , सन्यासी,ऋषि, मुनि पावन होते हैं !
कैसी गोपनीय गुरु दीक्षा , आज सरे बाज़ार हो गयी !

32 comments:

  1. आपकी हर रचना दिल को छूती है।

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  2. जीवन की अंतिम सीढ़ी पर,कैसे अपनी हार हो गयी !
    कुछ तो भूल हुई जीवन में, पूजा अस्वीकार हो गयी !

    यथार्थ की उकेरा है...आभार

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  3. बढ़िया रचना-
    आनंद आ गया-

    चंचा हिलता खेत में, रहे चिरैया दूर |
    बिछे जाल में पर फँसे, कुछ तो गलत जरूर |
    कुछ तो गलत जरूर, बताओ क्या मज़बूरी |
    पग पग पलते क्रूर, नहीं क्यूँ उनको घूरी |
    कर दे काया सुर्ख, शिकारी चला तमंचा-
    दल का मुखिया मूर्ख, दुष्ट रविकर नहिं चंचा ||

    चंचा=खेत में लगा पुतला

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    1. शुक्रिया रविकर जी ..

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  4. कैसा आश्चर्य है..घोर कलयुग शायद इसी को कहते हैं..

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  5. काम खुद गंदे करो मैडम को दो दोष ,
    गलती करके दिखा रहे क्यूँ राहुल पर रोष ,
    जनता अब भोली नहीं उसको मत मूर्ख बनाओ
    चलो जेल के भीतर अब चक्की खूब घुमाओ !!

    शिखा कौशिक 'नूतन '

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  6. तुम तो कहते थे , सन्यासी,ऋषि, मुनि पावन होते हैं !
    कैसी गोपनीय गुरु दीक्षा , आज सरे बाज़ार हो गयी !..वाह बहुत बढिया...

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  7. तुम तो कहते थे , सन्यासी,ऋषि, मुनि पावन होते हैं !
    कैसी गोपनीय गुरु दीक्षा , आज सरे बाज़ार हो गयी ...

    हर शेर सचाई बयाँ कर रहा है ... इस हकीकत को पचा पाना भी आसान नहीं है ...

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  8. बहुत सुन्दर लक्ष पर लगती हुई तीखी उक्ति -सुन्दल ग़ज़ल
    latest post नसीहत

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  9. तुम तो कहते थे कि सभी की,चाल समझ में आती है !
    यहाँ तो बाजी से पहले ही,इक प्यादे से ,मार हो गयी !-वाह

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  10. तुम तो कहते थे , सन्यासी,ऋषि, मुनि पावन होते हैं !
    कैसी गोपनीय गुरु दीक्षा , आज सरे बाज़ार हो गयी !

    बहुत बढ़िया रचना

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  11. तुम तो कहते थे , सन्यासी,ऋषि, मुनि पावन होते हैं !
    कैसी गोपनीय गुरु दीक्षा , आज सरे बाज़ार हो गयी !

    कथनी और करणी का फ़र्क है सतीश जी. सन्यासी,ऋषि और मुनि तो हमेशा से ही पावन थे और रहेंगे पर तथाकथित स्वघोषित ऋषि मुनियों की तो एक दिन यही गति होनी है.

    आपने सभी नागरिकों के मन का मार्मिक दर्द अभिव्यक्त किया है रचना में.

    रामराम.

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  12. तुम तो कहते थे , सन्यासी,ऋषि, मुनि पावन होते हैं !
    कैसी गोपनीय गुरु दीक्षा , आज सरे बाज़ार हो गयी !

    ऋषि, मुनि पावन ही नहीं पृथ्वी के नमक होते है
    लेकिन पाखंडियों की कलई देर सवेर खुल जाती है !

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  13. तुम तो कहते थे , सन्यासी,ऋषि, मुनि पावन होते हैं !
    कैसी गोपनीय गुरु दीक्षा , आज सरे बाज़ार हो गयी !
    सत्‍य कथन .मार्मिक पंक्तियाँ .

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  14. कवि मन सामयिक घटनाओं से व्यथित हुआ

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  15. इन वाज़िब सवालों के ज़वाब नहीं !
    प्रभावशालीअभिव्यक्ति।

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  16. ☆★☆★☆


    तुम तो कहते थे कि, हमेशा जो मैं कहता ,वही करो !
    कदम तुम्हारे ही,पैरों पर,रखकर चलते, हार हो गयी !

    वाऽहऽऽ…!

    आजकल हमारेसतीश जी भाई सा'ब अलग रौ में बहते महसूस हो रहे हैं...
    बढ़िया है ।
    परिवर्तन का अपना आनंद है...
    आपके कदम धीरे-धीरे ग़ज़ल विधा की ओर बढ़ने को उत्सुक लग रहे हैं...
    बधाई ! शुभकामनाएं !


    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  17. तुम तो कहते थे , सन्यासी,ऋषि, मुनि पावन होते हैं !
    कैसी गोपनीय गुरु दीक्षा , आज सरे बाज़ार हो गयी

    सार कह गए सर जी :)

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  18. प्रश्न ही प्रश्न हैं- उत्तर कौन खोजे ?

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  19. आज की बुलेटिन किशन महाराज, प्यारेलाल और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी इस पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर .... आभार।।

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  20. बहुत बढिया..बहुत बढ़िया रचना

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  21. बहुत उम्दा गजल,,,धीरे धीरे गजल के विधा में भी परांगत होते जा रहे,बधाई सतीश जी,,

    RECENT POST : फूल बिछा न सको

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  22. तुम तो कहते थे कि सत्य को आंच,झूठ को पाँव नहीं,
    बेईमानी सुल्तानों की छिप न सकी थी,आम हो गयी!


    अब सत्य बचा ही कहाँ है ?????

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  23. वाह बहुत ही सुन्दर |

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  24. वाह बहुत ही सुन्दर |

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  25. जो दागदार हो गया उसकी इतनी चिन्‍ता नहीं है कि वो ऐसा निकला। वो तो प्रबुद्ध लोग जानते थे। पर अफसोस है उन करोड़ों अनुयायियों पर जिन्‍हें भगवात शरण के लिए ऐसे तुच्‍छ मार्ग चाहिए होते हैं। ............धर्म-विशेष को बद्नाम करनेवाले पर अच्‍छा विचारणीय पद्य उकेरा है।

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  26. जीवन की अंतिम सीढ़ी पर,कैसे अपनी हार हो गयी !
    कुछ तो भूल हुई जीवन में, पूजा अस्वीकार हो गयी --जीवन की हर सीढ़ी कठिन ,और हार तय---शब्द-शब्द सत्य---बेहतरीन प्रस्तुति।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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