बरसों से सोंचे शब्द भी उस वक्त तो बोले नहीं
विश्वास ही पहचान हो निर्मल ह्रदय की भावना
मृदु ह्रदय मंजुल भाव तो हमने कभी तौले नहीं !
जब सामने खुद श्याम थे तब रंग ही घोले नहीं !
कुछ अनछुए से शब्द थे, कह न सके संकोच में,
जानेंगे क्या छूकर भी,हों जब राख में शोले नहीं !
जानेंगे क्या छूकर भी,हों जब राख में शोले नहीं !
प्रत्यक्ष देव,विरक्त मन, किससे कहें, नंदी के भी
सीने में कितने राज हैं,जो आज तक खोले नहीं !
विश्वास ही पहचान हो निर्मल ह्रदय की भावना
मृदु ह्रदय मंजुल भाव तो हमने कभी तौले नहीं !
उलझी अनिश्चय में रही, मंदाकिनी हर रूप में
थी चाहती निर्झर बहे, शिवकेश थे,भोले नहीं !