बरसों से सोंचे शब्द भी उस वक्त तो बोले नहीं
विश्वास ही पहचान हो निर्मल ह्रदय की भावना
मृदु ह्रदय मंजुल भाव तो हमने कभी तौले नहीं !
जब सामने खुद श्याम थे तब रंग ही घोले नहीं !
कुछ अनछुए से शब्द थे, कह न सके संकोच में,
जानेंगे क्या छूकर भी,हों जब राख में शोले नहीं !
जानेंगे क्या छूकर भी,हों जब राख में शोले नहीं !
प्रत्यक्ष देव,विरक्त मन, किससे कहें, नंदी के भी
सीने में कितने राज हैं,जो आज तक खोले नहीं !
विश्वास ही पहचान हो निर्मल ह्रदय की भावना
मृदु ह्रदय मंजुल भाव तो हमने कभी तौले नहीं !
उलझी अनिश्चय में रही, मंदाकिनी हर रूप में
थी चाहती निर्झर बहे, शिवकेश थे,भोले नहीं !
बरसों से सोचे शब्द भी उस वक्त तो बोले नहीं
ReplyDeleteजब सामने स्वयं श्याम थे तब रंग ही घोले नहीं !
कुछ अनछुए से शब्द थे, जो न कह सके संकोच में,
जानेंगे क्या छूकर उन्हें, जब राख में शोले नहीं !
प्रत्यक्ष देव,विरक्त मन, किससे कहें, नंदी के भी
सीने में कितने राज हैं,जो आज तक खोले नहीं !
विश्वास ही पहचान हो निर्मल ह्रदय की भावना
मृदु ह्रदय मंजुल भाव तो हमने कभी तौले नहीं !
उलझी अनिश्चय में रही, मंदाकिनी हर रूप में
थी चाहती निर्झर बहे, शिवकेश थे,भोले नहीं !
सुंदर भाव..
वाह बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteवाह ... बहुत सुन्दर गीत ...
ReplyDeleteविश्वास ही पहचान हो निर्मल ह्रदय की भावना
ReplyDeleteमृदु ह्रदय मंजुल भाव तो हमने कभी तौले नहीं !
वाह सक्सैना जी! अति सुन्दर!
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह्ह्ह...बहुत सुंदर।।
ReplyDeleteउज्जवल मन के मोहक भाव लिए भावप्रवण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति
सुन्दर
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