अगर मैं स्टोन एज की बात करूँ तो वह लगभग २५ लाख साल चला लगभग ६००० साल पहले समाप्त हुआ था , उस समय भी समय अनुसार मानवीय ज़रूरत का हर साधन उपलब्ध था , बस इलाज और बीमारियों के बारे में उन्हें यही पता था कि कुछ दिन कमजोरी रहती है तब आराम करना चाहिए और उन दिनों खाने का मन नही करता सो वो कम खाते और गुफा के एक कोने में आराम करते, कुछ दिनों में स्वतः ठीक हो जाते और फिर शिकार, भागना दौड़ना और परिवार संग खुश रहना , मस्त जीवन ...
आज से लगभग ५० वर्ष पहले भी दूर दूर तक हॉस्पिटल और डॉक्टर नहीं थे, गाँव क़स्बों के लोगों ने इनका नाम तक नहीं सुना था , लोग तब बिना मृत्यु भय और बीमारियों के जीते थे, वाइरस बैक्टिरिया तो बहुत दूर की चीज़ थे , बस भय और स्ट्रेस देने वाले टेलिविज़न और डर फैलाकर धन कमाने वाले मीडिया संसाधन नहीं थे !मानवीय शरीर में लाखों कोशिकाएँ व्यस्त रहती हैं शरीर को सुचारु रूप से चलाने के लिए, इस प्रक्रिया के फल स्वरूप शरीर में हर समय उथलपुथल रहती है, तरह तरह के दर्द, और समस्याएँ होती हैं जो कुछ समय में अपने आप समाप्त भी हो जाती हैं ,भयभीत और समर्थ मन जो इन्हें सहन नहीं कर पाता , फ़ौरन डॉक्टर की शरण में जाकर दवा खाता है , बिना यह जाने कि इनका शरीर पर बुरा असर क्या होगा वहीं निडर या असमर्थ व्यक्ति चुपचाप घर में लेटकर स्वस्थ होने का इंतज़ार करता है और खुद को स्वस्थ बनाए रखने में सफल रहता है !
पिछले सप्ताह खाना खाते हुए, एक मटर का दाना साँस की नली में फँस गया था लगभग दो घंटे तक लगातार खाँसता रहा, साँस आने में रुकावट थी, लग रहा था कि जान चली जाएगी, डॉक्टर T S Daral जैसे पुराने मित्र, और रनर डॉक्टर दोस्त Vishesh Malhotra न होते तो ओपरेशन के लिए हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ता ! पूरे सप्ताह साँस लेने में तकलीफ़ रही, अचानक एक दिन सुबह बहुत तेज गति से खांसी शुरू हुई लगा कि फेफड़े बाहर आ जाएँगे, और एक बड़ा सा गोल दाना मुँह से निकल कर बेसिन में गिरा, साथ ही लगातार हो रही खांसी व साँस में रुकावट ग़ायब हो गयी !
कम से कम एक डॉक्टर मित्र आपके परिवार में अवश्य होना चाहिए जो आपातकाल में सही सलाह देकर आपको अनावश्यक दवाओं से बचाने में आपकी मदद करे, उसके अलावा शारीरिक रक्षा शक्ति को कम न आंकिये, यह आपकी रक्षा करने में पूर्ण समर्थ है !