इस हिन्दुस्तान में रहते , अलग पहचान सा लिखना !
कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना !
दिखें यदि घाव धरती के, तो आँखों को झुका लिखना
घरों में बंद, मां बहनों पे, कुछ आसान सा लिखना !
विदूषक बन गए मंचाधिकारी , उनके शिष्यों के ,
अनुग्रह पुरस्कारों के लिए, अपमान सा लिखना !
किसी के शब्द शैली को चुराये मंच कवियों औ ,
जुगाड़ू गवैयों , के बीच कुछ प्रतिमान सा लिखना !
व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !
तेरे मन की तड़प अभिव्यक्ति जब चीत्कार कर बैठे
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !
दिखें यदि घाव धरती के, तो आँखों को झुका लिखना
घरों में बंद, मां बहनों पे, कुछ आसान सा लिखना !
विदूषक बन गए मंचाधिकारी , उनके शिष्यों के ,
अनुग्रह पुरस्कारों के लिए, अपमान सा लिखना !
किसी के शब्द शैली को चुराये मंच कवियों औ ,
जुगाड़ू गवैयों , के बीच कुछ प्रतिमान सा लिखना !
व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !
तेरे मन की तड़प अभिव्यक्ति जब चीत्कार कर बैठे
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !
हृदयस्पर्शी गीत लिखने के लिए बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाहहह और सिर्फ वाहहह... बेहद शानदार रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब 👌
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर 👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत👌👌👌
ReplyDeleteबेहतरीन गीत...
ReplyDeleteWaaaah... Kya khoob Likha Satish bhai!
ReplyDeleteतेरी भोगी हुई अभिव्यक्ति ,जब चीत्कार कर बैठे
ReplyDeleteबिना परवा किये तलवार की,सुलतान सा लिखना !
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ सतीश जी पर
.....बहुत ही बढ़िया गीत पढ़ने को मिला
वाह शानदार सृजन ....
ReplyDeleteगंगा किनारे बैठ कर रसखान सा लिखना यदि आ जाये तो मन्दिर मसजिद के झगड़े भी मिट जाएँ..प्रभावशाली पंक्तियाँ..
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