Thursday, November 8, 2018

कल दिवाली मन चुकी है ,जाहिलों के शहर में -सतीश सक्सेना

खांसते दम ,फूलता है 
जैसे लगती जान जाए 
अस्थमा झकझोरता है, 
रात भर हम सो न पाए
धुआं पहले खूब था अब  
यह धुआं गन्दी हवा में 
समय से पहले ही मारें,
चला दम घोटू पटाखे ,
राम के आने पे कितने 
दीप आँखों में जले,अब 
लिखते आँखें जल रही हैं ,जाहिलों के शहर में !

धूर्त, बाबा बन बताते 
स्वयं को ही राज्यशोषित 
और नेता कर रहे हैं ,  
स्वयं को अवतार घोषित 
चोर सब मिल गा रहे हैं 
देशभक्ति के भजन ,
दिग्भ्रमित विस्मित खड़े 
ये,भेडबकरी मूर्खजन !
राजनैतिक धर्मरक्षक 
देख ठट्ठा मारते, अब 
राम बंधक बन चुके हैं , जाहिलों के शहर में ! 

3 comments:

  1. हम सब जगह पाये जाते हैं
    शहर ही नहीं पूरा देश उजाड़ना चाहते हैं
    राष्ट्र भक्ति की परिभाषाये बदल चुकी हैं अब सभी
    वो सभी मूर्ख हैं
    जो इनके
    और इनके गिरोह के
    सरदार की पूजा नहीं करवाते हैं।

    सटीक।

    ReplyDelete
  2. सच कहा. प्रदूषण कहर बरपा रहा है.

    ReplyDelete
  3. प्रदूषण की मार सहते लोगों की पीड़ा को शब्द देती प्रभावशाली पंक्तियाँ

    ReplyDelete

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- सतीश सक्सेना

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