बरसों से झगडा आपस में आधा आधा बाँट लिए
पंचों से फैसला करा के , मम्मी पापा बाँट लिए !
अम्मा के जेवर तो पहले से ही, गिरवी रक्खे थे !
स्वर्ण फूल दोनों बहुओं ने,चुप्पा चुप्पा बाँट लिए !
एक बार आँखें खोलें तो , हस्ताक्षर करवाना है !
दादाजी के पूरे जीवन का , अपनापा बाँट लिए !
सब चिंतित थे उनके हिस्से में जाने क्या आयेगा
अम्मा के मैके से आये,गणपति बप्पा बाँट लिए !
आधे दरवाजे से घुसने, दो फुट जगह ही बाकी है !
अशुभ रोकने को दादी के हाथ के थापा बाँट लिए !
पंचों से फैसला करा के , मम्मी पापा बाँट लिए !
अम्मा के जेवर तो पहले से ही, गिरवी रक्खे थे !
स्वर्ण फूल दोनों बहुओं ने,चुप्पा चुप्पा बाँट लिए !
एक बार आँखें खोलें तो , हस्ताक्षर करवाना है !
दादाजी के पूरे जीवन का , अपनापा बाँट लिए !
सब चिंतित थे उनके हिस्से में जाने क्या आयेगा
अम्मा के मैके से आये,गणपति बप्पा बाँट लिए !
आधे दरवाजे से घुसने, दो फुट जगह ही बाकी है !
अशुभ रोकने को दादी के हाथ के थापा बाँट लिए !
वाह क्या बात है-
ReplyDeleteकाम मिल गया दोनों को ही फिर जिंदड़ी आसान हुई -
पुन: बुढ़ापा आहें भरता, तन्हाई मेहमान हुई |
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
Deleteखून पसीने से जोड़ा था घर की ईंटों को चुन-चुन
ReplyDeleteफीता लेकर आये वो, इंचों में नापा, बाँट दिये
भई वाह ...
Deleteआपके बारे में यह तो पता ही नहीं था :(
बहुत प्यारे भाव !!
यह मेरा दुर्भाग्य ही है जो आपको मेरी कविताई के बारे में पता ही नहीं थ। कभी-कभी आजमा लेता हूँ। दूसरों की अच्छी कविता का रस लेना भी अच्छा लगता है और उसमें कुछ जोड़ना और अच्छा लगता है। फुरसत मिले तो यहाँ देखिएगा-
Deletehttp://satyarthmitra.blogspot.in/search/label/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE
मुझे वाकई अफ़सोस है :(
Deleteपढता हूँ..
यही दुनिया है सब जगह बंटवारा है
ReplyDeleteकहीं रिश्तेदारों का कहीं जर जमीं का
ma-bap ki khushi chhin
ReplyDeletesaare sapne tod diye
jo jeete the ghar (apnapan)ke khatir
unse unke ghar chhin liye ..bhawpurn nd marmik ise wahi samajh sakta hai jisne ise jeeya hai ....
बेहद मार्मिक रचना, हालात कुछ ऐसे ही हैं...
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सब चिंतित थे उनके हिस्से में जाने क्या आयेगा
ReplyDeleteअम्मा के मैके से आये,गणपति बप्पा बाँट लिए !
शायद गणपति बप्पा सोने के या चांदी के रहे होंगे :)
आज के हालात पर सटीक रचना है !
आप की रचनाएँ अगर दिल से कोई पढ़े तो
ReplyDeleteसंसार में ही सन्यस्त होने का मन करता है !
चेहरे पर मुस्कान, ह्रदय से गाली देते, अक्सर मीत !
ReplyDeleteकौन किसे सम्मानित करता,खूब जानते मेरे गीत !
good job buddy could not post comments there ,read it here .
बरसों से झगडा था घर में,आधा आधा बाँट लिए !
ReplyDeleteपंचों से फैसला करा के ,मम्मी पापा बाँट लिए !
अम्मा के जेवर तो पहले से ही, गिरवी रक्खे थे !
स्वर्ण फूल दोनों बहनों ने,चुप्पा चुप्पा बाँट लिए !
एक बार आँखें खोलें तो , हस्ताक्षर करवाना है !
दादा जी के पूरे जीवन का , अपनापा बाँट लिए !
सब चिंतित थे उनके हिस्से में जाने क्या आयेगा
अम्मा के मैके से आये,गणपति बप्पा बाँट लिए !
आधे दरवाजे से घुसने, दो फुट जगह ही बाकी है !
नज़र बचाने को दादी के हाथ के,थापा बाँट लिए !
जीव ब्रह्म का हिस्सा भैया नित कहते हैं मेरे गीत ,
जीव जीव से प्रीत न रखें ,संबंधों की यही है रीत ,
दादी अम्मा रोज़ बटेंगे सच कहते हैं मेरे गीत।
दुखद.
ReplyDeleteकाश ..माँ बाप को बांटने की जगह उनके दुःख-दर्द बांटे होते
ReplyDeleteभाई ब्रजभूषण श्रीवास्तव जी ...फेसबुक से
ReplyDeleteयही हो रहा है पता नहीं पहले भी होता रहा हो। एक दफे थोडी देर के लिये आंखें खोललें बस— वसीयत तैयार है अंगूठा लगवाना है बहुत प्यारी बात। आज की जनरेशन स्वर्णफूल शायद भूल गई होगी बडा पुराना शब्द और पुराना ज़ेवर। अपने अपने हिस्से को लेकर सब बेचैन। बडी सच्ची रचना
बँटवारे इतने दुखद होते हैं तो ये होते ही क्यूँ हैं
ReplyDeleteदो भाईयों पर दो बहनें थी अब एक तुम्हारी एक मेरी
ReplyDeleteबांट लिये वार-त्यौहार, छुछक-भाता बांट लिये
दो भाईयों की दो बहनें थी अब एक तुम्हारी एक मेरी
ReplyDeleteबांट लिये तीज-त्यौहार, छुछक-भाता बाटं लिये
हर बार एक नया पक्ष लेकर आते हैं आप संबंधों के, बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteजन्म से लेकर मृत्यु तक इंसान न जाने क्यों बिभिन्न सीमाओ में बटता रहता है…सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक.
ReplyDeleteकटु सत्य..
ReplyDeleteमॉं सुनाया करती थी
ReplyDeleteएक तिल के दाने के
सात बहनों में बटने
की कहानी कभी हमें
एक वो था बंटना
एक आप ने सुनाई
बांटा बहुत कुछ
और बहुत बहुत
ही बांट लिये !
मम्मी और पापा ने अपना प्यार जनम भर बांटा था
ReplyDeleteहम जाने क्या सीखे उनसे रिश्ते नाते बांट लिये।
बहुत सच्ची प्रस्तुति झकझोरने वाली।
महोब्बत बाँटना भूल गए लेकिन :)
ReplyDeleteलिखते रहिये ...
आधे दरवाजे से घुसने, दो फुट जगह ही बाकी है !
ReplyDeleteनज़र बचाने को दादी के हाथ के,थापा बाँट लिए !
क्या बात है ! सुंदर सटीक गजल ! बधाई
बंटवारे को लेकर रची एक सुन्दर रचना |
ReplyDeleteमार्मिक ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 29/09/2013 को
ReplyDeleteक्या बदला?
- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः25 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबंटवारा हर ओर :-(
ReplyDeleteजब दिल बंट गए ,भावनाएं बंट गयी,तो अब बाकी सब का भी बंटवारा करने से क्या गुरेज,बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति,सतीश जी आभार.
ReplyDeletebantavare ke baad bhi kya hath kuchh aaya?? khoobsurat rachna ..
ReplyDeleteबरसों से झगडा था घर में,आधा आधा बाँट लिए !
ReplyDeleteपंचों से फैसला करा के ,मम्मी पापा बाँट लिए !
अम्मा के जेवर तो पहले से ही, गिरवी रक्खे थे !
स्वर्ण फूल दोनों बहनों ने,चुप्पा चुप्पा बाँट लिए !
एक बार आँखें खोलें तो , हस्ताक्षर करवाना है !
दादा जी के पूरे जीवन का , अपनापा बाँट लिए !
सब चिंतित थे उनके हिस्से में जाने क्या आयेगा
अम्मा के मैके से आये,गणपति बप्पा बाँट लिए !
आधे दरवाजे से घुसने, दो फुट जगह ही बाकी है !
नज़र बचाने को दादी के हाथ के,थापा बाँट लिए !
बहुत सुन्दर रचना सक्सेना साहब -एक हिदायत यह भी -
जीव ब्रह्म का हिस्सा भैया नित कहते हैं मेरे गीत ,
जीव जीव से प्रीत न रख्खे ,संबंधों की यही है रीत ,
दादी अम्मा रोज़ बटेंगे सच कहते हैं मेरे गीत।
यही दुनिया की रीत--अरजना कम बाँटना ज्यादा --काश!प्यार,एहसास बाँट पाते।
ReplyDeleteNice Poem , great thoughts..
ReplyDeleteGeneral Knowledge